व्यक्ति विशेष – 692.
अभिनेता और निर्माता-निर्देशक वी शांताराम
वी. शांताराम भारतीय सिनेमा के महान फिल्म निर्माता, निर्देशक और अभिनेता थे, जिन्हें भारतीय फिल्म उद्योग में उनके अनोखे योगदान के लिए जाना जाता है. उनका पूरा नाम शांताराम राजाराम वंकुदरे था, और उनका जन्म 18 नवंबर 1901 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर में हुआ था. शांताराम का फिल्मी कैरियर छह दशकों से अधिक लंबा था, जिसमें उन्होंने भारतीय सिनेमा को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया.
वी. शांताराम ने अपने कैरियर की शुरुआत मूक फिल्मों से की और धीरे-धीरे भारतीय सिनेमा में एक अग्रणी निर्देशक बन गए. वर्ष 1929 में उन्होंने ‘अयोध्या का राजा’ बनाई, जो भारत की पहली बोलने वाली फिल्मों में से एक थी. इसके बाद उन्होंने कई फिल्मों का निर्देशन किया, जो सामाजिक मुद्दों और नैतिकता पर आधारित थीं. उनकी फिल्में यथार्थवादी कथानकों, संवेदनशीलता, और तकनीकी उत्कृष्टता के लिए प्रसिद्ध थीं.
प्रमुख फिल्में: –
दो आँखे बारह हाथ (1957): – यह फिल्म एक आदर्शवादी जेलर की कहानी है, जो कैदियों को सुधारने की कोशिश करता है. इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहा गया और बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में सिल्वर बियर अवार्ड मिला.
नवरंग (1959): – यह फिल्म रंगीन सिनेमैटोग्राफी और संगीत के लिए मशहूर है, जिसमें रंग और कला की सुंदरता को दर्शाया गया है.
झनक झनक पायल बाजे (1955): – यह एक संगीतमय नृत्य-आधारित फिल्म है, जिसने भारतीय शास्त्रीय नृत्य की खूबसूरती को पर्दे पर पेश किया.
वी. शांताराम ने प्रभात फिल्म कंपनी की स्थापना की, जो भारतीय सिनेमा के पहले प्रमुख स्टूडियो में से एक था. बाद में, उन्होंने राजकमल स्टूडियो की भी स्थापना की, जहां कई अद्वितीय फिल्में बनीं. वे समाज में फैले अंधविश्वासों, दहेज प्रथा, जातिवाद, और गरीबों की दुर्दशा जैसे मुद्दों को अपनी फिल्मों के माध्यम से उठाते रहे.
वी. शांताराम को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिसमें दादासाहेब फाल्के पुरस्कार भी शामिल है, जो भारतीय सिनेमा का सबसे बड़ा सम्मान है. उनका निधन 30 अक्टूबर 1990 को हुआ, लेकिन उनके काम और सिनेमा के प्रति समर्पण ने उन्हें एक अमर कलाकार बना दिया.
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क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त
बटुकेश्वर दत्त भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के उन महान क्रांतिकारियों में से थे जिनका नाम भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु के साथ लिया जाता है. बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवंबर 1910 को बंगाली कायस्थ परिवार में ग्राम-औरी, ज़िला-नानी बेदवान (बंगाल) में हुआ था. उनके पिता का नाम गोष्ठ बिहारी दत्त था. उन्होंने 1924 में मैट्रिक की परीक्षा पास की और तभी माता व पिता दोनों का देहान्त हो गया. उन्होंने स्नातक स्तरीय शिक्षा पी.पी.एन. कॉलेज, कानपुर से की.
वर्ष 1924 में उनकी मुलाकात भगतसिंह से हुई और वे हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए और उन्होंने बम बनाना सीखा और क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रहे. 8 अप्रैल 1929 को बटुकेश्वर दत्त ने भगत सिंह के साथ मिलकर ब्रिटिश सरकार की गूंगी बहरी आवाज़ को सुनाने के लिए केंद्रीय विधान सभा में बम फेंका और गिरफ्तारी दी. इस घटना ने उन्हें देश भर में चर्चा का विषय बना दिया.
इस घटना के बाद उन्होंने और भगतसिंह ने भागने का प्रयास नहीं किया, ताकि अदालत में अपने विचार रख सकें। उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा हुई और काला पानी (अंडमान जेल) भेजा गया. जेल में उन्होंने ऐतिहासिक भूख हड़ताल की, जिसके बाद बांकीपुर जेल, पटना में स्थानांतरित हुए और वर्ष 1938 में रिहा हुए.
काला पानी से गंभीर बीमारी लेकर लौटने के बाद भी, वे वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हुए और एक बार फिर गिरफ्तार हुए. स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1963 में वे बिहार विधान परिषद के सदस्य बने. क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त का निधन 20 जुलाई 1965 को दिल्ली के AIIMS में हुआ था.
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इतिहासकार कर्नल टॉड
कर्नल जेम्स टॉड एक अंग्रेजी अधिकारी और इतिहासकार थे, जो भारतीय इतिहास और संस्कृति के प्रति उनकी गहन रुचि के लिए विख्यात हैं. कर्नल टॉड का जन्म 20 मार्च 1782 को इंग्लैड के ‘इंस्लिग्टन’ नामक स्थान पर हुआ था और उनका निधन 18 नवंबर 1835 को लंदन, इंग्लैंड में हुआ. वर्ष 1799 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में भारत आए. टॉड को राजस्थान के राजपूत राज्यों के राजनीतिक एजेंट के रूप में नियुक्त किया गया था. वहाँ उनकी भूमिका में, उन्होंने राजपूताना के इतिहास, संस्कृति, और भूगोल पर गहराई से अध्ययन किया.
