
भोजपुरी भाषा की फ़िल्में बनाम बॉलीवुड…
भारतीय सिनेमा एक ऐसा विशाल और बहुरंगी ताना-बाना है, जिसमें क्षेत्रीय सिनेमा की सुगंध और बॉलीवुड की चकाचौंध दोनों ही अपना अलग स्थान रखती हैं. इन्हीं में से एक है भोजपुरी सिनेमा, जो अपनी मिट्टी की खुशबू और जन-जन की भावनाओं से सीधा जुड़ाव रखता है. बॉलीवुड और भोजपुरी सिनेमा के बीच का अंतर सिर्फ भाषा का नहीं, बल्कि संस्कृति, विषय-वस्तु, दर्शक वर्ग और व्यावसायिक मॉडल का है.
भारतीय सिनेमा का यह विशालकाय उद्योग वर्ष 1913 में ‘राजा हरिश्चंद्र’ के साथ शुरू हुआ और समय के साथ देश की सबसे लोकप्रिय मनोरंजन की माध्यम बन गया. यह मुख्यतः हिंदी भाषा में फिल्में बनाता है, लेकिन इसकी पहुँच पूरे देश और विदेश तक है. वहीं, भोजपुरी फिल्म उद्योग की शुरुआत वर्ष 1962 में ‘गंगा मैया तोहे पियरी चढ़ैबो’ फिल्म से मानी जाती है, जिसे एक ब्लॉकबस्टर सफलता मिली. हालाँकि, वर्ष 1980-90 के दशक में यह सस्ती उत्पादन और अश्लीलता (वल्गैरिटी) के आरोपों के चलते गिरावट का शिकार हो गया. 21वीं सदी की शुरुआत में फिल्मों like ‘ससुरा बड़ा पैसा वाला’ (वर्ष 2005) ने इसे पुनर्जीवित किया और एक नए युग की शुरुआत की.
बॉलीवुड की विषय-वस्तु अत्यंत विविधतापूर्ण है. यह रोमांस, एक्शन, थ्रिलर, सामाजिक, ऐतिहासिक, जीवनी, और प्रयोगात्मक सिनेमा सभी को समेटे हुए है. बॉलीवुड की फिल्में अक्सर शहरी और ग्रामीण, दोनों तरह के जीवन को दर्शाती हैं, लेकिन उनमें एक वैश्विक अपील पैदा करने की कोशिश ज़रूर रहती है. यहाँ की कहानियाँ अक्सर “लार्जर दैन लाइफ” होती हैं. भोजपुरी फिल्मों का केंद्र बिंदु अक्सर ग्रामीण जीवन, पारिवारिक मूल्य, सास-बहू के संबंध, प्रेम, सम्मान और सांस्कृतिक रीति-रिवाज होते हैं. इनकी कहानियाँ सीधे-साधे और भावनात्मक ढंग से दर्शकों के दिल तक पहुँचती हैं. हाल के वर्षों में इसमें सामाजिक सन्देश (जैसे बाल विवाह, शिक्षा) और ऐतिहासिक विषयों को भी शामिल किया जा रहा है, लेकिन मुख्य धारा अभी भी मनोरंजन और संस्कृति पर केंद्रित है.
बॉलीवुड के संगीत में पश्चिमी और भारतीय, दोनों ही तरह के प्रभाव स्पष्ट दिखाई देते हैं. गानों को अक्सर विदेशी लोकेशन्स पर शूट किया जाता है और उनकी कोरियोग्राफी जटिल और स्टाइलिश होती है. यह सपनों की दुनिया पेश करता है. वहीं, भोजपुरी गाने लोक संगीत (कजरी, चैता, विरहा) से गहराई से जुड़े हुए हैं. इनके बोल अक्सर सीधे, मस्ती भरे और कभी-कभी दोहरे अर्थ वाले होते हैं. नृत्य भी लोक नृत्यों (जैसे नचनी) से प्रेरित होते हैं और इनमें एक खास तरह की ऊर्जा और उत्सवधर्मिता होती है. यह जीवन के जश्न का प्रतिबिम्ब है.
बॉलीवुड का लक्ष्य दर्शक वर्ग राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फैला हुआ है. यह हर उम्र, वर्ग और क्षेत्र के दर्शकों को संतुष्ट करने का प्रयास करता है. वहीं, भोजपुरी सिनेमा की मुख्य दर्शकीय भोजपुरी भाषी क्षेत्र (बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड) और शहरों में रह रहा मजदूर वर्ग है. यह सिनेमा उनकी अपनी भाषा, संस्कृति और जीवनशैली को सीधे पर्दे पर देखता है, इसलिए उनमें एक अलग ही तरह की सहज पहचान और भावनात्मक जुड़ाव होता है.
बॉलीवुड एक विशाल और संगठित उद्योग है, जहाँ फिल्मों का बजट करोड़ों में होता है. इसमें बड़े स्टूडियो, विपणन की विशाल मशीनरी और वैश्विक वितरण तंत्र शामिल हैं. वहीं, भोजपुरी सिनेमा एक लघु उद्योग की तरह operates करता है, जहाँ बजट अपेक्षाकृत कम होते हैं. फिल्मों की शूटिंग जल्दी पूरी की जाती है और रिलीज भी तेजी से होती है.इसका व्यवसाय मॉडल मुख्य रूप से घरेलू बॉक्स ऑफिस और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर निर्भर है.
अभी भी भोजपुरी सिनेमा की फिल्में एक जैसी कहानियों और स्टीरियोटाइप किरदारों पर निर्भर हैं. कम बजट के चलते कई बार तकनीकी और कलात्मक गुणवत्ता प्रभावित होती है. राष्ट्रीय स्तर पर इसे वह स्वीकार्यता और वितरण नहीं मिल पाता, जो बॉलीवुड को मिलता है.
बॉलीवुड और भोजपुरी सिनेमा के बीच की प्रतिस्पर्धा को ‘बनाम’ के नज़रिए से देखना उचित नहीं है. दरअसल, ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और भारत की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाते हैं. भोजपुरी सिनेमा अपने दर्शकों को सांस्कृतिक पहचान और भावनात्मक सुरक्षा प्रदान करता है, जबकि बॉलीवुड एक बड़े सपने और वैश्विक पहचान का प्रतिनिधित्व करता है.
भविष्य में, दोनों उद्योग एक-दूसरे से सीख सकते हैं। बॉलीवुड, भोजपुरी सिनेमा की सहजता और दर्शकों से सीधे जुड़ाव की कला सीख सकता है, जबकि भोजपुरी सिनेमा बॉलीवुड से तकनीकी पेशेवराना अंदाज और विविधता में कहानी कहने की कला सीख सकता है. OTT प्लेटफॉर्म्स ने भोजपुरी सिनेमा को एक नए दर्शक वर्ग तक पहुँचाने का काम किया है.