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बेवफा तेरे पार में…

कैफे की वह शाम

आधुनिक युग की भागदौड़, डिजिटल संवाद और क्षणिक भावनाओं के बीच प्यार की परिभाषा बदल गई है. नौजवान दिल अब पहले जैसे नहीं रहे— वे जल्दी आकर्षित होते हैं, जल्दी टूटते हैं, और फिर नए रिश्तों की तलाश में निकल पड़ते हैं. लेकिन कुछ रिश्ते ऐसे भी होते हैं जो दिल के कोने में गहरी चीर छोड़ जाते हैं… ऐसा ही एक रिश्ता था नलिन और गायत्री का….

कैफे की वह शाम

हवा में ठंडक और कॉफी की खुशबू घुली हुई थी. नलिन अपने दोस्तों के साथ “ब्लू मून कैफे” के बाहरी गार्डन में बैठा हुआ था. उमेश चुटकुले सुना रहा था, भूषण मोबाइल पर किसी लड़की को मैसेज करने में व्यस्त था, जबकि अमित और गौतम कॉलेज के दिनों की यादें ताजा कर रहे थे.

तभी नलिन की नजर कैफे के अंदर बैठी एक लड़की पर टिक गई. वह हल्के गुलाबी कुर्ते में थी, और उसके हाथों की मेहंदी की खुशबू दूर से ही महसूस हो रही थी. वह अपनी दोस्तों के साथ किसी जोरदार बहस में उलझी हुई थी.

उमेश (मुस्कुराते हुए): “अरे नलिन! आज तेरी नजरें किसके पीछे अटक गई हैं?”

नलिन (संकोच से): “कुछ नहीं, बस… वो लड़की—”

भूषण (झट से): “अरे! वो तो गायत्री है! मेडिकल कॉलेज की टॉपर… थोड़ी सख्त मिजाज है, लेकिन दिल की अच्छी है.”

गायत्री की दोस्त सुलेखा ने नलिन को घूरते देखा और गायत्री से कानाफूसी की. गायत्री ने उसकी तरफ देखा, और दोनों की नजरें मिल गईं. नलिन ने शर्माते हुए सिर झुका लिया, लेकिन गायत्री ने हल्की सी मुस्कान बिखेर दी.

कुछ देर बाद, जब गायत्री की टीम कैफे से निकलने लगी, तो नलिन ने हिम्मत जुटाई और दरवाजे पर जाकर उससे बात करने की कोशिश की.

नलिन (हकलाते हुए): “एक्सक्यूज़ मी… क्या तुम्हारा नाम गायत्री है?”

गायत्री (आश्चर्य से): “हाँ… और तुम?”

नलिन: “मैं नलिन हूँ. मैंने सुना तुम मेडिकल की स्टूडेंट हो?”

गायत्री (थोड़ी रुखाई से): “हाँ, लेकिन अभी मेरे पास टाइम नहीं है.”

सुलेखा (मजाकिया अंदाज में): “अरे, इतनी जल्दी क्या है? ये लड़का तो अच्छा लग रहा है!”

गायत्री ने सुलेखा को डांटते हुए देखा, लेकिन उसकी आँखों में एक चमक थी.

व्हाट्सएप की शुरुआत…

उस रात, नलिन ने भूषण से गायत्री का नंबर लिया और एक मैसेज भेजा:

“आज कैफे में मिलकर अच्छा लगा. अगर कोई झिझक न हो, तो कभी चाय पर बात करें?”

दो घंटे बाद रिप्लाई आई-

“चाय पीने से पहले ये बताओ, तुम्हारी नीयत क्या है? “

नलिन ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया-

“सिर्फ़ एक नयी दोस्ती की शुरुआत… बस.”

गायत्री ने रिप्लाई की-

“ठीक है, पर मैं ग्रीन टी पसंद करती हूँ. कैफे लैटिना, कल शाम 5 बजे.”

पहली डेट और आकर्षण…

अगले दिन, नलिन ने अपने बेस्ट फॉर्मल शर्ट पहनी और समय से पहले ही कैफे पहुँच गया. गायत्री भी ठीक समय पर आई, लेकिन उसके चेहरे पर एक अलग ही गंभीरता थी.

गायत्री: “तो नलिन, तुम बताओ… तुम्हारे पसंदीदा टॉपिक क्या हैं? राजनीति, साहित्य, या फिर सिर्फ़ लड़कियों को इम्प्रेस करने वाली बातें?”

नलिन (हँसकर): “मैं सच कहूँ? मुझे लिखना पसंद है… कविताएँ, कहानियाँ. और हाँ, मैं झूठे दिखावे से दूर भागता हूँ.”

गायत्री की आँखों में रुचि जगी. वह बोली-

“अच्छा… तो तुम एक रोमांटिक हो! पर मैं समझती हूँ, जिंदगी सिर्फ़ कविताओं जैसी नहीं होती.”

दो घंटे की बातचीत में दोनों ने एक-दूसरे के बारे में बहुत कुछ जान लिया, गायत्री की मेडिकल में महत्वाकांक्षाएँ, नलिन का सॉफ्टवेयर कैरियर और दोनों का पारिवारिक पृष्ठभूमि.

एक नई शुरुआत-

जब वे कैफे से निकले, तो शाम के सुनहरे सूरज की रोशनी में गायत्री की मुस्कान और भी खूबसूरत लग रही थी.

नलिन: “क्या मैं तुम्हें घर छोड़ दूँ?”

गायत्री: “नहीं, मैं अपनी दोस्तों के साथ जाऊँगी. पर… तुम कल फिर मैसेज करना.”

उसके जाते ही नलिन के फोन पर उमेश का मैसेज आया,

“क्या हुआ रोमियो? जीत गए क्या जूलियट के दिल पर? “

नलिन ने जवाब दिया…

“शुरुआत अच्छी हुई है… बस.”

लेकिन उसके दिल में एक उम्मीद जग चुकी थी.

शेष भाग अगले अंक में…,

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