जेम्स टॉड ने “Annals and Antiquities of Rajasthan” नामक कृति लिखी, जिसमें उन्होंने राजपूताना के विभिन्न राजवंशों के इतिहास को विस्तार से दर्ज किया. इस पुस्तक में, उन्होंने राजपूतों के पराक्रम, उनकी सामाजिक रीति-नीति, और उनकी कला एवं वास्तुकला पर विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया. टॉड का काम राजपूताना की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर को दस्तावेजीकृत करने में महत्वपूर्ण है, और उन्हें अक्सर “राजपूताना के इतिहासकार” के रूप में जाना जाता है.
हालांकि, टॉड के काम को लेकर कुछ आलोचनाएं भी हैं. कुछ आधुनिक इतिहासकार मानते हैं कि उनकी लेखनी में राजपूतों की रोमांटिक छवि को अधिक महिमामंडित किया गया है और कुछ ऐतिहासिक तथ्यों को आदर्शवादी तरीके से पेश किया गया है. फिर भी, उनका काम राजस्थान के इतिहास और संस्कृति के अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता है.
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मेजर शैतान सिंह
मेजर शैतान सिंह (1 दिसंबर 1924 – 18 नवंबर 1962) भारतीय सेना के एक वीर और सम्मानित अधिकारी थे, जिन्हें भारत-चीन युद्ध (1962) के दौरान लद्दाख के चुशूल सेक्टर में रेजांग ला की लड़ाई में असाधारण वीरता और साहस दिखाने के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. यह भारत का सर्वोच्च सैन्य सम्मान है.
शैतान सिंह का जन्म 1 दिसम्बर 1924 को जोधपुर, राजस्थान में हुआ था. इनका पूरा नाम शैतान सिंह भाटी था. उनके पिता हेमसिंह जी भाटी भी सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल थे. शैतान सिंह का परिवार सैन्य पृष्ठभूमि से था, और उन्हें बचपन से ही देशभक्ति और साहस की प्रेरणा मिली. मेजर शैतान सिंह भारतीय सेना की 13वीं कुमाऊं रेजिमेंट में अधिकारी थे. उन्होंने कई सैन्य अभियानों में भाग लिया और अपने नेतृत्व कौशल के लिए प्रसिद्ध थे.
रेजांग ला लद्दाख क्षेत्र में 16,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. इस लड़ाई में 13वीं कुमाऊं रेजिमेंट की “सी” कंपनी ने मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में चीनी सेना के हजारों सैनिकों का मुकाबला किया. उनकी कंपनी में मात्र 120 सैनिक थे. 18 नवम्बर 1962 को अत्यधिक प्रतिकूल परिस्थितियों (कड़ाके की ठंड और सीमित संसाधन) के बावजूद, उन्होंने अद्भुत साहस और बलिदान का प्रदर्शन किया. शैतान सिंह ने अपने जवानों का हौसला बनाए रखा और घायल होने के बावजूद अंतिम समय तक लड़ाई का नेतृत्व किया. इस लड़ाई में उनकी पूरी टुकड़ी ने वीरगति प्राप्त की, लेकिन भारतीय सैनिकों ने चीनी सेना को भारी नुकसान पहुंचाया.
भारत सरकार ने मेजर शैतान सिंह को उनकी असाधारण वीरता और बलिदान के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया. उनका बलिदान भारतीय सेना और राष्ट्र के लिए प्रेरणा का स्रोत है. मेजर शैतान सिंह भारत के उन सपूतों में से एक हैं, जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी.
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अभिनेता और निर्देशक धीरेन्द्र नाथ गांगुली
धीरेन्द्र नाथ गांगुली, जिन्हें अधिकतर लोग धीरेन गांगुली के नाम से जानते हैं, बंगाली सिनेमा के प्रमुख अभिनेता और निर्देशक थे. वे भारतीय सिनेमा के प्रारंभिक दिनों के एक उल्लेखनीय व्यक्तित्व थे और उन्होंने बंगाली थिएटर और सिनेमा में अपने योगदान के लिए ख्याति प्राप्त की.
धीरेन गांगुली का जन्म 26 मार्च 1893 को कलकत्ता (अब कोलकाता) में हुआ था.इन्होंने अपनी शिक्षा ‘विश्व भारती विश्वविद्यालय’, शांतिनिकेतन से ग्रहण की और बाद में हैदराबाद के राज्य आर्ट स्कूल में हेडमास्टर बने.
धीरेन गांगुली ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत मूक फिल्म युग में की थी और बाद में उन्होंने टॉकी फिल्मों में भी काम किया. वे अपने समय के एक प्रगतिशील निर्देशक माने जाते थे और उन्होंने सामाजिक मुद्दों पर आधारित कई फिल्में बनाईं. उनकी कुछ फिल्में उस समय के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य को दर्शाती हैं.
धीरेन गांगुली ने न केवल निर्देशन में अपनी प्रतिभा दिखाई, बल्कि वे एक कुशल अभिनेता भी थे. उनके काम ने बंगाली सिनेमा को नई दिशा और पहचान दी. उनके योगदान को भारतीय सिनेमा के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है और उनकी रचनाएँ आज भी सिनेमा प्रेमियों द्वारा सराही जाती हैं. धीरेन्द्र नाथ गांगुली का निधन 18 नवम्बर 1978 को हुआ था.



