
दादाजी की कहानी सुनकर अमन का मन बेचैन हो गया. लक्ष्मी और उसके पति के साथ जो हुआ, वह बहुत अन्यायपूर्ण था. वह उस साये को अब और उदास नहीं देख सकता था. उसने दादाजी से पूछा, “क्या उन लोगों के बारे में कोई जानता है जिन्होंने यह सब किया?”
दादाजी ने गहरी साँस ली. “वे अब इस दुनिया में नहीं हैं, बेटा. समय सब घावों को भर देता है, और कुछ बुरे कर्मों को भुला दिया जाता है.”
लेकिन रवि हार मानने वाला नहीं था. वह जानता था कि भले ही दोषी मर चुके हों, लक्ष्मी की आत्मा को शांति तभी मिलेगी जब उसके साथ हुए अन्याय को याद किया जाएगा.
अगले कुछ दिनों तक, अमन ने उस जली हुई बस्ती के आसपास और खोजबीन की. उसे कुछ जले हुए बर्तन और टूटे हुए मिट्टी के खिलौने मिले, जो उस बीते हुए जीवन की याद दिलाते थे. उसने उस पत्थर के स्मारक को साफ किया और उस पर कुछ जंगली फूल रख दिए.
एक शाम, जब अमन स्मारक के पास बैठा था, साया उसके पास आया. इस बार, उसमें पहले से ज़्यादा स्थिरता थी. अमन ने धीरे से कहा, “लक्ष्मी जी, मुझे सब पता चल गया है. आपके साथ बहुत बुरा हुआ.”
साये में कोई हलचल नहीं हुई, लेकिन अमन को लगा जैसे उस उदासी में थोड़ी कमी आई हो.
अमन ने सोचा कि वह क्या कर सकता है. वह उन दोषियों को वापस नहीं ला सकता था, लेकिन वह लक्ष्मी की कहानी को लोगों तक पहुँचा सकता था.
अगले दिन, अमन गाँव के पंचायत घर गया. उसने सरपंच और अन्य बुजुर्गों को लक्ष्मी और उस जली हुई बस्ती के बारे में बताया. शुरू में, कुछ लोगों को विश्वास नहीं हुआ, लेकिन जब अमन ने दादाजी का हवाला दिया और उन्हें वह पत्थर का स्मारक दिखाया, तो वे सोचने पर मजबूर हो गए.
धीरे-धीरे, अमन की बातों का असर होने लगा. गाँव के लोगों ने उस जगह पर जाना शुरू कर दिया जहाँ कभी बस्ती थी. उन्होंने उस स्मारक को देखा और लक्ष्मी के बारे में सुना.
कुछ दिनों बाद, गाँव की पंचायत ने फैसला किया कि वे उस जगह पर एक छोटा सा स्मृति स्थल बनाएंगे, जहाँ लक्ष्मी और अन्य पीड़ितों के नाम लिखे जाएंगे. अमन ने खुद उस स्थल को बनाने में मदद की.
जब वह स्मृति स्थल बनकर तैयार हो गया, तो अमन एक शाम बरगद के पेड़ के नीचे गया. साया वहाँ उसका इंतज़ार कर रहा था. अमन ने उस साये की ओर देखा और मुस्कुराया.
उस रात, कुछ अजीब हुआ. साया धीरे-धीरे धुंधला होने लगा. पहले वह सिर्फ़ एक हल्की सी छाया जैसा दिखने लगा, और फिर… वह पूरी तरह से गायब हो गया.
अमन को दुख हुआ कि साया चला गया, लेकिन उसके मन में एक शांति भी थी. उसे लग रहा था कि शायद अब लक्ष्मी की आत्मा को शांति मिल गई है. उसका रहस्य अब गाँव के लोगों को पता था, और उसे भुलाया नहीं गया था.
अगले दिन, अमन बरगद के पेड़ के नीचे फिर गया. साया अब वहाँ नहीं था, लेकिन उस जगह पर एक अजीब सी शांति महसूस हो रही थी. हवा में अब वह ठंडी लहर नहीं थी, बल्कि एक हल्की, सुखद हवा बह रही थी.
अमन समझ गया, लक्ष्मी को आखिरकार शांति मिल गई थी, उसका साया, जो इतने सालों से भटक रहा था, अब मुक्त हो चुका था.
शेष भाग अगले अंक में…,