
सच्चे प्यार की वापसी
अस्पताल में जागृति-
नलिन की आँखें खुलीं तो गायत्री का चेहरा धुंधला सा दिखाई दिया. वह समझ नहीं पा रहा था- क्या यह कोई सपना था?
नलिन (कमज़ोर आवाज़ में)- “तुम… तुम यहाँ कैसे…?”
गायत्री (आँसू पोंछते हुए)- “शांत रहो. डॉक्टर ने मना किया है ज़्यादा बात करने को.”
लेकिन नलिन ने उसका हाथ पकड़ लिया, मानो डर हो कि वह फिर गायब हो जाएगी.
माफ़ी और मन की बातें-
जब नलिन को डिस्चार्ज मिला, गायत्री ने उसे अपने घर ले जाने का फैसला किया. कार में बैठे-बैठे नलिन ने सच कबूला-
नलिन- “मैंने तुम्हारे जाने के बाद खुद को नष्ट कर लिया… माफ़ करना-“
गायत्री (गहरी सांस लेकर- “मैं भी तो जिद्दी थी… तुम्हें समझने की कोशिश नहीं की-“
दोनों के बीच एक अनकही सहमति बन गई- यह दूसरा मौका क़ीमती था.
डॉ. आर्यन का खेल-
मुंबई से गायत्री के फोन आने शुरू हुए. डॉ. आर्यन ने झूठी चिंता जताते हुए कहा-
“तुम्हारी ट्रेनिंग ख़तरे में पड़ रही है! वह नशेड़ी तुम्हारा भविष्य बर्बाद कर देगा!”
गायत्री ने फोन काट दिया, लेकिन उसकी आँखों में संदेह था. नलिन ने पूछा-
“कौन था?”
“कोई नहीं…” उसने जवाब दिया, लेकिन नलिन समझ गया.
टूटते भ्रम-
अगले दिन, डॉ. आर्यन दिल्ली पहुँच गया. उसने गायत्री को अस्पताल के गार्डन में अकेले पाकर कहा-
“तुम एक गलती कर रही हो! मैं तुमसे… प्यार करता हूँ.”
तभी नलिन वहाँ आ पहुँचा. डॉ. आर्यन ने झूठा नाटक रचा-
“यह नशाखोर तुम्हारे लायक़ नहीं! देखो न, कैसे मेरा पीछा कर रहा है!”
गायत्री (गरजते हुए)- “बस करो! मैंने तुम्हारी असलीयत देख ली है!”
उसने नलिन का हाथ थाम लिया और वहाँ से चल दी.
शेष भाग अगले अंक में…,