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व्यक्ति विशेष – 718.

साहित्यकार उपेन्द्रनाथ अश्क

उपेंद्रनाथ अश्क भारतीय हिंदी साहित्य के प्रमुख लेखकों में से एक थे. उनका जन्म 14 दिसंबर 1910 को उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था, और उनकी मृत्यु 19 जनवरी 1996 को हुई.

उपेंद्रनाथ अश्क का लेखन साहित्य के विभिन्न क्षेत्रों में हुआ, लेकिन उन्होंने विशेष रूप से कहानियों और उपन्यासों के क्षेत्र में अपनी प्रमुख पहचान बनाई. उनकी कहानियाँ और उपन्यास जीवन के अलग-अलग पहलुओं को छूने वाली कहानियाँ होती थीं और वे आम आदमी के जीवन और समस्याओं को विवेचने में माहिर थे.

उपेंद्रनाथ अश्क के प्रमुख काव्य रचनाओं में “गधा गदर” और “मेरा नाम बसंती” जैसे उपन्यास शामिल हैं, जिन्होंने उन्हें भारतीय हिंदी साहित्य के महत्वपूर्ण नामों में शामिल किया. उनका लेखन आम जनता के दर्द और अनुभवों को दर्शाने का काम करता था और उन्होंने समाज में गरीबी, असमानता, और न्याय के मुद्दों पर अपनी कविताएँ और कहानियाँ लिखी. उपेंद्रनाथ अश्क को भारतीय हिंदी साहित्य के महत्वपूर्ण लेखकों में से एक माना जाता है, और उनका योगदान भारतीय साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण है.

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निर्माता, निर्देशक और अभिनेता राज कपूर

राज कपूर, भारतीय सिनेमा के एक महान व्यक्तित्व, निर्माता, निर्देशक और अभिनेता थे, जिन्होंने हिन्दी फिल्म उद्योग में अपनी अनूठी शैली और नवाचार के साथ एक अमिट छाप छोड़ी. उनका जन्म 14 दिसंबर 1924 को पेशावर, ब्रिटिश भारत (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था, और वे कपूर खानदान के प्रमुख सदस्य थे, जो कि भारतीय सिनेमा के सबसे प्रसिद्ध और सम्मानित परिवारों में से एक है.

राज कपूर ने अपने कैरियर की शुरुआत बहुत युवा उम्र में की थी और उन्होंने वर्ष 1948 में अपनी फिल्म प्रोडक्शन कंपनी, आर.के. फिल्म्स की स्थापना की. उनकी पहली बड़ी सफलता “आग” (1948) थी, और उसके बाद उन्होंने “बरसात” (1949), “आवारा” (1951), “श्री 420” (1955), और “संगम” (1964) जैसी क्लासिक फिल्में बनाईं.

राज कपूर की फिल्में अक्सर सामाजिक मुद्दों को उठाती थीं और उन्होंने अपनी फिल्मों के माध्यम से आम आदमी के संघर्ष और सपनों को चित्रित किया. उन्होंने अपने निर्देशन और अभिनय में भारतीय दर्शकों की भावनाओं से जुड़ने की एक विशेष क्षमता दिखाई, जिसने उन्हें व्यापक लोकप्रियता दिलाई.

राज कपूर को उनके योगदान के लिए भारतीय सिनेमा में कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिसमें नौ फिल्मफेयर पुरस्कार और दो राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार शामिल हैं. राज कपूर का निधन  2 जून 1988 को हुआ. उनके निधन के बाद, उन्हें मरणोपरांत दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो भारतीय सिनेमा में उनके अमूल्य योगदान का प्रतीक है.

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राजनीतिज्ञ संजय गाँधी

संजय गांधी भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेता और इंदिरा गांधी के छोटे बेटे थे. उनका जन्म 14 दिसंबर 1946 को दिल्ली में हुआ था. संजय गांधी का राजनीतिक कैरियर और उनके द्वारा किए गए कार्य आज भी भारतीय राजनीति में चर्चा का विषय बने रहते हैं.

संजय गांधी का जन्म दिल्ली में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा देहरादून के वेल्हम बॉयज़ स्कूल और बाद में दून स्कूल से प्राप्त की. संजय ने विमानन इंजीनियरिंग का अध्ययन किया और रोल्स-रॉयस कंपनी में प्रशिक्षण लिया. संजय गांधी का राजनीतिक कैरियर वर्ष 1970 के दशक में शुरू हुआ, जब उनकी मां, इंदिरा गांधी, प्रधानमंत्री थीं. वे जल्दी ही कांग्रेस पार्टी के एक प्रमुख नेता बन गए और उनके पास विशेष प्रभाव और शक्ति थी.

