चंचल, सूरज, उमेश और रीटा ने नक्शे पर बने रहस्यमय निशानों का पीछा करना शुरू किया. यह निशान उन्हें शहर के सबसे पुराने और वीरान हिस्सों की ओर ले जा रहे थे, जहाँ अब सिर्फ खंडहर और झाड़ियाँ बची थीं. हर कदम पर उन्हें लगता कि वे किसी पुरानी कहानी के पन्नों को पलट रहे हैं, जहाँ धूल भरी हवाएँ फुसफुसाती हुई सी प्रतीत होती थीं.
एक दिन, वे एक ऐसे खंडहर के पास पहुँचे, जो कभी शहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा होगा. वहाँ एक पुरानी बावड़ी थी, जिसके बारे में लोगों का कहना था कि वह सैकड़ों सालों से सूख चुकी है. नक्शे का एक निशान ठीक उसी बावड़ी की ओर इशारा कर रहा था. जैसे ही वे बावड़ी के करीब पहुँचे, चंचल को फिर से अपने अंदर वही अजीब सी बेचैनी महसूस होने लगी, जो उसकी बीमारी के दौरान अक्सर होती थी.
“मुझे लगता है… यहीं कुछ है,” चंचल ने काँपते हुए कहा. उसकी आँखें चमक रही थीं, मानो वह कुछ ऐसा देख रहा हो जो बाकी किसी को दिखाई नहीं दे रहा था.
रीटा ने उसका हाथ पकड़ा. “क्या हुआ, चंचल? तुम्हें कैसा लग रहा है?”
चंचल ने अपनी आँखों से बावड़ी के गहरे अँधेरे को घूरते हुए कहा, “एक आवाज़… मुझे कुछ बुला रही है.”
सूरज और उमेश ने टॉर्च जलाई और बावड़ी के अंदर झाँकने की कोशिश की, पर अँधेरा इतना घना था कि कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था. तभी, उमेश को जमीन पर कुछ अजीब से शिलालेख दिखाई दिए. ये वही प्रतीक थे जो चंचल को अपने सपनों में दिखते थे और नक्शे पर बने थे.
“देखो! ये वही निशान हैं!” उमेश चिल्लाया.
उन्होंने ध्यान से उन निशानों को देखा. वे किसी प्राचीन भाषा में लिखे गए थे और उनके बीच एक गोलाकार प्रतीक था, जिसके बीच में एक छोटा सा छेद था. चंचल को अचानक याद आया कि उसने सपने में एक छोटी चाबी भी देखी थी.
अगले कुछ दिनों तक, वे उस चाबी की तलाश में भटकते रहे. उन्होंने दादा प्रवेश और दादी कल्पना से भी पुरानी कहानियों के बारे में पूछा, पर उन्हें कोई सीधा जवाब नहीं मिला. दादी कल्पना अक्सर धुँधली यादों में खो जाती थीं, और दादा प्रवेश हमेशा की तरह शांत रहते थे.
एक शाम, जब चंचल अपनी पुरानी किताबों को उलट रहा था, उसे एक पुरानी डायरी मिली. यह डायरी उसके परदादा की थी, जिनके बारे में उसने सिर्फ कहानियाँ सुनी थीं. डायरी के पन्नों पर अजीबोगरीब चित्र और कुछ ऐसे ही निशान बने थे जो बावड़ी के पास मिले थे। डायरी में एक जगह लिखा था: “चाबी छिपी है, जहाँ सूरज की पहली किरण पड़ती है, उस जगह जहाँ जीवन का अंतिम गीत गाया गया था.”
जीवन का अंतिम गीत? चंचल को समझ नहीं आया. उसने रीटा, सूरज और उमेश को डायरी दिखाई. रीटा ने ध्यान से पढ़ा और अचानक उसकी आँखों में चमक आ गई.
“मुझे लगता है मुझे पता है ‘जीवन का अंतिम गीत’ कहाँ गाया गया था,” रीटा ने उत्साहित होकर कहा. “दादी कल्पना बताती थीं कि शहर के पुराने कब्रिस्तान में एक बूढ़ा संगीतकार रहता था जो अपनी मौत के दिन तक वहाँ गाना गाता रहा. शायद चाबी वहीं हो!”
क्या रीटा का अनुमान सही था? क्या कब्रिस्तान में उन्हें वह चाबी मिलेगी जो बावड़ी के रहस्य को सुलझासकती थी? और चंचल की बीमारी का इन सब से क्या संबंध था?
शेष भाग अगले अंक में…,



