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प्यार और मनमुटाव…

रिश्ते की गहराई

तीन महीने बीत चुके थे. नलिन और गायत्री अब नियमित मिलते थे—कैफे में, लाइब्रेरी में, कभी-कभी रात के अंधेरे में पार्क की बेंच पर. गायत्री का रुखापन धीरे-धीरे पिघल रहा था, और नलिन उसकी हर छोटी-छोटी आदत को याद करने लगा था.

एक शाम, जब नलिन ने गायत्री को उसके अस्पताल के बाहर इंतजार करते देखा, तो वह भागकर उसके पास पहुँचा,

नलिन: “तुम्हारी फ़ेवरेट डार्क चॉकलेट… 90% कोको. मुझे पता है तुम आज रात की ड्यूटी के बाद थकी हुई होगी.”

गायत्री (मुस्कुराते हुए): “तुम्हारी याददाश्त डरावनी है… पर धन्यवाद.”

उस पल नलिन ने महसूस किया—वह प्यार में पड़ चुका था.

लेकिन जल्द ही, गायत्री की व्यस्तता बढ़ने लगी. वह अक्सर नलिन के मैसेज का जवाब देर से देती या फोन काट देती. एक दिन, जब नलिन ने उसके अस्पताल जाकर सरप्राइज देने की कोशिश की, तो उसने देखा कि गायत्री एक युवा डॉक्टर के साथ ज़ोर-ज़ोर से हँस रही थी.

नलिन (घबराहट में)- “वो कौन था?”

गायत्री (अनदेखा करते हुए)- “मेरा जूनियर डॉ. आर्यन है. तुम्हें हर किसी पर शक क्यों होता है?”

नलिन- “मैंने तुम्हें 10 मिस्ड कॉल दिए, और तुम—”

गायत्री (कटाक्ष करते हुए)- “मैं ऑपरेशन थियेटर में थी! क्या तुम समझते हो मेरी ज़िंदगी सिर्फ़ तुम्हारे इंतजार में बीतती है?”

यह उनका पहला बड़ा झगड़ा था.

दोस्तों की भूमिका

नलिन ने उमेश को सब बताया-

उमेश- “भाई, लड़कियों को स्पेस चाहिए होता है. तुम्हारा जलना उसे और दूर धकेलेगा.”

वहीं, गायत्री की दोस्त सुलेखा ने उसे समझाया-

सुलेखा- “तुम उससे बेवजह झगड़ रही हो! वह तुम्हें लेकर पागल है, ये तो अच्छी बात है.”

गायत्री (आँखें रगड़ते हुए)- “पर मुझे क्लिंगीनेस पसंद नहीं…”

मनाने की कोशिश

नलिन ने गायत्री को मनाने का फैसला किया. उसने उसके घर के बाहर उसकी पसंदीदा किताब (“द अलकेमिस्ट”) और एक हैंडमेड कार्ड रखा, जिस पर लिखा था-

“माफ़ करना… मैं सीख रहा हूँ कि प्यार में ‘स्पेस’ भी ज़रूरी है.- तुम्हारा नलिन”

गायत्री ने कार्ड पढ़ा, और उसकी आँखें नम हो गईं. उसने नलिन को फोन किया,

गायत्री (सिसकते हुए)- “तुम इतने भावुक क्यों हो जाते हो? मैं तुम्हारे बिना… ठीक से सो भी नहीं पा रही थी.”

दोनों ने सुलह कर ली, लेकिन एक अहसास दोनों के मन में घर कर गया- यह रिश्ता आसान नहीं होगा.

अगले दिन, जब नलिन ने गायत्री को उसके कॉलेज फेस्टिवल में इंवाइट किया, तो उसने मना कर दिया-

गायत्री- “मेरी एग्ज़ाम्स हैं, नलिन. तुम समझते क्यों नहीं?”

नलिन (चिढ़कर)- “तुम हर बात को प्रायॉरिटी बना लेती हो… मैं कहाँ फिट होता हूँ?”

गायत्री ने जवाब नहीं दिया… बस चली गई.

उधर, नलिन के दोस्त गौतम ने उसे बार ले जाने का प्लान बनाया-

गौतम- “चल, तू टेंशन क्यों ले रहा है? कल तक तू किसी और के साथ खुश था!”

नलिन ने हाँ कह दी… और यही वह पल था जब गलत राह की शुरुआत होने वाली थी.

आगे क्या होगा?

 शेष भाग अगले अंक में…,

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