संजय गांधी का राजनीतिक कैरियर मुख्य रूप से आपातकाल के दौरान उभरा. आपातकाल के दौरान वे कई विवादास्पद नीतियों और अभियानों के लिए जाने गए, जैसे परिवार नियोजन कार्यक्रम और दिल्ली के तुर्कमान गेट पर चलाया गया. अतिक्रमण विरोधी अभियान. संजय गांधी ने कांग्रेस पार्टी में युवा कांग्रेस के माध्यम से युवाओं को जोड़ने का प्रयास किया और पार्टी संगठन को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

वर्ष 1977 के आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी की हार के बाद भी संजय गांधी ने पार्टी को पुनर्गठित करने और उसकी पुनरुत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 23 जून 1980 को नई दिल्ली के सफदरजंग हवाई अड्डे पर एक विमान दुर्घटना में संजय गांधी का निधन हो गया. वे एक प्रशिक्षु पायलट थे और उस दिन वे अपने विमान को स्वयं उड़ा रहे थे.

संजय गांधी की राजनीतिक शैली और उनकी नीतियां हमेशा विवाद का विषय रही हैं, लेकिन उनके समर्थक उन्हें एक कुशल संगठनकर्ता और एक दृढ़ नेता मानते हैं. उनकी विरासत उनके परिवार द्वारा जारी रही, जिसमें उनकी पत्नी, मेनका गांधी, और बेटा, वरुण गांधी, दोनों ही भारतीय राजनीति में सक्रिय हैं.

संजय गांधी का जीवन और उनके कार्य भारतीय राजनीति के एक महत्वपूर्ण अध्याय का प्रतिनिधित्व करते हैं. उनकी नीतियां और उनके राजनीतिक दृष्टिकोण आज भी भारतीय राजनीति में चर्चा का विषय बने रहते हैं.

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फ़िल्म निर्देशक श्याम बेनेगल

श्याम बेनेगल हिंदी सिनेमा के एक महान और प्रभावशाली फिल्म निर्देशक थे, जो समानांतर सिनेमा के अग्रदूतों में से एक थे. उन्होंने अपनी फिल्मों के माध्यम से भारतीय समाज, संस्कृति और राजनीति की जटिलताओं को बखूबी प्रदर्शित किया।

श्याम बेनेगल का जन्म 14 दिसंबर 1934 को हैदराबाद में हुआ था और उनका निधन 23 दिसंबर 2024 को  मुंबई में हुआ. वे फ़िल्मकार गुरुदत्त के भतीजे थे. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत एक निर्माता के रूप में की थी.  उन्होंने 900 से भी ज़्यादा विज्ञापन फ़िल्में और 11 कॉरपोरेट फ़िल्में भी बनाई थीं.

श्याम बेनेगल की पहली फिल्म “अंकुर”  थी. यह फिल्म ग्रामीण आन्ध्र प्रदेश की पृष्ठभूमि पर बनाई गई थी. इस फिल्म के साथ ही उन्होंने भारतीय सिनेमा के एक नए अध्याय का सूत्रपात किया. इस फिल्म को बर्लिन फ़िल्मोत्सव में पुरस्कृत और ऑस्कर के लिए प्रविष्टि के बतौर चुनी गई थी.

फ़िल्में :-  ‘अंकुर’, ‘निशांत’, ‘मंथन’, ‘भूमिका’, जूनून, कलयुग, मंडी, द मेकिंग ऑफ द महात्मा और ‘जुबैदा’. साथ ही उन्होंने दूरदर्शन धारावाहिक भारत एक खोज (Bharat Ek Khoj) (1988) का भी निर्देशन किया था, जो जवाहरलाल नेहरू की पुस्तक द डिस्कवरी ऑफ इंडिया पर आधारित था.

श्याम बेनेगल को भारतीय सिनेमा में उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए कई बड़े पुरस्कारों से सम्मानित किया गया जिनमें  वर्ष 1976 में पद्म श्री, वर्ष 1991 में पद्म भूषण,  वर्ष 2005 में दादासाहेब फाल्के पुरस्कार, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

श्याम बेनेगल ने कई बेहतरीन कलाकारों जैसे शबाना आज़मी, स्मिता पाटिल, नसीरुद्दीन शाह, और ओम पुरी को भारतीय सिनेमा से परिचित कराया. उन्होंने भारतीय सिनेमा को केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक विमर्श का मंच भी बनाया.

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गीतकार शैलेन्द्र

गीतकार शैलेन्द्र, हिंदी सिनेमा के सबसे प्रभावशाली और लोकप्रिय गीतकारों में से एक थे. उन्होंने अपने गीतों में आम इंसान के जीवन के सुख-दुख, संघर्ष और उम्मीद को बड़ी ही सरलता और गहराई से बयां किया. उनके गीत सिर्फ गीत नहीं थे, बल्कि वे कविताएं थीं जो लोगों के दिल को छू जाती थीं.

