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व्यक्ति विशेष

भाग – 223.

साहित्यकार अवनीन्द्रनाथ ठाकुर

अवनीन्द्रनाथ ठाकुर (1871-1951) एक प्रमुख भारतीय चित्रकार और लेखक थे. वे रवीन्द्रनाथ ठाकुर के भतीजे थे और बंगाल स्कूल ऑफ आर्ट के संस्थापक के रूप में जाने जाते हैं. अवनीन्द्रनाथ ठाकुर का कार्यभार भारतीय कला को एक नई दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

अवनीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म 7 अगस्त 1871 को जमींदार परिवार में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही प्राप्त की. कला के प्रति उनकी रुचि बचपन से ही थी और उन्होंने बाद में जेजे स्कूल ऑफ आर्ट, मुंबई और कलकत्ता स्कूल ऑफ आर्ट में शिक्षा प्राप्त की. उन्होंने बंगाल स्कूल ऑफ आर्ट की स्थापना की और भारतीय कला में राष्ट्रवाद का समावेश किया. उनकी कलाकृतियों में भारतीय लोक-कला और मुगल कला की झलक मिलती है.

अवनीन्द्रनाथ ठाकुर ने कई महत्वपूर्ण पेंटिंग्स बनाईं, जिनमें ‘भारत माता’ और ‘मुगल सम्राट अकबर’ प्रसिद्ध हैं. उन्होंने भारतीय इतिहास और पौराणिक कथाओं को अपनी कला का प्रमुख विषय बनाया. ठाकुर ने कई किताबें भी लिखीं, जिनमें ‘राजकहिनी’, ‘बौडानुबद’ और ‘क्षितिजेर धूलो’ शामिल हैं. उनकी लेखनी में बंगाली संस्कृति और परंपराओं का सुंदर चित्रण मिलता है.

अवनीन्द्रनाथ ठाकुर ने भारतीय कला को एक नई दिशा देने और उसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनकी कला और साहित्यिक योगदान ने भारतीय सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध किया.

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विद्वान वासुदेव शरण अग्रवाल

वासुदेव शरण अग्रवाल (1904-1966) एक भारतीय विद्वान, इतिहासकार और पुरातत्त्ववेत्ता थे. उन्होंने भारतीय संस्कृति, साहित्य, और कला के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

वासुदेव शरण अग्रवाल का जन्म 7 अगस्त 1904 को उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में हुआ था. उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की और बाद में लखनऊ विश्वविद्यालय से एम.ए. और पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त की. अग्रवाल ने विभिन्न शैक्षिक संस्थानों में अध्यापन कार्य किया, जिनमें काशी हिंदू विश्वविद्यालय और लखनऊ विश्वविद्यालय प्रमुख हैं. वे लखनऊ संग्रहालय के निदेशक भी रहे.

वासुदेव शरण अग्रवाल भारतीय संस्कृति और सभ्यता के मर्मज्ञ थे. उन्होंने भारतीय इतिहास, पुरातत्त्व, और कला के विभिन्न पहलुओं पर गहन अध्ययन और शोध किया. अग्रवाल ने भारतीय साहित्य के विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनकी प्रमुख रचनाओं में ‘पाणिनिकालीन भारतवर्ष’, ‘गुप्तकालीन भारत’, और ‘भारतीय कला का इतिहास’ शामिल हैं.

उन्होंने भारतीय पुरातत्त्व के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कार्य किया और विभिन्न पुरातत्त्व स्थलों की खुदाई और अध्ययन में भाग लिया. उनके शोध ने भारतीय इतिहास के अनेक अनछुए पहलुओं को उजागर किया. उन्होंने अनेक संस्कृत ग्रंथों का हिंदी में अनुवाद किया और उन्हें जनता के लिए सुलभ बनाया.

प्रमुख रचनाएँ: –  पाणिनिकालीन भारतवर्ष, गुप्तकालीन भारत, भारतीय कला का इतिहास, संस्कृत साहित्य का इतिहास.

वासुदेव शरण अग्रवाल के कार्यों ने भारतीय इतिहास, संस्कृति, और साहित्य को समझने और संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनके शोध और लेखन ने भारतीय विद्या के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित किए.

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कृषि वैज्ञानिक एम. एस. स्वामीनाथन

एम. एस. स्वामीनाथन (मंकोम्बु संबासिवन स्वामीनाथन) भारत के प्रमुख कृषि वैज्ञानिक हैं, जिन्हें भारतीय हरित क्रांति के जनक के रूप में जाना जाता है. उन्होंने कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी में महत्वपूर्ण योगदान देकर भारत को खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

एम. एस. स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त 1925 को तमिलनाडु के कुम्भकोणम में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा तमिलनाडु में प्राप्त की और बाद में कृषि विज्ञान में स्नातक की डिग्री मद्रास विश्वविद्यालय से प्राप्त की. उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त की.

