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रंकनीति बनाम रणनीति…

धूल भरी गलियाँ

बेनीपुर की संकरी, धूल भरी गलियों में, जहाँ रिक्शों की घंटी और फेरीवालों की आवाज़ें हर पल गूंजती रहती थीं, एक छोटा सा चाय का खोमचा था. इसे चलाता था एक दुबला-पतला, साँवले रंग का युवक, जिसका नाम था विक्रम. विक्रम के पास बड़ी-बड़ी डिग्रियाँ नहीं थीं, न ही किसी अमीर घराने का सहारा. उसके पास बस अपनी मेहनत, तेज़ दिमाग और परिस्थितियों को भाँपने की अद्भुत क्षमता थी.

विक्रम की चाय अपने स्वाद और किफायती दाम के लिए मशहूर थी. सुबह से लेकर देर रात तक, मजदूरों से लेकर छोटे-मोटे व्यापारियों तक, हर कोई उसकी दुकान पर आकर एक प्याली चाय की चुस्की लेता और दिन भर की थकान मिटाता. विक्रम सबके साथ घुल मिलकर बातें करता, उनकी परेशानियों को सुनता और अपनी समझ के अनुसार सलाह भी देता.

उसी गली में, थोड़ी दूरी पर, रमेश का भोजनालय था. रमेश एक दबंग और महत्वाकांक्षी व्यक्ति था. उसने अपने बाहुबल और कुछ प्रभावशाली लोगों से जान-पहचान के दम पर धीरे-धीरे अपना कारोबार बढ़ाया था. रमेश हमेशा विक्रम की बढ़ती लोकप्रियता से जलता था. उसे लगता था कि एक मामूली चायवाला, बिना किसी ‘पहुँच’ के, उससे ज़्यादा ग्राहकों को कैसे आकर्षित कर सकता है.

रमेश की रणनीति सीधी और सरल थी – ताकत का इस्तेमाल करना. उसने कई बार विक्रम को धमकाया कि वह अपनी दुकान बंद कर दे या फिर उसे मोटा कमीशन दे. लेकिन विक्रम हर बार बड़ी विनम्रता से उसकी बातों को अनसुना कर देता. वह जानता था कि रमेश से सीधी टक्कर लेना मूर्खता होगी. उसके पास न तो रमेश जैसी ताकत थी और न ही वैसे संसाधन.

विक्रम की रणनीति, जिसे आसपास के लोग अनजाने में ‘रंकनीति’ कहते थे, बिल्कुल अलग थी. वह सीधे मुकाबले से बचता था और अपनी कमजोरियों को अपनी ताकत बनाता था. उसने कभी भी रमेश के साथ ज़बानी बहस नहीं की, न ही उसके धमकाने पर गुस्सा दिखाया. वह बस अपनी काम में लगा रहता, अपनी चाय की गुणवत्ता बनाए रखता और अपने ग्राहकों के साथ अच्छा व्यवहार करता.

एक दिन, रमेश ने विक्रम को सबक सिखाने की ठान ली. उसने अपने कुछ गुंडों को भेजकर विक्रम की दुकान पर तोड़फोड़ करवाई. चाय के बर्तन टूट गए, सामान बिखर गया और विक्रम को भी हल्की चोटें आईं. आसपास के लोग डर के मारे सहम गए. रमेश को लगा कि अब विक्रम डर जाएगा और उसकी बात मान लेगा.

लेकिन विक्रम ने हार नहीं मानी. अगले ही दिन, उसने अपनी टूटी हुई दुकान को फिर से खड़ा करना शुरू कर दिया. आसपास के कुछ भले लोगों ने उसकी मदद की. विक्रम ने एक भी शिकायत नहीं की, न ही रमेश के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाई. उसने बस शांति से अपना काम जारी रखा.

रमेश यह देखकर हैरान था. उसे उम्मीद थी कि विक्रम डरकर भाग जाएगा, लेकिन वह तो और भी मज़बूती से खड़ा हो गया था. रमेश की ‘नीति’ – डर और धौंस का इस्तेमाल – विक्रम की ‘रंकनीति’ – धैर्य, विनम्रता और लोगों के समर्थन को जीतने की कला – के सामने फीकी पड़ रही थी.

शेष भाग अगले अंक में…,

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