
पंडित जी के हृदय परिवर्तन के बाद, ‘गंगा निवास’ में फिर से खुशियाँ लौट आईं. परिवार के सदस्यों के बीच जो दूरियाँ आ गई थीं, वे धीरे-धीरे मिटने लगीं. आदर्श और अर्जुन के बीच फिर से प्यार और सम्मान का रिश्ता कायम हो गया. अमन ने अपने व्यवसाय में अर्जुन के रचनात्मक विचारों को शामिल किया, जिससे उन्हें नई सफलता मिली.
एक पारिवारिक पूजा के दौरान, पंडित जी ने रिया को अपने बगल में बैठाया और सबके सामने कहा, “आज से यह घर तुम्हारा भी उतना ही है जितना हम सबका है. तुम्हारी कला और तुम्हारे विचार इस परिवार को और समृद्ध करेंगे.”
उस दिन, ‘गंगा निवास’ में बरसों बाद ऐसी खुशी का माहौल था जिसमें कोई शिकवा या शिकायत नहीं थी. परिवार की दीवारों में जो दरारें आ गई थीं, वे अब प्रेम, समझ और स्वीकृति के सीमेंट से भर चुकी थीं. अर्जुन ने अपनी अगली कहानी में ‘गंगा निवास’ के बदलते स्वरूप को लिखा, जहाँ पुरानी परंपराएँ नए विचारों के साथ मिलकर एक मजबूत और सुंदर भविष्य का निर्माण कर रही थीं. दरार ने परिवार को तोड़ा नहीं था, बल्कि उन्हें एक-दूसरे के महत्व को समझने और पहले से ज़्यादा मजबूत बनने का अवसर दिया था.
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