स्वामीनाथन ने भारतीय कृषि में हरित क्रांति की अगुवाई की. उनके नेतृत्व में उन्नत किस्मों के गेहूं और चावल के बीजों का विकास हुआ, जिससे खाद्य उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई. इसने भारत को खाद्य संकट से उबारने में मदद की. आई.आर.आर.आई. और सी.आई.एम.एम.वाई.टी.: उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (आई.आर.आर.आई.) और अंतर्राष्ट्रीय मक्का और गेहूं सुधार केंद्र (सी.आई.एम.एम.वाई.टी.) जैसे प्रमुख संगठनों के साथ काम किया और भारत में उनके शोध का लाभ उठाया.

स्वामीनाथन ने कृषि अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं का नेतृत्व किया. उन्होंने कृषि विज्ञान में उन्नत तकनीकों और अनुसंधान के प्रयोग को बढ़ावा दिया. स्वामीनाथन ने कई किताबें और शोध पत्र प्रकाशित किए हैं, जिनमें भारतीय कृषि और खाद्य सुरक्षा पर उनके विचार और सुझाव शामिल हैं. उनकी प्रमुख पुस्तकों में ‘अग्रिकल्चरल पॉलिसी: न्यू अप्रोच’, ‘आईकन्स ऑफ इंडियन साइंस’, और ‘एन ओटोग्राफी ऑफ एन अननोन इंडियन’ शामिल हैं.

स्वामीनाथन को भारतीय सरकार द्वारा पद्म भूषण (1967) और पद्म विभूषण (1989) सम्मान से सम्मानित किया गया. उन्हें एशिया का नोबेल पुरस्कार माने जाने वाले मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उन्हें शांति, निरस्त्रीकरण और विकास के लिए इंदिरा गांधी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.

एम. एस. स्वामीनाथन ने भारतीय कृषि को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया और लाखों किसानों की जीवनशैली में सुधार किया. उनके योगदान ने न केवल भारत बल्कि विश्वभर में कृषि विज्ञान और खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में नई दिशाएँ निर्धारित कीं.

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गायक सुरेश वाडेकर

सुरेश वाडेकर एक भारतीय पार्श्व गायक हैं, जिन्होंने हिंदी और मराठी फिल्मों में अपनी सुरीली आवाज़ से विशेष पहचान बनाई है. वे अपनी गहरी और मधुर आवाज़ के लिए प्रसिद्ध हैं और उन्होंने कई हिट गाने गाए हैं.

सुरेश वाडेकर का जन्म 7 अगस्त 1954 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई में प्राप्त की और संगीत में विशेष प्रशिक्षण लिया. वाडेकर ने अपने कैरियर की शुरुआत में कई संगीत प्रतियोगिताओं में भाग लिया और अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया. वर्ष 1976 में उन्होंने ‘संगीत प्रतिभा’ प्रतियोगिता जीती, जिससे उनके कैरियर को एक नई दिशा मिली.

वाडेकर को पहला बड़ा ब्रेक संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने फिल्म ‘पहेली’ (1977) में दिया. हालाँकि, उनकी पहली हिट फिल्म ‘गमन’ (1978) थी, जिसमें उन्होंने ‘सीने में जलन’ गाना गाया था.

प्रमुख गाने: –  ‘मेघा रे मेघा रे’ – फिल्म ‘प्यासा सावन’ (1981), ‘सुरमयी अँखियों में’ – फिल्म ‘सदमा’ (1983), ‘तुमसे मिल के’ – फिल्म ‘प्यार झुकता नहीं’ (1985), ‘लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है’ – फिल्म ‘चाँदनी’ (1989), ‘ऐ जिंदगी गले लगा ले’ – फिल्म ‘सदमा’ (1983).

सुरेश वाडेकर ने मराठी फिल्मों और भक्ति संगीत में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उन्होंने कई मराठी भक्ति गीत और भजनों को अपनी आवाज़ दी है, जिससे वे मराठी संगीत प्रेमियों के बीच भी बहुत लोकप्रिय हैं.

सुरेश वाडेकर को ‘मेघा रे मेघा रे’ (1981) और ‘फिल्म चाँदनी’ (1989) के लिए सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला. उन्होंने कई बार फिल्मफेयर पुरस्कार जीते हैं और कई नामांकनों में शामिल रहे हैं. उन्हें महाराष्ट्र सरकार द्वारा भी कई बार सम्मानित किया गया है.

