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व्यक्ति विशेष – 697.

आध्यात्मिक गुरु सत्य साईं बाबा

सत्य साईं बाबा जिनका जन्म 23 नवंबर 1926 को भारत के आंध्र प्रदेश राज्य के पुट्टपर्थी गांव में हुआ था. आध्यात्मिक गुरु और शिक्षक के रूप में विश्वभर में प्रसिद्ध हैं सत्य साईं बाबा. उन्होंने 14 वर्ष की उम्र में अपनी आध्यात्मिक यात्रा शुरू की और घोषित किया कि वे शिरडी साईं बाबा के पुनर्जन्म हैं.

सत्य साईं बाबा ने अपने जीवन को धर्मार्थ कार्यों, शिक्षा की पहुंच बढ़ाने, और स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ बनाने में समर्पित किया. उन्होंने विशेष रूप से पुट्टपर्थी में सत्य साईं संस्थान की स्थापना की, जहाँ उन्होंने एक विश्वविद्यालय, एक अस्पताल, और विभिन्न शैक्षिक संस्थान स्थापित किए. उनकी धार्मिक और समाज सेवा की पहलों में लोगों को नि:शुल्क शिक्षा, चिकित्सा सेवाएं, और पीने का स्वच्छ पानी प्रदान करना शामिल था.

सत्य साईं बाबा की शिक्षाएं मुख्य रूप से प्रेम, शांति, और धर्मनिष्ठा पर केंद्रित थीं. वे यह भी सिखाते थे कि सभी प्रमुख धर्मों के मूल में एक ही सत्य है, और उन्होंने अपने अनुयायियों को विभिन्न धार्मिक पृष्ठभूमियों का सम्मान करने की शिक्षा दी थी.

सत्य साईं बाबा का निधन 24 अप्रैल 2011 को पुट्टपर्थी, आन्ध्र प्रदेश में हुआ था. उनके निधन के बाद सत्य साईं बाबा के अनुयायी उनकी शिक्षाओं का पालन करते हैं और विश्वभर में उनके द्वारा स्थापित विभिन्न धर्मार्थ संस्थानों के माध्यम से समाज सेवा के कार्यों को जारी रखें  हैं.

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पहली महिला जज एम फातिमा बीबी

एम. फातिमा बीबी भारत की पहली महिला जज थीं, जिन्हें सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) में नियुक्त किया गया. उनका पूरा नाम मीरा साहिब फातिमा बीबी था और उनका जन्म 30 अप्रैल 1927 को केरल के एक मुस्लिम परिवार में हुआ था. उन्होंने 6 अक्टूबर 1989 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश के रूप में शपथ ली.

फातिमा बीबी ने कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद वर्ष 1950 में न्यायिक सेवा में प्रवेश किया. उन्होंने विभिन्न न्यायिक पदों पर काम किया और अपनी कड़ी मेहनत, निष्ठा और न्यायप्रियता के कारण वर्ष 1983 में केरल हाई कोर्ट की जज बनीं. इसके बाद, वर्ष 1989 में वह सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्त की गईं, जिससे उन्होंने भारतीय न्यायिक प्रणाली में महिलाओं के लिए एक नया अध्याय खोला.

उनके कार्यकाल में उन्होंने कई महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई की और न्यायिक फैसले दिए, जो भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में महत्वपूर्ण माने जाते हैं. फातिमा बीबी का योगदान महिलाओं के अधिकारों और समानता की दिशा में विशेष रूप से महत्वपूर्ण रहा.

सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त होने के बाद, उन्हें वर्ष 1997 में तमिलनाडु राज्य की राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया, जिससे वह भारत की पहली महिला राज्यपाल भी बनीं. फातिमा बीबी का निधन 23 नवंबर 2023 को हुआ था. उन्होंने न्यायपालिका और समाज में महिलाओं की भूमिका को मजबूत करने में अहम योगदान दिया, और उनकी उपलब्धियां आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं.

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पा‌र्श्वगायिका गीता दत्त

गीता दत्त भारतीय सिनेमा की एक प्रमुख पार्श्वगायिका थीं. उनका पूरा नाम गीता घोष राय चौधरी था. उनकी दिलकश आवाज़ से लगभग तीन दशकों तक करोड़ों श्रोताओं को मदहोश किया. उन्होंने वर्ष 1940 – 50 के दशक में हिंदी और बंगाली सिनेमा में कई यादगार गीत गाए. उनकी आवाज़ में एक विशेष मिठास और भावनात्मक गहराई थी, जिसने उन्हें उस समय की सबसे प्रमुख गायिकाओं में से एक बना दिया.

