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माँ कालरात्रि…

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।

वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥

आश्विन नवरात्री के सातवें दिन माँ कालरात्रि की आराधना की जाती है. इस दिन साधक का मन “सहस्रार चक्र” में स्थित रहता है या यूँ कहें कि, साधक के लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों के दरवाजे खुल जाते हैं. माँ कालरात्रि के शरीर का रंग घने अन्धकार की तरह काला है, सर के बाल बिखरा हुआ हैं, गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है. माँ की तीन आँखें हैं जो ब्रह्मांड के समान गोल है. माँ के चार हाथ हैं और उनमें कतार, लोहे का कांटा धारण करती है, इसके अलावा दोनों हाथ वरमुद्रा और अभयमुद्रा में है. माँ की श्वास से अग्नि निकलती रहती है और वाहन गधा है. माँ काल रात्री के की नाम है काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, रुद्रानी, चामुंडा, चंडी, रौद्री, धुमोरना, शुभंकरी और दुर्गा .  

पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार, एक समय की बात है कि, शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज नाम के राक्षसों ने तीनों लोकों में आतंक मचा रखा था, इससे व्यथित देवतागण भगवान भोलेनाथ के पास गये और राक्षसों के उत्पात की जानकारी दी और देवताओं ने कहा, हे प्रभु राक्षसों का वध कर भक्तों की रक्षा कीजिए. तब माता पार्वती ने दुर्गा दुर्गा का रूप धारण कर शुंभ-निशुम्भ का वध कर दिया. उसके बाद माँ दुर्गा ने रक्तबीज को मारा तो उसके शरीर से लाखों रक्तबीज और पैदा हो गये, तब माता ने अपने तेज से कालरात्रि को प्रकट किया. पुन: माँ भवानी ने रक्तबीज को मारा तो उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को माँ काली ने अपने मुख में भर लिया और मारा गया. 

माँ कालरात्रि की आराधना करने से साधकों को समस्त सिद्धियां प्राप्त हो जाती है. माँ कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत भयानक है, फिर भी साधकों को सदैव शुभ फल ही प्राप्त होता है. माँ कालरात्रि पराशक्तियों (काला जादू) की साधना करने वाले साधकों के बीच लोकप्रिय हैं, और मां की भक्ति से दुष्टों का नाश होता है और ग्रह बाधाएं भी दूर हो जाती हैं.

भोग:-

माँ कालरात्रि या काली को गुड़ अति प्रिय है, इसीलिए नवरात्री के सातवें दिन गुड़ का भोग लगाया जाता है.

माँ कालरात्रि पराशक्तियों (काला जादू) की साधना करने वाले साधकों के बीच लोकप्रिय हैं.

बीज मन्त्र:-

ॐ ऐं ह्रीं क्रीं कालरात्रै नमः |

मन्त्र:-

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

पूजा के नियम :-

माँ कालरात्रि की उपासना करते समय पीले या लाल रंग के वस्त्र पहने और माँ को लाल-पीले व नील फूलों से चंदन, अक्षत, दूध, दही, शक्कर, फल, पंचमेवे और पंचामृत अर्पित करें. माता के समक्ष शुद्ध घी का दीपक जलाएं तथा धूप अगरबत्ती जलाएं और इत्र चढ़ाएं, और माँ कालरात्रि के स्वरूप-विग्रह को अपने हृदय में अवस्थित करते हुए, उनके मन्त्रों का जाप करें.

संकलन:        –  ज्ञानसागरटाइम्स टीम.

Video Link:   –  https://youtu.be/iMwge3PQNl0

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