
अवनि अपने कमरे की खिड़की पर बैठी बाहर देख रही थी. सुबह की पहली किरणें पत्तों से छनकर उसके चेहरे पर पड़ रही थीं, लेकिन उसके मन में व्याप्त अंधेरा कम नहीं हो रहा था. नीचे, लॉन में उसकी माँ पड़ोसी आंटी के साथ हंस-हंसकर बातें कर रही थीं, मानो घर में कुछ भी असामान्य न हो. अवनि को यह देखकर एक अजीब सी कसक हुई. क्या उसकी माँ को सच में उसकी तकलीफ दिखाई नहीं देती? या वह जानबूझकर अनदेखा कर रही हैं?
कल रात की घटना उसके दिमाग में घूम रही थी. उसके कॉलेज के एक प्रोजेक्ट को लेकर उसने कितनी उम्मीदों से अपनी बात रखी थी, लेकिन उसके भाई ने उसे यह कहकर चुप करा दिया था कि यह सब ‘बेकार की बातें’ हैं. माँ ने भी भाई का ही समर्थन किया था, हमेशा की तरह. अवनि को लगा जैसे किसी ने उसके सपनों पर पत्थर रख दिया हो.
उसने एक गहरी साँस ली और अपनी डायरी उठाई. यह उसकी सबसे अच्छी दोस्त थी, जिससे वह बिना किसी डर के अपने मन की सारी बातें कह सकती थी. उसने कल रात की घुटन और अपने परिवार के व्यवहार के बारे में लिखा। लिखते-लिखते उसकी आँखें नम हो गईं.
अचानक, उसके फ़ोन की घंटी बजी. स्क्रीन पर आर्यन का नाम चमक रहा था. आर्यन उसके कॉलेज का एक सहपाठी था, जो हमेशा उसकी बातों को ध्यान से सुनता था और उसका सम्मान करता था.
“हेलो, अवनि,” आर्यन की आवाज़ में हमेशा की तरह एक दृढ़ता थी. “क्या कर रही हो?”
अवनि ने एक पल सोचा. क्या वह आर्यन से अपनी तकलीफ साझा कर सकती है? उसे डर था कि कहीं वह भी दूसरों की तरह उसे गलत न समझे. लेकिन फिर उसने सोचा, अब खोने के लिए और क्या बचा है?
“मैं… ठीक हूँ,” उसने हिचकिचाते हुए कहा. “तुम बताओ.”
“मैं तुम्हें याद कर रहा था,” आर्यन ने सहजता से कहा. “आज कॉलेज नहीं आ रही हो क्या?”
“नहीं,” अवनि ने जवाब दिया. “मेरा मन नहीं है.”
“क्या हुआ?” आर्यन की आवाज़ में चिंता झलक रही थी. “सब ठीक है?”
अवनि कुछ देर चुप रही. फिर, उसने धीरे-धीरे कल रात की घटना और अपने मन की व्यथा के बारे में आर्यन को बताया. उसे आश्चर्य हुआ कि बोलते समय उसे कितना हल्का महसूस हो रहा था.
आर्यन ने उसे ध्यान से सुना, बिना किसी टिप्पणी या जजमेंट के. जब अवनि ने अपनी बात खत्म की, तो आर्यन ने कहा, “अवनि, मुझे दुख है कि तुम्हें यह सब सहना पड़ रहा है. यह ठीक नहीं है कि कोई तुम्हारी भावनाओं को इस तरह से अनदेखा करे.”
आर्यन के ये शब्द अवनि के लिए किसी मरहम की तरह थे. पहली बार उसे लगा कि कोई उसकी पीड़ा को समझ रहा है.
“धन्यवाद, आर्यन,” अवनि ने कहा, उसकी आवाज़ थोड़ी भारी थी.
“कोई बात नहीं,” आर्यन ने कहा. “अगर तुम्हें बात करने की ज़रूरत हो, तो मुझे कभी भी फ़ोन कर सकती हो. और सुनो, तुम्हें अपनी भावनाओं को दबाने की ज़रूरत नहीं है. तुम्हारी भावनाएँ महत्वपूर्ण हैं.”
आर्यन की बातों ने अवनि के भीतर एक नई उम्मीद जगाई. उसे लगा कि शायद वह अकेली नहीं है. शायद इस घुटन भरे माहौल से बाहर निकलने का कोई रास्ता है.
उस दिन के बाद, अवनि ने आर्यन से और भी बातें करनी शुरू कर दीं. आर्यन ने कभी उसे सलाह नहीं दी, बस उसकी बातों को सुना और उसे यह महसूस कराया कि उसकी भावनाओं का महत्व है. धीरे-धीरे, अवनि के भीतर आत्मविश्वास लौटने लगा. उसने महसूस किया कि दूसरों की राय से ज़्यादा ज़रूरी उसकी अपनी राय है.
एक दिन, अवनि ने अपनी माँ से खुलकर बात करने का फैसला किया. उसने अपनी माँ को बताया कि उसे उनके और भाई के व्यवहार से कितना दुख होता है. पहली बार, उसकी माँ ने उसे ध्यान से सुना. शायद आर्यन से बात करने के बाद अवनि को अपनी भावनाओं को सही ढंग से व्यक्त करने की हिम्मत मिल गई थी.
माँ ने तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन अवनि को लगा कि उसकी बातों का उन पर कुछ असर ज़रूर हुआ है.
क्या अवनि अपनी माँ और भाई के साथ अपने रिश्तों को सुधार पाएगी? क्या आर्यन उसकी इस मुश्किल राह में उसका साथ देगा? आगे की कहानी में हम देखेंगे कि अवनि अपनी इस आंतरिक और बाहरी लड़ाई में कैसे आगे बढ़ती है.
शेष भाग अगले अंक में…,