गीता दत्त का जन्म 23 नवंबर 1930 को फरीदपुर शहर में हुआ था. उन्होंने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा हनुमान प्रसाद से ली थी. गीता दत्त ने अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 1946 में फ़िल्म ‘भक्त प्रहलाद’ से की थी.

सदाबहार गीत: – “तदबीर से बिगड़ी हुई तकदीर बना ले” (1951, फिल्म: “बाज़ी”), “मेरा सुंदर सपना बीत गया” (1952, फिल्म: “दो भाई”), “वक्त ने किया क्या हसीं सितम” (1959, फिल्म: “कागज़ के फूल”), “न जाने क्या हुआ” (1956, फिल्म: “तुमसा नहीं देखा”), “ऐ दिल मुझे बता दे” (1952, फिल्म: “भाई-भाई”).

गीता दत्त का विवाह फिल्म निर्देशक और अभिनेता गुरुदत्त से हुआ था. उनका विवाह व्यक्तिगत और पेशेवर दोनों तरह से महत्वपूर्ण था. गुरुदत्त के निर्देशन में बनी कई फिल्मों में गीता दत्त ने संगीत दिया और अपने कैरियर की कुछ बेहतरीन गीत गाए. हालांकि, उनके व्यक्तिगत जीवन में तनाव और समस्याएं भी रहीं, जिनका उनके कैरियर पर प्रभाव पड़ा.

20 जुलाई 1972 को 41 वर्ष की आयु में गीता दत्त का निधन हो गया. उनके निधन के बाद भी, उनके गाए गीत आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों में बसे हुए हैं और उनकी याद ताजा करते हैं.गीता दत्त की आवाज़ में एक विशेष मिठास और गहराई थी, जो उनके गीतों को अनमोल बना देती है. वह भारतीय संगीत की दुनिया में हमेशा याद की जाएंगी.

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अभिनेत्री तनिष्ठा चटर्जी

तनिष्ठा चटर्जी एक भारतीय फिल्म अभिनेत्री हैं, जो अपनी विविधतापूर्ण भूमिकाओं और सशक्त अभिनय के लिए जानी जाती हैं. उनका जन्म 23 नवंबर 1980 को पुणे, महाराष्ट्र के एक बंगाली हिन्दू परिवार में हुआ था. उनके पिता एक बिजनेस मैंन और माँ एक राजनीती शास्त्र की लेक्चरर थीं.

तनिष्ठा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पुणे में प्राप्त की और बाद में दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्रीराम कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की. उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से रसायन विज्ञान में मानक डिग्री प्राप्त की है. इसके बाद उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा से अभिनय की बारीकियां सीखी.

तनिष्ठा ने अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 2003 में फिल्म ‘रंग दे बसंती’ से की, जिसमें उन्होंने एक सहायक भूमिका निभाई. इसके बाद, उन्होंने ‘ब्रिक लेन’ (2007), ‘पार्च्ड’ (2015), ‘लायन’ (2016) और ‘अनइंडियन’ (2015) जैसी फिल्मों में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं. उनकी फिल्म ‘पार्च्ड’ में उनके अभिनय को विशेष सराहना मिली, और उन्होंने इसके लिए कई पुरस्कार भी जीते.

तनिष्ठा चटर्जी ने हमेशा लीक से हटकर फिल्मों को तवज्जो दी है और अपने अभिनय से दर्शकों को प्रभावित किया है. उनकी आगामी परियोजनाओं के लिए दर्शक उत्सुक हैं.

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अभिनेत्री अमरुता खांविलकर

अमृता खानविलकर एक भारतीय अभिनेत्री और नृत्यांगना हैं, जो मुख्य रूप से मराठी और हिंदी सिनेमा में सक्रिय हैं. वह अपनी खूबसूरती, अभिनय क्षमता और नृत्य के लिए जानी जाती हैं.

अमृता खानविलकर का जन्म 23 नवंबर 1984 को पुणे महाराष्ट्र में हुआ था. अमृता 96 कुली मराठा वंश से ताल्लुकात रखती हैं. अमृता ने अपनी शिक्षा मुंबई में पूरी की और अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत मराठी फिल्मों से की. अमृता की शादी टीवी अभिनेता हिमांशु से हुई है. दोनों ने अपने रियलिटी शो और व्यक्तिगत जीवन में साथ में सफलता प्राप्त की है.

मराठी फिल्में:  –

कट्यार कलजात घुसली (2015): – मराठी फिल्म उद्योग में उनकी सबसे प्रसिद्ध फिल्मों में से एक है.

नटरंग (2010): – इस फिल्म में उनके नृत्य और अभिनय को खूब सराहा गया.

चौकट राजा (2021) और कई अन्य लोकप्रिय फिल्में.

