
आलसी पुत्र और बुद्धिमान किसान
बहुत समय पहले की बात है, एक गाँव में एक वृद्ध किसान रहता था. उसके चार बेटे थे – सभी जवान, स्वस्थ और बुद्धिमान, परन्तु एक बड़ी कमी थी – वे सब अत्यंत आलसी थे. कोई भी खेती-किसानी में हाथ नहीं बँटाता था। दिनभर घर में पड़े रहते, न पढ़ते थे, न कुछ काम करते.
किसान दिन-रात चिंता में डूबा रहता. वह सोचता – “मेरे बाद इनका क्या होगा? ये तो मेहनत करने का नाम ही नहीं लेते. जीवन में अगर मेहनत नहीं की, तो न ही सफलता मिलेगी और न ही सम्मान.”
समय बीतता गया. किसान अब बूढ़ा हो चला था. शरीर पहले जैसा बलवान नहीं रहा और एक दिन वह बहुत गंभीर रूप से बीमार पड़ गया. उसे लगने लगा कि अब उसका अंत निकट है. ऐसे समय में उसे अपने बेटों की चिंता सताने लगी. उसने सोचा कि कैसे इन्हें काम के महत्व का एहसास कराया जाए.
फिर एक दिन उसने चारों बेटों को पास बुलाया और धीमे स्वर में कहा –
“बेटा, मैंने अपने जीवन भर की कमाई में से दस लाख रुपये एक कलश में भरकर हमारे बाग वाले खेत की जमीन में कहीं गाड़ दिए हैं. ठीक-ठीक स्थान मुझे अब याद नहीं, पर वह जरूर उसी खेत में कहीं दबा है.”
इतना कहने के बाद किसान की आखिरी साँस निकल गई. चारों बेटों ने दुखी मन से अपने पिता का अंतिम संस्कार किया. जब शोक का समय बीता, तो उन्हें पिता की कही बात याद आई – “दस लाख रुपये खेत में गड़े हैं!”
अब चारों उत्साहित हो उठे. सोने के लालच में उन्होंने खेत खोदने का निश्चय किया. अगले दिन से ही वे सभी खेत में जुट गए. किसी ने फावड़ा उठाया, किसी ने कुदाल। जगह-जगह उन्होंने गड्ढे खोदने शुरू कर दिए. एक-एक इंच जमीन को पलट डाला, परंतु कलश नहीं मिला.
हफ्तों की मेहनत के बाद भी कुछ हाथ न लगा. लेकिन इस कोशिश में उन्होंने पूरा खेत अच्छी तरह से जोत डाला था. अब उन्होंने सोचा कि इतनी मेहनत की है तो क्यों न बीज बो दिए जाएं?
उन्होंने खेत में गेहूं और चने के बीज बो दिए. समय पर पानी भी दिया, खरपतवार भी हटाई. कुछ महीनों बाद जब फसल तैयार हुई, तो उनकी आंखें खुली की खुली रह गईं – खेत में पहले से कई गुना अधिक उपज हुई थी. अन्न इतना निकला कि न केवल उन्होंने बेचकर अच्छा धन कमाया, बल्कि गांव में उनका सम्मान भी बढ़ गया.
अब चारों भाइयों को समझ में आ गया कि पिता जी असल में क्या सिखाना चाहते थे. उन्होंने कोई धन जमीन में नहीं गाड़ा था, बल्कि अपने बेटों के भीतर छुपी मेहनत और आत्मविश्वास को जगाना चाहते थे.
पिता की कही बात एक प्रतीक थी – “मेहनत ही असली धन है.”
अब चारों भाइयों ने खेती को ही अपना उद्देश्य बना लिया. दिन-रात मेहनत करने लगे और समय के साथ उनका जीवन समृद्ध होता गया.
प्रभाकर कुमार.