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विरह का दर्द

नलिन का नशाखोरी से आत्मघात तक…

गायत्री के जाने के बाद, नलिन का जीवन अंधकारमय गलियारों में भटक गया. वह रात-दिन शराब में डूबा रहता, और उसके दोस्त धीरे-धीरे दूर होते गए. एक रात, जब उसने अपने आईने में झांका, तो उसे एक अजनबी चेहरा दिखाई दिया- डार्क सर्कल, बिखरे बाल, खोई हुई आँखें.

उमेश (फोन पर चिल्लाते हुए)- “ये क्या कर रहा है तू?! तेरी जॉब खतरे में है!”

नलिन (खाली बोतल फेंकते हुए)- “मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता… वो चली गई… सब खत्म हो गया.”

उस रात, उसने गायत्री की पुरानी चिट्ठियाँ जलाने का फैसला किया. आग की लपटों में उसकी आँखों से आँसू टपकने लगे- “काश मैं समझ पाता… काश मैं वक्त रोक लेता…”

गायत्री का खोया हुआ सपना

मुंबई में, गायत्री 24 घंटे ड्यूटी में खुद को व्यस्त रखती. लेकिन जब भी वह अकेली होती, उसका दिल नलिन को याद करके कच्चा हो जाता.

एक दिन, डॉ. आर्यन ने उसे कैफेटेरिया में रोक लिया-

डॉ. आर्यन (मुस्कुराते हुए)- “तुम हमेशा उदास क्यों रहती हो? मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ…”

गायत्री (ठंडी नजरों से)- “मेरी उदासी मेरी अपनी है… कृपया दूर रहिए.”

लेकिन उस रात, उसने अपनी डायरी में लिखा-

“नलिन, तुम्हारी यादें मुझे जलाती हैं… पर मैं वापस नहीं आ सकती.”

वह भयानक दुर्घटना

नलिन ने ड्राइविंग करते हुए शराब पी ली और एक ट्रक से टकरा गया. अस्पताल में, जब वह बेहोशी की हालत में था, तो उसके फोन पर गायत्री का मिस्ड कॉल आया.

डॉक्टर (उमेश से)- “उसका लीवर डैमेज है… अगर वह जीवित रहा, तो उसे शराब छोड़नी होगी.”

उमेश (रोते हुए)- “ये सब गायत्री के बिना उसका हाल है… काश वह जान पाती!”

गायत्री का सच जानना

संयोग से, गायत्री की मंजू ने फेसबुक पर नलिन के हादसे की खबर देखी. वह तुरंत मुंबई से दिल्ली के लिए निकल पड़ी.

जब वह आईसीयू के बाहर पहुँची, तो उसने नलिन को मशीनों से जुड़े देखा- पतला, निस्तेज, टूटा हुआ.

गायत्री (सिसकते हुए)- “ये क्या हो गया तुम्हें… मैं तो बस तुम्हारा एंगर मैनेज करना सीख रही थी!”

उसने उसका हाथ थाम लिया- और तभी नलिन की आँखें खुल गईं.

शेष भाग अगले अंक में…,

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