
व्यक्ति विशेष– 544.
क्रांतिकारी राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी
राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी एक प्रमुख भारतीय क्रांतिकारी थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) के सदस्य थे और काकोरी कांड में अपनी भागीदारी के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं.
राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी का जन्म 23 जून 1901 को बंगाल के पबना जिले (अब बांग्लादेश में) में हुआ था. उनका परिवार बाद में वाराणसी (बनारस) आ गया. लाहिड़ी की प्रारंभिक शिक्षा वाराणसी में हुई, जहाँ उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रूप से हिस्सा लेना शुरू किया और जल्द ही हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) से जुड़ गए.
काकोरी कांड 9 अगस्त 1925 को हुआ था, जब HRA के क्रांतिकारियों ने एक ट्रेन को लूटने की योजना बनाई थी ताकि ब्रिटिश सरकार के खजाने को लूटकर स्वतंत्रता संग्राम के लिए धन जुटाया जा सके. राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी इस योजना में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे और उन्होंने इसमें सक्रिय भाग लिया.
काकोरी कांड के बाद लाहिड़ी को गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें और अन्य क्रांतिकारियों को ब्रिटिश सरकार ने कड़ी सजा दी. लाहिड़ी को 19 दिसंबर 1927 को फांसी की सजा सुनाई गई और उन्हें 17 दिसंबर 1927 को गोंडा जेल में फांसी दी गई, जो निर्धारित तिथि से दो दिन पहले दी गई थी.
राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान क्रांतिकारी के रूप में याद किया जाता है. उनका बलिदान और साहस भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बना रहा. राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी का योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण था. उनके साहस और बलिदान ने भारतीय जनता को ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया और उनकी विरासत आज भी भारतीय इतिहास में एक महान प्रेरणा स्रोत के रूप में जीवित है.
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पर्यावरणविद् चण्डी प्रसाद भट्ट
चण्डी प्रसाद भट्ट एक भारतीय पर्यावरणविद् और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जो मुख्य रूप से चिपको आंदोलन के लिए जाने जाते हैं. उनका जन्म 23 जून 1934 को उत्तराखंड के चमोली जिले में हुआ था. उन्होंने पर्यावरण संरक्षण और स्थानीय समुदायों के अधिकारों के लिए उल्लेखनीय कार्य किए हैं.
वर्ष 1970 के दशक में, चण्डी प्रसाद भट्ट ने चिपको आंदोलन की शुरुआत की, जो एक पर्यावरणीय और सामाजिक आंदोलन था. इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य जंगलों की कटाई को रोकना और पर्यावरण को बचाना था. इस आंदोलन में ग्रामीण महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर उनकी कटाई को रोका.
भट्ट ने वर्ष 1964 में दशोली ग्राम स्वराज्य संघ (DGSS) की स्थापना की, जो ग्रामीण विकास और वन संरक्षण के लिए काम करता है. यह संगठन चमोली जिले में ग्रामीण समुदायों के आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. भट्ट ने अपने जीवन को ग्रामीण विकास, पर्यावरण संरक्षण, और स्थानीय समुदायों की सशक्तिकरण के लिए समर्पित किया है. उन्होंने स्थानीय संसाधनों का सतत उपयोग और पारंपरिक ज्ञान को प्रोत्साहित किया.
चण्डी प्रसाद भट्ट को उनके योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले हैं, जिनमें शामिल हैं: –
रेमन मैगसेसे पुरस्कार: – वर्ष 1982 में उन्हें इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
पद्म भूषण: – वर्ष 2005 में भारत सरकार ने उन्हें इस सम्मान से नवाजा.
गांधी शांति पुरस्कार: – वर्ष 2013 में उन्हें यह प्रतिष्ठित पुरस्कार मिला.
चण्डी प्रसाद भट्ट का कार्य न केवल पर्यावरण संरक्षण में बल्कि सामाजिक और आर्थिक सुधार में भी महत्वपूर्ण रहा है. उनके प्रयासों ने लाखों लोगों को प्रेरित किया है और पर्यावरणीय जागरूकता को बढ़ावा दिया है.
