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गायत्री का कठिन निर्णय

स्थान:

अस्पताल की छत, सूर्यास्त का समय

हवा में उड़ते पीले पत्ते और दूर कहीं बजती शहनाई की धुन

दो राहों का संगम

गायत्री की मुट्ठी में दो कागज थे – एक तरफ मुंबई ट्रांसफर का ऑर्डर, दूसरी तरफ नलिन के इलाज की रिपोर्ट. उसकी आँखों के सामने दो छवियाँ घूम रही थीं.

नलिन – जिसने अपने खून से उसका नाम लिखा था

डॉ. गायत्री – जिसने हिप्पोक्रेटिक ओथ ली थी

सुलेखा (पीछे से आती है),

“समय आ गया है… या तो उस पागल को छोड़ दो, या फिर अपना कैरियर!”

गायत्री ने छत के किनारे खड़े होकर दोनों कागजों को हवा में छोड़ दिया।

गिरते पत्रों का प्रतीकवाद

ट्रांसफर लेटर – हवा में लहराता हुआ दूर तक उड़ गया

इलाज रिपोर्ट – उसके पैरों के पास आकर गिरा

गायत्री (अपने आप से):

“मैं डॉक्टर हूँ… मरीज को छोड़कर नहीं जा सकती.”

तभी उसके फोन पर डॉ. आर्यन का मैसेज आया,:

“मुंबई में तुम्हारे लिए विशेष पद सुरक्षित है. बस एक हाँ की दूरी पर.”

अंतिम निर्णय का क्षण

गायत्री ने अपने स्टेथोस्कोप को देखा – उस पर नलिन ने “तुम्हारी धड़कन मेरी है” लिखा था।

उसने तीन कार्य किए-

मुंबई ट्रांसफर रद्द करने का मेल भेजा

नलिन के ECT ट्रीटमेंट पर हस्ताक्षर किए

डॉ. आर्यन को ब्लॉक कर दिया

त्याग: करियर के बदले एक टूटे प्रेमी का उपचार

प्रतिबद्धता: डॉक्टर के रूप में अपने कर्तव्य का निर्वहन

संदेह: क्या यह निर्णय उसे भी नलिन की तरह पागल बना देगा?

शेष भाग अगले अंक में…,

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