सनातन प्रेमियों के विशेष महीने श्रावन की भी शुरुआत हो चुकी है. ऐसे अवधूत रूप के धनी जिन्हें औघरदानी भी कहा जाता है और जो सबके लिए सुगम्य हैं चाहे वो, देव हों या दानव. ऐसे अदभुत स्वरूप के स्वामी जो कई प्रकार के चिन्हों का प्रयोग करते है और हर चिन्ह के अपने-अपने महत्व हैं. भगवान शिव को त्रयंबक भी कहा जाता है, आमतौर पर देव हों या दानव उनकी दो ही आँख होती है लेकिन, भगवान शिव की तीसरी आँख भी है. जिस प्रकार दो आँखों से भौतिक पदार्थों को ही देख सकते है उसी प्रकार तीसरी आँख का मतलब होता है ‘बोध’. ‘बोध’ का अर्थ होता है ऊर्जा को विकसित करना या यूँ कहें कि, अपने स्तर को ऊँचा करना.
शिव के कई नाम हैं उन्हें सोम या सोमसुंदर भी कहा जाता है. सोम का एक और अर्थ होता है चंद्रमा वैसे तो सोम का अर्थ होता है नशा. पुरानों में चंद्रमा को नशे का श्रोत भी कहा गया है. नशा सिर्फ बाहरी पदार्थों से नहीं होता है लेकिन, जो अपने आप में मदमस्त हो या यूँ कहें कि, जो जीवन की प्रक्रियाओं में मदमस्त रहता हो. पूर्णिमा की रात्री को जब चंद्रमा अपने पूर्ण आकर में हो तो उसकी शीतल किरणें भी मदमस्त लगती है. अगर पूर्णिमा की रात्री में चंद्रमा को एक टक से निहारते हैं तो धीरे-धीरे सुरूर चढ़ने लगता है.
भगवान शिव का वाहन नंदी है. आखिर नंदी का अर्थ क्या होता है? पुरानों के अनुसार नंदी का अर्थ होता है प्रतीक्षा या यूँ कहे अनंत प्रतीक्षा. हिन्दू परम्परा या संस्कृति में इन्तजार करना सबसे बड़ा गुण माना जाता है. इन्तजार जो चुपचाप बैठकर किया जाय और उम्मीद हो कि कल ‘वो’ आ जायेंगें. भगवान शिव के सबसे करीबी नंदी हैं चूकिं नंदी में एक गुण है “ग्रहणशीलता” का. आमतौर पर जब हम सभी मन्दिर जाते हैं तो हमारे बुजुर्ग कहते हैं कि, मन्दिर के अंदर शांत और सजग होकर बैठना चाहिए. चूकिं यह गुण सिर्फ और सिर्फ नंदी में ही था.
संकलन: – ज्ञानसागरटाइम्स टीम.
Video Link: – https://youtu.be/IDAmpD1Quqo