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मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह
वीरभद्र सिंह भारतीय राजनीति के एक राजनीतिज्ञ हैं, जिन्होंने हिमाचल प्रदेश राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में कई बार कार्य किया. उनका जन्म 23 जून 1934 को सराहन, शिमला में हुआ था. वीरभद्र सिंह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे और हिमाचल प्रदेश के सबसे अधिक समय तक सेवा करने वाले मुख्यमंत्री थे.
वीरभद्र सिंह सात बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. उनके कार्यकाल वर्ष 1983-1990, वर्ष 1993-1998, वर्ष 2003-2007, वर्ष 2012-2017 तक. उन्होंने भारतीय संसद के सदस्य के रूप में भी कार्य किया। वे लोकसभा के सदस्य के रूप में वर्ष 1962, 1967, 1971, 1980, और वर्ष 2009 में चुने गए थे. इसके अलावा, वे राज्यसभा के सदस्य भी रहे. वीरभद्र सिंह ने केंद्र सरकार में भी विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। वे इस्पात मंत्री, पर्यटन और नागरिक उड्डयन मंत्री, और उद्योग राज्य मंत्री रहे.
वीरभद्र सिंह के कार्यकाल में हिमाचल प्रदेश में विकास और बुनियादी ढांचे में महत्वपूर्ण सुधार हुए उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य, और सड़क निर्माण के क्षेत्र में कई परियोजनाएं शुरू कीं. वीरभद्र सिंह ने हिमाचल प्रदेश में कृषि और बागवानी को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं लागू कीं. उनके प्रयासों से सेब और अन्य फलों की खेती में वृद्धि हुई. वीरभद्र सिंह ने हिमाचल प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाएं शुरू कीं, जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था को लाभ हुआ.
वीरभद्र सिंह का व्यक्तिगत जीवन भी काफी चर्चित रहा. उन्होंने प्रतिभा सिंह से विवाह किया और उनके दो बच्चे हैं. उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह भी एक राजनीतिक नेता हैं और लोकसभा सदस्य रही हैं.
वीरभद्र सिंह का निधन 08 जुलाई 2021 को शिमला, हिमाचल प्रदेश में हुआ था. उनका राजनीतिक कैरियर और उनके योगदान हिमाचल प्रदेश की राजनीति और विकास में महत्वपूर्ण रहे हैं. उनके नेतृत्व में राज्य ने कई क्षेत्रों में प्रगति हुई थी.
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अभिनेता रहमान…
अभिनेता रहमान हिंदी सिनेमा के उन प्रतिष्ठित कलाकारों में से एक थे, जिन्होंने वर्ष 1940- 70 के दशक तक भारतीय फिल्मों में अपनी विशिष्ट छवि और अभिनय शैली से दर्शकों के दिलों में गहरी छाप छोड़ी. उनका पूरा नाम सईद रहमान खान था, और उनका जन्म 23 जून 1921 को लाहौर (ब्रिटिश भारत) में हुआ था.
रहमान ने कॉलेज के बाद रॉयल इंडियन एयरफोर्स में पायलट के रूप में प्रशिक्षण लिया, लेकिन जल्द ही फिल्मों की ओर रुख किया. पुणे में उन्होंने विष्णम बेडेकर के सहायक निर्देशक के रूप में काम शुरू किया. एक पश्तून होने के कारण वे पारंपरिक पगड़ी पहनने में निपुण थे, जिससे उन्हें शुरुआती भूमिकाएं मिलीं.
रहमान को उनकी सौम्य, परिष्कृत और भावनात्मक भूमिकाओं के लिए जाना जाता था. उन्होंने शुरुआत में नायक की भूमिकाएं निभाईं, लेकिन बाद में सहायक भूमिकाओं में भी उन्होंने गहरी छाप छोड़ी. उनकी प्रमुख फिल्मों में शामिल हैं: – प्यासा (1957), साहिब बीबी और ग़ुलाम (1962), वक्त (1965), चौदहवीं का चाँद, दिल ने फिर याद किया.
रहमान की संवाद अदायगी और भाव-भंगिमा में एक शालीनता थी, जो उन्हें उस दौर के अन्य अभिनेताओं से अलग बनाती थी. रहमान को वर्ष 1977 में तीन बार दिल का दौरा पड़ा, जिसके बाद उन्हें गले का कैंसर हो गया. लंबी बीमारी के बाद 5 नवंबर 1984 को मुंबई में उनका निधन हो गया.
