पिछले चार संकटों से गुज़रने के बाद, शहर ने स्थिरता और शांति का एक लंबा दौर देखा. राघव अब एक सम्मानित बूढ़ा व्यक्ति था, जिसकी बातें शहर के लिए एक मार्गदर्शक की तरह थीं. लोगों ने प्रकृति, भावना और निजता के बीच संतुलन बनाना सीख लिया था. लेकिन इस बार, खतरा न तो आसमान से आया, न ज़मीन से और न ही किसी टेक्नोलॉजी से. यह उन सबसे बड़ा था, क्योंकि यह खुद इंसान के अंदर से पैदा हुआ.
शहर के सबसे अनुभवी और बुद्धिमान लोगों ने एक नया आंदोलन शुरू किया, जिसका नाम था “पूर्णता का अभियान”. उनका मानना था कि अब तक उन्होंने जो कुछ सीखा है, उसे इस्तेमाल करके वे एक ऐसा समाज बना सकते हैं जो पूरी तरह से त्रुटिहीन हो. हर गलती, हर असफलता को खत्म कर दिया जाएगा। यह पूर्णता का टॉर्चर था.
राघव ने तुरंत इस खतरे को पहचान लिया. उसने लोगों को समझाया, “गलतियाँ करना हमारी इंसानियत का हिस्सा है. असफलता हमें सिखाती है, और दुख हमें मजबूत बनाता है. अगर हम इन्हें खत्म कर देंगे, तो हम भी खत्म हो जाएँगे.” लेकिन लोग उसके पुराने अनुभवों से थक चुके थे. वे एक नया, बेहतर समाज बनाना चाहते थे, जहाँ कोई कमी न हो.
अभियान के तहत, बच्चों को सिर्फ वही सिखाया जाने लगा जिसमें वे सर्वोत्तम थे. अगर कोई बच्चा चित्र बनाने में अच्छा नहीं था, तो उसे कभी पेंसिल नहीं दी जाती थी. अगर कोई संगीत में अच्छा नहीं था, तो उसे संगीत से दूर रखा जाता था. धीरे-धीरे, शहर में सिर्फ विशेषज्ञ बचे. हर कोई अपने क्षेत्र में सिद्धहस्त था, लेकिन उनमें इंसानियत की कमी थी.
गलतियाँ करने का डर इतना बढ़ गया था कि लोग कुछ नया करने की हिम्मत नहीं करते थे. कोई नई कहानी नहीं लिखी जाती थी, कोई नया गाना नहीं गाया जाता था. हर कोई वही कर रहा था जिसमें वह माहिर था. राघव को महसूस हुआ कि शहर अपनी आत्मा खो रहा है. यह एक सुंदर जेल की तरह था, जहाँ सब कुछ सही था, पर कुछ भी जीवंत नहीं था.
राघव ने अपने अंतिम अभियान की शुरुआत की। उसने अपने घर का दरवाजा खोला, और अंदर जाकर सबसे पुरानी और सबसे गलत पेंटिंग बनाई जो वह बना सकता था. वह टेढ़े-मेढ़े नोट्स पर सबसे बेसुरा गाना बजाने लगा. राघव के इस पागलपन को देखकर लोग उसे पागल कहने लगे.
लेकिन कुछ बच्चों ने राघव को देखा. वे उसके पास आए और डरते हुए पूछा, “आप यह क्यों कर रहे हैं?” राघव ने जवाब दिया, “मैं इंसान बनने की कोशिश कर रहा हूँ. इंसान गलतियाँ करता है, लेकिन उन गलतियों से ही कुछ नया जन्म लेता है.”
राघव ने उन बच्चों के साथ मिलकर कुछ ऐसा बनाया जो सही नहीं था, लेकिन दिल से बनाया गया था. उन्होंने टूटी हुई लकड़ी से एक ऐसी मूर्ति बनाई जो किसी काम की नहीं थी, लेकिन वह उनकी मेहनत और रचनात्मकता का प्रतीक थी. उन्होंने बेसुरी धुन पर एक ऐसा गाना गाया जिसकी कोई तुक नहीं थी, पर उसमें भावना थी.
धीरे-धीरे, और भी बच्चे उनके साथ जुड़ने लगे. वे अपने डर को छोड़कर कुछ ऐसा करने लगे जिसमें वे अच्छे नहीं थे. वे गिरने लगे, असफल होने लगे, लेकिन हर बार वे हँसते थे. उनकी हँसी, उनकी गलतियाँ, और उनकी असफलता ने मिलकर एक नया समाज बनाया जो सही नहीं था, लेकिन सच्चा था. जब शहर के बुद्धिमान लोगों ने यह देखा, तो उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ. उन्होंने समझ लिया कि पूर्णता एक भ्रम है, और जीवन की असली खूबसूरती उसकी खामियों में है.
राघव एक बार फिर शहर का नायक बन गया. उसने अपनी डायरी में अपना आखिरी सबक लिखा: “सबसे बड़ा टॉर्चर वह है जो हमें अपनी इंसानियत को त्यागने पर मजबूर करता है. जीवन सही होने के बारे में नहीं है, यह जीवित होने के बारे में है.” इस तरह, कहानी समाप्त हुई, लेकिन जीवन का सबक हमेशा के लिए रह गया.
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