हिंदी फिल्में:  –

उन्होंने हिंदी फिल्म “राज़ी” (2018) में भी अभिनय किया, जिसमें उन्होंने आलिया भट्ट की ननद की भूमिका निभाई.

“मलंग” (2020) में भी उनकी उपस्थिति को सराहा गया.

टेलीविजन करियर: –

अमृता ने टेलीविजन रियलिटी शो “नच बलिए 7″ जीता.

वह “झलक दिखला जा” में भी नजर आईं और अपने डांस से दर्शकों को प्रभावित किया.

अमृता ने न केवल फिल्मों बल्कि अपने नृत्य कौशल से भी लोगों का दिल जीता है. वह मराठी फिल्म उद्योग की प्रमुख अभिनेत्रियों में से एक मानी जाती हैं. उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिनमें महाराष्ट्र राज्य फिल्म पुरस्कार भी शामिल हैं. अमृता अपनी बहुमुखी प्रतिभा और सुंदरता के लिए जानी जाती हैं. मराठी और हिंदी सिनेमा में उनकी भूमिकाओं ने उन्हें एक सशक्त अभिनेत्री के रूप में स्थापित किया है.

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वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस

जगदीश चंद्र बोस एक महान भारतीय वैज्ञानिक, भौतिकशास्त्री, जीवविज्ञानी और लेखक थे. उन्हें रेडियो विज्ञान और बायोफिज़िक्स के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए जाना जाता है. वे पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने यह सिद्ध किया कि पौधों में भी संवेदनाएं होती हैं.

जगदीश चंद्र बोस का जन्म 30 नवम्बर 1858 को बंगाल (अब बांग्लादेश) में ढाका जिले के फरीदपुर के मेमनसिंह में एक प्रख्यात बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था. उनके पिता भगवान चन्द्र बसु ब्रह्म समाज के नेता थे और फरीदपुर, बर्धमान एवं अन्य जगहों पर उप-मैजिस्ट्रेट या सहायक कमिश्नर थे. बोस की शिक्षा एक बांग्ला विद्यालय में प्रारंभ हुई, जो उनके भारतीय मूल को मजबूत करने का एक उद्देश्य था. बोस ने कोलकाता के सेंट जेवियर्स कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली, उसके बाद वे  लंदन विश्वविद्यालय और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में भौतिकी और प्राकृतिक विज्ञान का अध्ययन किया.

जगदीश चंद्र बोस ने वर्ष 1895 में पहली बार माइक्रोवेव और रेडियो तरंगों को प्रसारित किया. उन्होंने “मर्क्युरी कोहरे वाले रिसीवर” का निर्माण किया, जो रेडियो तरंगों को पकड़ने में सक्षम था. हालांकि, उन्हें पेटेंट कराने में रुचि नहीं थी, क्योंकि उनका मानना था कि ज्ञान मानवता के लिए होता है. उनके कार्यों को बाद में इतालवी वैज्ञानिक गुगलियेल्मो मार्कोनी द्वारा सराहा गया.

जगदीश चंद्र बोस ने यह सिद्ध किया कि पौधे भी संवेदनशील होते हैं और बाहरी उत्तेजनाओं का जवाब देते हैं. उन्होंने पौधों की गतिविधियों का अध्ययन करने के लिए “क्रेस्कोग्राफ” (Crescograph) नामक यंत्र का आविष्कार किया. उनके प्रयोगों ने यह साबित किया कि पौधे प्रकाश, तापमान, चोट और रसायनों पर प्रतिक्रिया करते हैं.

जगदीश चंद्र बोस ने विज्ञान को भारतीय संस्कृति और दर्शन से जोड़ा. उन्होंने कई कहानियां और लेख लिखे, जिनमें भारतीय मिथकों और विज्ञान के बीच की समानता को दिखाया गया.

सम्मान और उपलब्धियां

रॉयल सोसाइटी, लंदन के फेलो (FRS): 1920 में सम्मानित.

उन्होंने वर्ष 1917 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस की स्थापना की, जो आज भी अनुसंधान के लिए प्रसिद्ध है. वे अपने वैज्ञानिक कार्यों के साथ-साथ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से भी जुड़े हुए थे.

जगदीश चंद्र का निधन 23 नवंबर 1937 को हुआ था. उन्हें आधुनिक भारतीय विज्ञान का जनक कहा जाता है. उनका वैज्ञानिक दृष्टिकोण और उपकरण आविष्कार आज भी कई शोधकर्ताओं के लिए प्रेरणा है. उनकी जयंती हर साल “राष्ट्रीय विज्ञान दिवस” के रूप में मनाई जाती है.

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