रहमान न केवल एक अभिनेता थे, बल्कि वे उस दौर की सिनेमाई संवेदनाओं के संवाहक भी थे. गुरु दत्त की टीम का हिस्सा होने के नाते उन्होंने भारतीय सिनेमा की क्लासिक फिल्मों में योगदान दिया। उनकी भूमिकाएं आज भी फिल्म प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं.
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निर्देशक जाब्बिर पटेल
जब्बार पटेल भारतीय फिल्म निर्देशक और नाटककार हैं, जिन्हें मराठी सिनेमा और थिएटर में उनके योगदान के लिए जाना जाता है. उनका जन्म 23 जून 1942 को हुआ था. पटेल ने अपने कैरियर में कई समीक्षकों द्वारा प्रशंसित फिल्में और नाटक प्रस्तुत किए हैं, जिनमें समाज के विभिन्न मुद्दों को उठाया गया है.
प्रमुख फिल्में:-
सामना (1974): –यह फिल्म भ्रष्टाचार और राजनीतिक गलतियों पर आधारित है. इसे मराठी सिनेमा की एक महत्वपूर्ण फिल्म माना जाता है. इस फिल्म में स्मिता पाटिल और मोहन अगाशे मुख्य भूमिकाओं में थे.
सिंहासन (1979): – यह एक राजनीतिक ड्रामा फिल्म है जो पत्रकारिता और राजनीति के बीच के संबंधों को उजागर करती है. इसे भी मराठी सिनेमा की एक क्लासिक फिल्म माना जाता है.
उंबरठा (1982): – इस फिल्म में स्मिता पाटिल मुख्य भूमिका में थीं और यह महिलाओं के संघर्ष और अधिकारों पर केंद्रित थी
डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर (2000): –यह फिल्म डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के जीवन पर आधारित है और इसे कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं
जब्बार पटेल ने थिएटर में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उन्होंने कई नाटकों का निर्देशन किया है जो सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर आधारित हैं. उनके नाटकों में प्रगतिशील विचारधारा की झलक मिलती है. जब्बार पटेल को उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं. उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपने काम की पहचान बनाई है.
पटेल का व्यक्तिगत जीवन उनके काम की तरह ही प्रेरणादायक है. वे एक डॉक्टर थे लेकिन उन्होंने अपने जुनून के कारण फिल्म निर्माण और थिएटर की ओर रुख किया. उनका परिवार भी उनके काम में समर्थन देता रहा है. जब्बार पटेल का योगदान मराठी सिनेमा और थिएटर में महत्वपूर्ण ह.। उनकी फिल्मों और नाटकों ने समाज के विभिन्न मुद्दों को उठाने और जागरूकता फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
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अभिनेता और राजनेता राज बब्बर
राज बब्बर एक भारतीय अभिनेता और राजनीतिज्ञ हैं. उनका जन्म 23 जून 1952 को उत्तर प्रदेश के टुंडला में हुआ था. उन्होंने भारतीय फिल्म उद्योग में अपनी पहचान बनाई और बाद में राजनीति में भी सक्रिय हो गए. उन्होंने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत वर्ष 1977 में फिल्म “किस्सा कुर्सी का” से की. उन्होंने हिंदी और पंजाबी फिल्मों में अपनी अदाकारी का जलवा बिखेरा है.
प्रमुख फिल्में: –
इंसाफ का तराजू (1980): – यह फिल्म उनकी करियर की प्रमुख फिल्मों में से एक है, जिसमें उन्होंने एक खलनायक की भूमिका निभाई थी.
निकाह (1982): – यह एक रोमांटिक ड्रामा फिल्म थी, जिसमें राज बब्बर की अदाकारी को बहुत सराहा गया.
आज की आवाज़ (1984): – इस फिल्म में उनके प्रदर्शन के लिए उन्हें काफी प्रशंसा मिली
आंधी-तूफान (1985): – यह एक एक्शन ड्रामा फिल्म थी, जिसमें उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई थी.
राज बब्बर ने वर्ष 1989 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के सदस्य के रूप में राजनीति में प्रवेश किया. वे तीन बार लोकसभा के सदस्य रहे हैं और उन्होंने राज्यसभा में भी सेवा दी है. वर्ष 2006 में उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़कर समाजवादी पार्टी जॉइन की, लेकिन बाद में वर्ष 2008 में वे फिर से कांग्रेस में लौट आए.
