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वीरान शहर और अजीब पहेली-6.

क्रिस्टल का सफर और मंदिर का पुनरुद्धार

गुप्त कक्ष से नीले क्रिस्टल को लेकर बाहर निकलना आसान नहीं था. क्रिस्टल से निकलने वाली ऊर्जा चंचल को तो शक्ति दे रही थी, पर दूसरों के लिए यह थोड़ी भारी महसूस हो रही थी. सूरज और उमेश ने बड़ी सावधानी से क्रिस्टल को उठाया. यह इतना चमकदार था कि उन्हें कभी-कभी अपनी आँखें भी बंद करनी पड़ रही थीं.

रीटा ने चंचल से पूछा, “तुम्हें कैसा लग रहा है, चंचल?”

“मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मैं एक ही समय में हल्का और शक्तिशाली दोनों हूँ,” चंचल ने मुस्कराते हुए कहा. “मुझे लगता है जैसे मेरी बीमारी मुझसे दूर जा रही है.”

उन्होंने बावड़ी से बाहर निकलकर, शहर के केंद्र में स्थित प्राचीन मंदिर की ओर चलना शुरू किया. यह मंदिर भी शहर की तरह ही वीरान और खंडहर में तब्दील हो चुका था. उसकी दीवारें ढह चुकी थीं और उसके अंदर झाड़ियाँ उग आई थीं. पर क्रिस्टल की नीली रोशनी ने रास्ते को कुछ हद तक रोशन कर दिया था.

जैसे-जैसे वे मंदिर के करीब पहुँच रहे थे, चंचल को फिर से अपने अंदर एक अजीब सी ऊर्जा महसूस हुई. यह ऊर्जा दर्दनाक नहीं थी, बल्कि एक तरह का अति-संवेदनशील अनुभव था. उसे शहर की हवा में कुछ पुरानी यादें तैरती हुई महसूस हुईं, जैसे कि हँसी की गूँज, लोगों की बातें और त्योहारों की धूम. यह सब एक साथ मिलकर एक अजीब सी म्यूजिक की तरह उसके कानों में बज रहा था. यह प्राचीन शहर की आत्मा थी, जो क्रिस्टल की ऊर्जा से जागृत हो रही थी.

मंदिर के मुख्य द्वार पर पहुँचते ही, उन्हें एक बड़ी, नक्काशियों वाली वेदी दिखाई दी. यह वेदी शायद उसी क्रिस्टल को रखने के लिए बनाई गई थी. वेदी पर भी वही गोलाकार प्रतीक बना हुआ था जो बावड़ी के शिलालेखों और डायरी में था.

सूरज और उमेश ने क्रिस्टल को बड़ी सावधानी से उठाया और उसे वेदी पर रख दिया. जैसे ही क्रिस्टल वेदी के संपर्क में आया, एक प्रचंड नीली रोशनी निकली, जिसने पूरे मंदिर को रोशन कर दिया. रोशनी इतनी तेज़ थी कि उन्हें अपनी आँखें बंद करनी पड़ीं. जब उन्होंने आँखें खोलीं, तो देखा कि रोशनी मंदिर की टूटी हुई दीवारों से होकर पूरे शहर में फैल रही थी.

रोशनी के साथ ही, मंदिर के चारों ओर की हवा में एक अजीब सी कंपन महसूस हुई. टूटी हुई दीवारें और पत्थर धीरे-धीरे हिलने लगे, और उन पर छोटी-छोटी हरी पत्तियाँ उगने लगीं. ऐसा लगा जैसे शहर फिर से साँस ले रहा हो. सूखी बावड़ी से पानी की कलकल आवाज़ आने लगी और उसमें से नीली रोशनी के साथ पानी बहने लगा.

चंचल को लगा जैसे उसके शरीर में एक विद्युत धारा दौड़ गई हो. उसकी बीमारी के सारे लक्षण गायब हो गए थे. उसका शरीर हल्का महसूस हो रहा था, और उसका मन शांत और स्पष्ट था. वह अब पहले से कहीं ज़्यादा स्वस्थ और ऊर्जावान महसूस कर रहा था. यह सिर्फ बीमारी का इलाज नहीं था, यह एक कायाकल्प था.

दूर, उनके घर पर, दादा प्रवेश और दादी कल्पना भी इस रोशनी को देखकर आश्चर्यचकित थे. दादी कल्पना की आँखों में आँसू थे, “शांतिपुर… फिर से जाग गया!”

अब यह सिर्फ एक वीरान शहर नहीं था. नीली रोशनी ने उसमें फिर से जान डाल दी थी. पर क्या यह शहर फिर से अपनी पुरानी महिमा पा सकेगा? क्या चंचल और उसके दोस्त इस प्राचीन ज्ञान का उपयोग करके इसे फिर से आबाद कर पाएंगे? यह तो सिर्फ शुरुआत थी.

इस घटना के बाद चंचल और शहर का भविष्य क्या हुआ?

शेष भाग अगले अंक में…,

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