पिछली घटनाओं से सबक लेकर, राघव और शहर के लोग अब जीवन में संतुलन बनाए रखने का महत्व समझ चुके थे. लेकिन इस शांति के कुछ साल बाद, एक नई चुनौती सामने आई. इस बार आसमान से नहीं, बल्कि ज़मीन के नीचे से.
एक दिन, शहर में हर जगह अजीबोगरीब पौधे उगने लगे. ये पौधे किसी भी सामान्य वनस्पति से अलग थे; वे कांच जैसे पारदर्शी और रोशनी से चमकते थे. शुरू में तो लोग इनसे मोहित हो गए. हर गली, हर घर में ये पौधे उगने लगे और एक जादुई रोशनी बिखेरने लगे. यह एक सुंदर टॉर्चर था—सौंदर्य का टॉर्चर.
लेकिन जल्द ही इस सुंदरता का भयानक सच सामने आया. इन पौधों ने हवा से नमी और पोषक तत्व सोखना शुरू कर दिया. पहले तो इसका असर सूक्ष्म था, पर धीरे-धीरे मिट्टी बंजर होने लगी और तालाब सूखने लगे. राघव ने इन पौधों के नमूनों की जांच की और पाया कि इनकी जड़ें बहुत गहरी थीं, जो ज़मीन के नीचे के जल स्रोतों को भी सुखा रही थीं.
राघव ने लोगों को समझाया कि यह सुंदरता एक जाल है. “यह पौधे हमें बाहर से खुश कर रहे हैं, पर अंदर से हमें खोखला कर रहे हैं.” लेकिन इस बार लोगों को समझाना सबसे मुश्किल था. कोई भी इतनी खूबसूरत चीज़ को नष्ट नहीं करना चाहता था. वे सुंदरता के आदी हो चुके थे.
राघव जानता था कि यह सिर्फ एक और वैज्ञानिक समस्या नहीं है, यह मानव स्वभाव की सबसे गहरी कमजोरी है—वह सुंदरता और सुख के पीछे भागता है, भले ही वह उसे नुकसान पहुँचा रहा हो. उसने “सौंदर्य का बलिदान” नामक एक अभियान शुरू किया.
राघव और उसके कुछ समर्पित साथी, जिन्होंने पहले भी उसका साथ दिया था, उन पौधों को उखाड़ने लगे. यह एक भावनात्मक रूप से कठिन काम था. लोग उन्हें रोकते, उन पर चिल्लाते. कुछ लोग तो इन पौधों की रक्षा के लिए उनके चारों ओर बैठ जाते.
राघव ने हार नहीं मानी. उसने लोगों से कहा, “हमारा भविष्य इन पौधों से ज़्यादा कीमती है. हमें इस क्षणिक सुंदरता का त्याग करना होगा ताकि हम हमेशा के लिए जीवित रह सकें.” उसने शहर के युवाओं को शामिल किया, उन्हें यह समझाया कि भविष्य उनका है और उन्हें इसे बचाने के लिए लड़ना होगा.
धीरे-धीरे, लोगों को यह बात समझ आने लगी. जब उन्होंने अपने कुएं सूखते देखे और मिट्टी में दरारें पड़ने लगीं, तब उन्हें एहसास हुआ कि राघव सही था. एक-एक करके, लोग अपने घरों के सामने से उन पौधों को उखाड़ने लगे. यह एक सामूहिक त्याग था, जो उन्हें एक बार फिर एकजुट कर रहा था.
जब आखिरी पौधा उखाड़ा गया, तो पूरा शहर उदास और खाली महसूस कर रहा था. लेकिन कुछ ही दिनों में, बारिश हुई. यह कोई साधारण बारिश नहीं थी, बल्कि एक जीवनदायी वर्षा थी जो बंजर ज़मीन को फिर से हरा-भरा कर रही थी.
इस घटना के बाद, राघव ने अपनी डायरी में लिखा, “बादलों ने हमें दुख से लड़ना सिखाया. ऊर्जा धुंध ने हमें अति-उत्साह से बचना सिखाया. और इन पौधों ने हमें सिखाया कि असली सुंदरता वह नहीं जो हमें मोहित करे, बल्कि वह है जो हमें जीवन दे.”
शहर अब एक नया सबक सीख चुका था. वह था—सच्चाई को सुंदरता पर प्राथमिकता देना.
शेष भाग अगले अंक में…,