राज बब्बर ने लोकसभा चुनाव में कई बार हिस्सा लिया और जीत हासिल की. वे फतेहपुर सिकरी और आगरा संसदीय क्षेत्र से सांसद रहे हैं. उन्होंने राज्यसभा में भी अपनी सेवाएं दी हैं. वे उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे हैं और पार्टी के प्रमुख नेता के रूप में कार्य किया है.
राज बब्बर का व्यक्तिगत जीवन भी दिलचस्प रहा है. उनकी पहली पत्नी नादिरा बब्बर हैं, जो एक प्रसिद्ध थिएटर कलाकार और निर्देशक हैं. उनके दो बच्चे हैं, आर्य बब्बर और जूही बब्बर, जो दोनों ही अभिनेता हैं. बाद में, उन्होंने अभिनेत्री स्मिता पाटिल से शादी की, जिनसे उनका एक बेटा प्रतीक बब्बर है, जो भी एक अभिनेता है.
राज बब्बर ने अपने फिल्मी और राजनीतिक कैरियर में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है. वे एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति हैं, जिन्होंने दोनों क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया है.
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राजनीतिज्ञ श्यामाप्रसाद मुखर्जी
श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद् और भारतीय जनसंघ के संस्थापक थे, जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का पूर्ववर्ती संगठन है. उनका जन्म 6 जुलाई 1901 को कोलकाता (तब का कलकत्ता) में हुआ था. वह बंगाल के एक प्रतिष्ठित परिवार से थे और उनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी एक प्रसिद्ध न्यायविद् और शिक्षाविद् थे.
श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने वर्ष 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की. यह संगठन बाद में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के रूप में विकसित हुआ. जनसंघ का उद्देश्य भारतीय राष्ट्रीयता और सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देना था.
मुखर्जी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत कांग्रेस पार्टी से की थी, लेकिन बाद में उन्होंने कांग्रेस छोड़कर हिन्दू महासभा में शामिल हो गए. वे वर्ष 1947 – 50 तक भारत के पहले उद्योग और आपूर्ति मंत्री रहे.
श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कश्मीर के पूर्ण विलय के लिए संघर्ष किया. उन्होंने ‘एक देश, एक विधान, एक प्रधान’ का नारा दिया और जम्मू और कश्मीर के लिए विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 का कड़ा विरोध किया. कश्मीर में बिना अनुमति प्रवेश करने के बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया और 23 जून 1953 को जेल में रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई.
मुखर्जी ने शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के सबसे युवा कुलपति बने और शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए कई पहलें कीं. उन्होंने हिन्दू महासभा के माध्यम से हिन्दू समाज की समस्याओं को उठाया और उनके समाधान के लिए काम किया.
श्यामा प्रसाद मुखर्जी का योगदान भारतीय राजनीति और समाज में अद्वितीय है. उनके विचार और संघर्ष भारतीय जनता पार्टी की नीतियों और कार्यक्रमों में आज भी झलकते हैं. उनकी जयंती और पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है और उनके योगदान को स्मरण किया जाता है. उनकी स्मृति में कई संस्थानों और स्थानों का नामकरण किया गया है, जो उनके योगदान की महत्ता को दर्शाता है.
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राजनीतिज्ञ संजय गाँधी
संजय गांधी भारतीय राजनीतिज्ञ थे, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेता और इंदिरा गांधी के छोटे बेटे थे. उनका जन्म 14 दिसंबर 1946 को दिल्ली में हुआ था. संजय गांधी का राजनीतिक कैरियर और उनके द्वारा किए गए कार्य आज भी भारतीय राजनीति में चर्चा का विषय बने रहते हैं.
संजय गांधी का जन्म दिल्ली में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा देहरादून के वेल्हम बॉयज़ स्कूल और बाद में दून स्कूल से प्राप्त की. संजय ने विमानन इंजीनियरिंग का अध्ययन किया और रोल्स-रॉयस कंपनी में प्रशिक्षण लिया। संजय गांधी का राजनीतिक कैरियर वर्ष 1970 के दशक में शुरू हुआ, जब उनकी मां, इंदिरा गांधी, प्रधानमंत्री थीं. वे जल्दी ही कांग्रेस पार्टी के एक प्रमुख नेता बन गए और उनके पास विशेष प्रभाव और शक्ति थी.