शैलेन्द्र का जन्म 30 अगस्त 1923 को रावलपिंडी (जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ था. उनका पूरा नाम शंकरदास केसरीलाल शैलेन्द्र था. उनका बचपन बेहद गरीबी में बीता. एक समय ऐसा भी था जब उन्हें भूख मिटाने के लिए बीड़ी पीनी पड़ती थी. उनकी मां और बहन की बीमारी के कारण हुई असामयिक मृत्यु ने उनके मन में ईश्वर के प्रति विश्वास को हिला दिया था.

उन्होंने मथुरा में रेलवे में नौकरी की और साथ ही कविताएं भी लिखते रहे. वे प्रगतिशील लेखक संघ से भी जुड़े थे और उनकी कविताएं साहित्यिक पत्रिकाओं में छपती थीं. राज कपूर ने उन्हें एक कवि सम्मेलन में सुना और उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर अपनी फिल्म ‘बरसात’ (1949) में गीत लिखने का मौका दिया. यहीं से हिंदी सिनेमा में एक नए अध्याय की शुरुआत हुई.

शैलेन्द्र और राज कपूर की जोड़ी भारतीय सिनेमा की सबसे कामयाब जोड़ियों में से एक थी. राज कपूर की फिल्मों के लिए शैलेन्द्र ने कई अविस्मरणीय गीत लिखे, जिनमें “आवारा हूँ” (आवारा), “मेरा जूता है जापानी” (श्री 420), और “किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार” (अनाड़ी) जैसे गीत शामिल हैं. इन गीतों में समाज के सबसे निचले तबके के लोगों की भावनाओं को दर्शाया गया था.

शैलेन्द्र के गीतों में मानवीय संवेदना, आशा और दार्शनिकता का अद्भुत मिश्रण मिलता है. उन्होंने 171 हिंदी और 6 भोजपुरी फिल्मों के लिए गीत लिखे और अपने गीतों के लिए तीन बार फिल्मफेयर पुरस्कार भी जीता.

गीत: –

  • ‘मेरा जूता है जापानी’ – (फिल्म: श्री 420)
  • ‘आवारा हूँ’ – (फिल्म: आवारा)
  • ‘आज फिर जीने की तमन्ना है’ – (फिल्म: गाइड)
  • ‘गाता रहे मेरा दिल’ – (फिल्म: गाइड)
  • ‘अजीब दास्तां है ये’ – (फिल्म: दिल अपना और प्रीत पराई)
  • ‘सजन रे झूठ मत बोलो’ – (फिल्म: तीसरी कसम)
  • ‘ये रात भीगी भीगी’ – (फिल्म: चोरी चोरी)
  • ‘किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार’ (फिल्म: अनाड़ी)

शैलेन्द्र ने फिल्म ‘तीसरी कसम’ का निर्माण भी किया. इस फिल्म को बनाने में उन्हें भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा. 14 दिसंबर 1966 को मात्र 43 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ था.

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फ़्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों

फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों भारतीय वायु सेना के एक वीर सैनिक थे, जिन्हें वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान उनकी बहादुरी और वीरता के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. वे भारतीय वायु सेना के पहले और एकमात्र ऐसे पायलट हैं जिन्हें यह सर्वोच्च सैन्य सम्मान मरणोपरांत प्रदान किया गया है.

निर्मलजीत सिंह सेखों का जन्म  17 जुलाई 1943 को लुधियाना, पंजाब, ब्रिटिश भारत में सेखों गुज्जर सिख परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम फ्लाइट लेफ्टिनेंट तारलोक सिंह सेखों था. उन्हें 4 जून 1967 को पायलट अधिकारी के रूप में भारतीय वायुसेना में सम्मिलित किया गया था.

14 दिसंबर 1971 को फ्लाइंग ऑफिसर सेखों श्रीनगर एयर बेस की सुरक्षा के लिए तैनात थे. उस दिन उन्होंने चार पाकिस्तानी जेएफ-86 सबरे जेट्स के हमले का सामना किया. सेखों ने अपने ग्नाट फाइटर जेट में बहादुरी से दुश्मन का मुकाबला किया और दो दुश्मन विमानों को मार गिराया। हालाँकि, वे इस संघर्ष में वीरगति को प्राप्त हुए.

उनकी इस अदम्य साहस और बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. उनके इस सर्वोच्च बलिदान ने उन्हें भारतीय सैन्य इतिहास में एक अमर नायक बना दिया है.

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