सुरेश वाडेकर ने पाद्मिनी कोल्हापुरे की बहन, पद्मिनी के साथ शादी की है. वे संगीत के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं और नई पीढ़ी के गायकों को प्रशिक्षण देते हैं. सुरेश वाडेकर की आवाज़ और उनके गानों ने भारतीय संगीत प्रेमियों के दिलों में एक खास जगह बनाई है. उनकी मधुर आवाज़ और संगीतमय सफर ने उन्हें भारतीय संगीत की दुनिया में एक प्रतिष्ठित स्थान दिलाया है.

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अभिनेत्री शौर्या चौहान

शौर्या चौहान एक भारतीय अभिनेत्री, मॉडल और स्टंट वुमन हैं, जिन्होंने बॉलीवुड में अपने अभिनय और स्टंट के लिए पहचान बनाई है. शौर्या चौहान का जन्म 7 अगस्त 1983 को हिमाचल प्रदेश में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा हिमाचल प्रदेश में पूरी की और बाद में मॉडलिंग और अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा.

शौर्या चौहान ने अपने कैरियर की शुरुआत मॉडलिंग से की. उन्होंने विभिन्न विज्ञापनों और फैशन शो में हिस्सा लिया और अपनी खूबसूरती और स्टाइल के लिए जानी गईं. उन्होंने बॉलीवुड फिल्मों में अभिनय किया है. उनकी प्रमुख फिल्मों में ‘क्रेजी कुक्कड़ फैमिली’ (2015), ‘कर्मा’ (2008) और ‘सेक्सी’ (2008) शामिल हैं. शौर्या चौहान ने अपने कैरियर में स्टंट वुमन के रूप में भी काम किया है. उन्होंने कई फिल्मों में खतरनाक स्टंट किए हैं और अपनी बहादुरी और साहस के लिए सराही गईं.

प्रमुख फिल्में: – 

‘क्रेजी कुक्कड़ फैमिली’ (2015): – इस फिल्म में उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई थी.

‘कर्मा’ (2008): – यह एक थ्रिलर फिल्म थी जिसमें उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

‘सेक्सी’ (2008): – इस फिल्म में उन्होंने अपनी एक्टिंग स्किल्स का प्रदर्शन किया.

शौर्या चौहान ने विभिन्न रियलिटी शो में भी हिस्सा लिया है, जहाँ उन्होंने अपने स्टंट और अदाकारी का प्रदर्शन किया. शौर्या चौहान ने अपने अभिनय, मॉडलिंग और स्टंट के माध्यम से भारतीय फिल्म उद्योग में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. उनकी बहुमुखी प्रतिभा और साहसिक स्वभाव ने उन्हें बॉलीवुड में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है.

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पार्श्व गायिका आकृति कक्कड़

आकृति कक्कड़ एक प्रसिद्ध भारतीय पार्श्व गायिका हैं, जिनका जन्म 7 जुलाई 1986 को नई दिल्ली में हुआ था. वह हिंदी फिल्म उद्योग में अपने कई हिट गानों के लिए जानी जाती हैं. आकृति की मधुर और विविधता भरी आवाज ने उन्हें बॉलीवुड में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है.

प्रमुख गाने:

“Saturday Saturday” – फिल्म Humpty Sharma Ki Dulhania से

“Iski Uski” – फिल्म 2 States से

“Khuda Ya Khair” – फिल्म Billu Barber से

“Laung Da Lashkara” – फिल्म Patiala House से

आकृति की संगीत में रुचि बचपन से ही थी और उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत बहुत कम उम्र में की थी. उनके परिवार में भी संगीत का माहौल था, जिससे उन्हें प्रेरणा मिली. आकृति ने संगीत की शिक्षा प्राप्त की और अपने कैरियर की दिशा में कदम बढ़ाया.

आकृति ने अपने कैरियर की शुरुआत फिल्म दस के गाने छम्म से वो आ जाये से की थी. उन्होंने अब तक बॉलीवुड में कई बेहतरीन गाने गायें हैं. उनके गाए गाने न केवल फिल्मी बल्कि गैर-फिल्मी संगीत में भी काफी लोकप्रिय हुए हैं. आकृति को उनके गानों के लिए कई पुरस्कार मिले हैं और उन्हें विभिन्न संगीत समारोहों में सम्मानित किया गया है. उनकी आवाज़ और गायन शैली ने उन्हें कई प्रशंसक और आलोचकों की सराहना दिलाई है.

आकृति कक्कड़ आज भारतीय संगीत जगत में एक महत्वपूर्ण नाम हैं और उनकी आवाज़ की मिठास और विविधता ने उन्हें एक खास स्थान दिलाया है.

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अभिनेत्री योगिता बिहानी

योगिता बिहानी एक उभरती हुई भारतीय अभिनेत्री हैं, जो मुख्यतः हिंदी टेलीविजन और फिल्म उद्योग में काम करती हैं. उन्होंने अपनी प्रतिभा और खूबसूरती के बल पर बहुत कम समय में एक महत्वपूर्ण पहचान बनाई है.

योगिता का जन्म 18 अगस्त 1995 को नई दिल्ली, भारत में हुआ था. उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा दिल्ली में पूरी की और बाद में मुंबई में कॉलेज की पढ़ाई की. अभिनय में उनकी रुचि बचपन से ही थी, और उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत मॉडलिंग और छोटे टीवी विज्ञापनों से की. योगिता ने 2018 में सोनी टीवी के शो “दिल ही तो है” से अपने टेलीविजन कैरियर की शुरुआत की, जिसमें उन्होंने “पलक शर्मा” की भूमिका निभाई. यह शो बहुत लोकप्रिय हुआ और योगिता को काफी प्रशंसा मिली.

प्रमुख फिल्में: – 

“दिल ही तो है” – पलक शर्मा के रूप में.

“काबिल” (2022) – इस फिल्म में योगिता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अपनी अभिनय क्षमता को साबित किया.

“विक्रम वेधा” (2022) – इस फिल्म में उनकी भूमिका ने उन्हें फिल्म उद्योग में और भी मजबूत स्थिति दिलाई.

योगिता बिहानी की अभिनय शैली और उनकी खूबसूरती ने उन्हें टीवी और फिल्म दोनों ही क्षेत्रों में लोकप्रिय बनाया है. वह अपने काम के प्रति समर्पित हैं और विभिन्न प्रकार की भूमिकाओं को निभाने के लिए जानी जाती हैं. योगिता बिहानी की प्रतिभा और कड़ी मेहनत ने उन्हें भारतीय टेलीविजन और फिल्म उद्योग में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है.

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नोबेल पुरस्कार विजेता रवीन्द्रनाथ टैगोर

रवीन्द्रनाथ टैगोर (7 मई 1861 – 7 अगस्त 1941) एक महान भारतीय कवि, लेखक, संगीतकार और दार्शनिक थे. वे पहले एशियाई व्यक्ति थे जिन्हें 1913 में साहित्य में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. उनके योगदान ने भारतीय साहित्य और संगीत को विश्व स्तर पर एक नई पहचान दी.

रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 07 मई 1861 को जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी, कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) के एक समृद्ध और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध परिवार में हुआ था. उनके पिता देवेन्द्रनाथ टैगोर और माता शारदा देवी थीं. टैगोर परिवार बंगाल पुनर्जागरण के महत्वपूर्ण केंद्रों में से एक था.

टैगोर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही प्राप्त की और बाद में इंग्लैंड में कानून की पढ़ाई के लिए गए. हालांकि, उन्होंने कानून की पढ़ाई पूरी नहीं की और भारत लौट आए। उन्होंने साहित्य और संगीत में अपना कैरियर बनाने का निर्णय लिया. रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कविता, उपन्यास, कहानियाँ, निबंध और नाटक लिखे.

प्रमुख रचनाएँ: –

गीतांजलि (1910): – इस काव्य संग्रह ने उन्हें नोबेल पुरस्कार दिलाया.

गोरा (1910): – एक प्रसिद्ध उपन्यास.

घरे बाइरे (1916): – एक और महत्वपूर्ण उपन्यास.

टैगोर एक उत्कृष्ट संगीतकार भी थे और उन्होंने कई गीतों की रचना की, जिन्हें रवीन्द्र संगीत के रूप में जाना जाता है. उन्होंने बंगाली संस्कृति में गहरे प्रभाव डाला और उनके गीत आज भी बहुत लोकप्रिय हैं.

वर्ष 1913 में, रवीन्द्रनाथ टैगोर को उनके काव्य संग्रह गीतांजलि के लिए साहित्य में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. यह पुरस्कार पाने वाले वे पहले गैर-यूरोपीय व्यक्ति थे. टैगोर ने 1921 में पश्चिम बंगाल में विश्व-भारती विश्वविद्यालय की स्थापना की, जो एक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय और सांस्कृतिक संस्थान है. उन्होंने भारत और विश्व के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिए इसे स्थापित किया.

रवीन्द्रनाथ टैगोर का निधन 7 अगस्त 1941 को हुआ. उनकी मृत्यु के बाद भी, उनका साहित्यिक और सांस्कृतिक योगदान अमर है और वे आज भी भारतीय संस्कृति के एक महत्वपूर्ण स्तंभ माने जाते हैं. रवीन्द्रनाथ टैगोर का जीवन और कार्य आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं और उनकी रचनाएँ भारतीय साहित्य और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं.

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