
मनोचिकित्सक की रिपोर्ट
स्थान: –
डॉ. मल्होत्रा का मनोचिकित्सक क्लीनिक, सुबह 10:47 बजे
दीवार पर टंगी पिकासो की विकृत पेंटिंग “द वीपिंग वुमन”
क्लीनिकल फाइल का खुलासा,
गायत्री के काँपते हाथों में नलिन की मनोवैज्ञानिक रिपोर्ट थी. डॉ. मल्होत्रा ने अपने चश्मे को साफ करते हुए शब्दों को सर्जिकल प्रेसिजन से काटा,
“केस स्टडी #NX-742-
ऑब्सेसिव लव डिसऑर्डर (100%): – रोगी प्रेमिका को अपनी संपत्ति समझता है, उसकी स्वतंत्रता को खतरे के रूप में देखता है.
पैरानॉयड टेंडेंसीज (89%): – हर पुरुष को प्रतिद्वंद्वी मानता है, यहाँ तक कि उसके अपने परछाई से बातचीत के प्रमाण मिले हैं.
सेल्फ-हार्म पैटर्न (76%): – शारीरिक पीड़ा को ‘प्रेम का प्रमाण’ मानता है.
गायत्री की नज़र पेज 17 पर अटक गई, जहाँ नलिन के हस्तलिखित वाक्य थे-
” अगर वो मेरी नहीं हो सकती, तो किसी और की भी नहीं होगी “.
डॉक्टर की चेतावनी,
डॉ. मल्होत्रा ने फाइल बंद करते हुए दो विकल्प रखे-
तत्काल इनवॉलंटरी हॉस्पिटलाइजेशन,
गायत्री का तुरंत शहर छोड़कर चले जाना,
डॉक्टर की आवाज़ में कंपन-
“डॉक्टर साहिबा, आपके पास 72 घंटे हैं, या तो उसे भर्ती कराएँ… या फिर अपनी मृत्यु प्रमाणपत्र लिखने के लिए तैयार रहें,”
गायत्री का आंतरिक संघर्ष,
गायत्री ने खिड़की से बाहर देखा, एम्बुलेंस में बंधे नलिन को ले जाते हुए. उसकी आँखों में वही पागलपन था जो पहली डेट में उसे “रोमांटिक” लगा था.
सुलेखा का फोन आया-
“तुम्हारा मुंबई ट्रांसफर आ गया है! नलिन को छोड़ो, ये तुम्हारा अवसर है!”
गायत्री ने अपने मेडिकल डिग्री सर्टिफिकेट को छुआ… और फिर नलिन के खून से सने पत्र को.
रिपोर्ट का निष्कर्ष-
नैतिक दुविधा: डॉक्टर का कर्तव्य vs प्रेमिका का अटैचमेंट
विज्ञान बनाम भावना: क्लीनिकल डायग्नोसिस vs हृदय की जिद
अंतर्निहित प्रश्न: क्या पागलपन भी प्रेम का एक रूप है?
शेष भाग अगले अंक में…,