संजय गांधी का राजनीतिक कैरियर मुख्य रूप से आपातकाल के दौरान उभरा. आपातकाल के दौरान वे कई विवादास्पद नीतियों और अभियानों के लिए जाने गए, जैसे परिवार नियोजन कार्यक्रम और दिल्ली के तुर्कमान गेट पर चलाया गया अतिक्रमण विरोधी अभियान. संजय गांधी ने कांग्रेस पार्टी में युवा कांग्रेस के माध्यम से युवाओं को जोड़ने का प्रयास किया और पार्टी संगठन को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
वर्ष 1977 के आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी की हार के बाद भी संजय गांधी ने पार्टी को पुनर्गठित करने और उसकी पुनरुत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 23 जून 1980 को नई दिल्ली के सफदरजंग हवाई अड्डे पर एक विमान दुर्घटना में संजय गांधी का निधन हो गया. वे एक प्रशिक्षु पायलट थे और उस दिन वे अपने विमान को स्वयं उड़ा रहे थे.
संजय गांधी की राजनीतिक शैली और उनकी नीतियां हमेशा विवाद का विषय रही हैं, लेकिन उनके समर्थक उन्हें एक कुशल संगठनकर्ता और एक दृढ़ नेता मानते हैं. उनकी विरासत उनके परिवार द्वारा जारी रही, जिसमें उनकी पत्नी, मेनका गांधी, और बेटा, वरुण गांधी, दोनों ही भारतीय राजनीति में सक्रिय हैं.
संजय गांधी का जीवन और उनके कार्य भारतीय राजनीति के एक महत्वपूर्ण अध्याय का प्रतिनिधित्व करते हैं. उनकी नीतियां और उनके राजनीतिक दृष्टिकोण आज भी भारतीय राजनीति में चर्चा का विषय बने रहते हैं.
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चौथे राष्ट्रपति वी.वी. गिरी
वी.वी. गिरी (वराहगिरी वेंकट गिरी) भारत के चौथे राष्ट्रपति थे. उनका पूरा नाम वराहगिरी वेंकट गिरी था और उनका जन्म 10 अगस्त 1894 को वर्तमान आंध्र प्रदेश के बेरहमपुर (अब ओडिशा) में हुआ था. वे भारतीय राजनीति और श्रमिक आंदोलनों में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे. उनका कार्यकाल राष्ट्रपति के रूप में 24 अगस्त 1969 से 24 अगस्त 1974 तक रहा.
वी.वी. गिरी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मद्रास (अब चेन्नई) में प्राप्त की और बाद में आयरलैंड के डबलिन विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई की. वे स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ गए. वी.वी. गिरी एक प्रमुख श्रमिक नेता थे और उन्होंने श्रमिकों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। वे अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) के अध्यक्ष रहे और भारतीय मजदूर संघ (INTUC) के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
वी.वी. गिरी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई और महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन में भाग लिया. स्वतंत्रता के बाद, वे केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हुए और उन्होंने श्रम और रोजगार मंत्री के रूप में कार्य किया. वे उत्तर प्रदेश, केरल, और कर्नाटक के राज्यपाल भी रहे. वी.वी. गिरी वर्ष 1967 में भारत के उप राष्ट्रपति बने.
वर्ष 1969 में राष्ट्रपति ज़ाकिर हुसैन के निधन के बाद वी.वी. गिरी को कार्यवाहक राष्ट्रपति नियुक्त किया गया और बाद में उन्होंने राष्ट्रपति पद का चुनाव स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में लड़ा. उन्हें प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का समर्थन प्राप्त हुआ और वे राष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित हुए.
वी.वी. गिरी ने श्रमिकों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और विभिन्न कानूनों और नीतियों के माध्यम से उनकी स्थिति को सुधारने का प्रयास किया. उन्होंने शिक्षा और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. वी.वी. गिरी को 1975 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न, से सम्मानित किया गया.
वी.वी. गिरी का निधन 24 जून 1980 को चेन्नई में हुआ. उनका जीवन और कार्यभार भारतीय राजनीति और समाज के विभिन्न क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण योगदान के रूप में माना जाता है. वी.वी. गिरी का जीवन संघर्ष, सेवा, और समर्पण का प्रतीक है. उनके योगदान को भारतीय इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा.