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व्यक्ति विशेष -520.

लेखक पण्डित मुखराम शर्मा

पंडित मुखराम शर्मा हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध लेखक, नाटककार, और पटकथा लेखक थे. उनका जन्म 30 मई 1909 को उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में हुआ था. उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से समाज की विभिन्न समस्याओं, मानवीय संवेदनाओं और जीवन की सच्चाइयों को उजागर किया.

मुखराम शर्मा की प्रमुख रचनाओं में नाटक, कहानियाँ और उपन्यास शामिल हैं. उनके लेखन की विशेषता उनकी सरल भाषा और समाज के प्रति गहरी समझ थी. उन्होंने हिन्दी सिनेमा के लिए भी अनेक पटकथाएँ लिखीं, जिनमें से कई फिल्में बहुत सफल रहीं. उनकी फिल्मों में ‘विद्या’, ‘साधना’, ‘दुल्हन’, और ‘वचन’ जैसी सफल फिल्में शामिल हैं.

पंडित मुखराम शर्मा को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. उनकी रचनाएँ आज भी साहित्य प्रेमियों के बीच लोकप्रिय हैं और हिन्दी साहित्य में उनका स्थान महत्वपूर्ण है.

पंडित मुखराम शर्मा का निधन 25 अप्रैल 2000 को हुआ. उनके साहित्यिक कार्यों और योगदान को हिन्दी साहित्य में हमेशा याद किया जाएगा.

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सितार वादक देबू चौधरी

देबू चौधरी भारतीय सितार वादक और शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में एक प्रसिद्ध व्यक्ति थे. उनका जन्म 30 मई 1935 को मायमेनसिंग, बांग्लादेश में हुआ था. वह सेनिया घराने के अनुयायी थे और उन्होंने सितार वादन की बारीकियों में महारत हासिल की. उनके गुरु उस्ताद मुश्ताक अली खां थे, जिनसे उन्होंने संगीत की शिक्षा प्राप्त की

देबू चौधरी ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत किया और अपनी अनूठी शैली और तकनीक से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया. उन्होंने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रदर्शन किया और अपने जीवनकाल में अनेक पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए.

उनकी संगीत रचनाएँ और प्रदर्शन श्रोताओं को शांति और आनंद प्रदान करते हैं. उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत को न केवल भारत में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रचलित किया. देबू चौधरी का निधन 1 मई 2021 को दिल्ली में हुआ, लेकिन उनके योगदान और संगीत की विरासत हमेशा जीवित रहेगी.

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उद्योगपति जगमोहन डालमिया

जगमोहन डालमिया भारतीय उद्योगपति और खेल प्रशासक थे, जिनका जन्म 30 मई 1940 को हुआ था. उन्हें विशेष रूप से क्रिकेट प्रशासन में उनके योगदान के लिए जाना जाता है. उन्होंने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) और अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं.

डालमिया ने अपने कैरियर की शुरुआत एक सफल उद्योगपति के रूप में की, लेकिन उनकी पहचान क्रिकेट प्रशासन में उनके असाधारण योगदान के लिए अधिक प्रसिद्ध हुई. उन्होंने वर्ष 1997 – 2000 तक ICC के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया और इस अवधि के दौरान क्रिकेट के वैश्वीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने BCCI के अध्यक्ष के रूप में भी कई कार्यकालों में कार्य किया, जिनमें से एक कार्यकाल वर्ष 2001 – 2004 और फिर वर्ष 2013 – 2015 तक रहा.

उनके नेतृत्व में, भारतीय क्रिकेट ने आर्थिक रूप से मजबूत आधार प्राप्त किया और क्रिकेट को एक व्यावसायिक खेल के रूप में स्थापित करने में मदद मिली. उनकी रणनीतिक सोच और प्रबंधन कौशल ने भारतीय क्रिकेट को अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया.

जगमोहन डालमिया का निधन 20 सितंबर 2015 को हुआ, लेकिन उनके योगदान और नेतृत्व को भारतीय क्रिकेट में हमेशा याद किया जाएगा.

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अभिनेता परेश रावल

परेश रावल एक भारतीय अभिनेता, फिल्म निर्माता और राजनीतिज्ञ हैं. उनका जन्म 30 मई 1955 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था. उन्होंने हिन्दी सिनेमा में अपनी अभिनय क्षमता और विविधता के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है.

परेश रावल ने वर्ष 1980 के दशक में अपने कैरियर की शुरुआत की और जल्द ही अपने उत्कृष्ट अभिनय के लिए पहचाने जाने लगे. उन्होंने न केवल गंभीर और नकारात्मक भूमिकाएँ निभाईं, बल्कि हास्य किरदारों में भी अपनी अनूठी छाप छोड़ी.

 प्रमुख फिल्में:    हेरा फेरी (2000), आवारा पागल दीवाना (2002),  ओह माय गॉड (2012) और सर (1993). परेश रावल को उनकी अभिनय क्षमताओं के लिए कई पुरस्कार मिले हैं, जिनमें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और फिल्मफेयर पुरस्कार शामिल हैं.

अभिनय के अलावा, परेश रावल राजनीति में भी सक्रिय हैं. वे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्य हैं और वर्ष 2014 -19 तक अहमदाबाद ईस्ट निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा सांसद रहे. उनके अभिनय और राजनीतिक योगदान दोनों ही क्षेत्रों में उन्हें एक महत्वपूर्ण व्यक्ति के रूप में स्थापित करते हैं.

परेश रावल की बहुमुखी प्रतिभा और योगदान ने उन्हें भारतीय फिल्म उद्योग और समाज में एक विशिष्ट स्थान दिलाया है.

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साउंड एडिटर रेसुल पुकुट्टी

रेसुल पुकुट्टी एक भारतीय साउंड एडिटर और साउंड डिजाइनर हैं. उनका पूरा नाम रेसुल पुकुट्टी है और उनका जन्म 30 मई 1971 को केरल के विल्लाक्कुपारा में हुआ था. उन्होंने भारतीय सिनेमा में साउंड डिजाइनिंग और एडिटिंग के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई है.

रेसुल पुकुट्टी को सबसे अधिक प्रसिद्धि तब मिली जब उन्होंने वर्ष 2008 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ के लिए साउंड मिक्सिंग का काम किया. इस फिल्म के लिए उन्हें वर्ष 2009 में ऑस्कर पुरस्कार (अकादमी पुरस्कार) से सम्मानित किया गया. यह उनके कैरियर का एक महत्वपूर्ण मोड़ था और इसने उन्हें वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई.

इसके अलावा, उन्होंने कई भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय फिल्मों में साउंड एडिटिंग और मिक्सिंग का कार्य किया है. उनकी कुछ प्रमुख भारतीय फिल्मों में शामिल हैं:  –

ब्लैक (2005) – इस फिल्म में उनके साउंड डिजाइन को बहुत सराहा गया.

ग़ज़नी (2008) – इस फिल्म में भी उनके साउंड डिजाइन ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

रोबोट (2010) – इस साइंस फिक्शन फिल्म में उनके साउंड डिजाइन को खूब सराहा गया.

रेसुल पुकुट्टी की तकनीकी दक्षता और क्रिएटिव विजन ने उन्हें साउंड डिजाइनिंग के क्षेत्र में एक अग्रणी स्थान दिलाया है. उन्होंने कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए हैं, जिनमें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी शामिल हैं. उनके योगदान ने भारतीय सिनेमा को अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक नई पहचान दी है.

रेसुल पुकुट्टी न केवल अपनी साउंड डिजाइनिंग क्षमताओं के लिए प्रसिद्ध हैं, बल्कि वे साउंड तकनीक के शिक्षा और विकास में भी योगदान देते हैं. उन्होंने अपनी विशेषज्ञता और अनुभव के माध्यम से साउंड डिजाइनिंग के क्षेत्र में नए मानदंड स्थापित किए हैं.

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अभिनेत्री जेनिफर विंगेट

जेनिफर विंगेट एक भारतीय अभिनेत्री हैं, जो मुख्य रूप से हिन्दी टेलीविजन धारावाहिकों और फिल्मों में काम करती हैं. उनका जन्म 30 मई 1985 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था. जेनिफर ने अपने कैरियर की शुरुआत बहुत ही कम उम्र में की और जल्दी ही भारतीय टेलीविजन उद्योग में एक महत्वपूर्ण स्थान बना लिया.

 प्रमुख टेलीविजन धारावाहिकों: –

दिल मिल गए – इस शो में उन्होंने डॉ. रिद्धिमा गुप्ता की भूमिका निभाई, जिससे उन्हें बहुत लोकप्रियता मिली.

सरस्वतीचंद्र – इस धारावाहिक में कुमुद देसाई की भूमिका के लिए उन्हें काफी सराहा गया.

बेहद – इस शो में उन्होंने माया मेहरोत्रा का किरदार निभाया, जो एक जटिल और गहरे किरदार के रूप में दर्शकों द्वारा बहुत पसंद किया गया.

बेपनाह – इस शो में उन्होंने ज़ोया सिद्दीकी की भूमिका निभाई, जो एक और महत्वपूर्ण और सराही गई भूमिका थी.

जेनिफर विंगेट की अभिनय क्षमता और उनके किरदारों की विविधता ने उन्हें टेलीविजन इंडस्ट्री में एक विशिष्ट स्थान दिलाया है. उन्होंने अपनी भावनात्मक अभिव्यक्ति और अभिनय की गहराई से दर्शकों का दिल जीता है. जेनिफर को उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं, जिनमें भारतीय टेलीविजन अकादमी पुरस्कार और गोल्डन पेटल अवार्ड्स शामिल हैं.

उनकी खूबसूरती, प्रतिभा और कड़ी मेहनत ने उन्हें एक सफल अभिनेत्री के रूप में स्थापित किया है. जेनिफर विंगेट की लोकप्रियता और प्रभाव ने उन्हें भारतीय टेलीविजन इंडस्ट्री में एक महत्वपूर्ण और प्रभावशाली व्यक्तित्व बना दिया है.

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सिक्खों के पाँचवें गुरु गुरु अर्जन देव

गुरु अर्जन देव सिख धर्म के पाँचवें गुरु थे और उनकी जीवनी सिख धर्म के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है. उनका जन्म 15 अप्रैल 1563 को गोइंदवाल साहिब, पंजाब में हुआ था. वे गुरु राम दास और माता भानी के पुत्र थे. गुरु अर्जन देव जी ने सिख धर्म के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया और कई महत्वपूर्ण कार्य किए.

 गुरु अर्जन देव जी ने सिख धर्म के पवित्र ग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब, का संकलन किया. उन्होंने इसमें पहले चार गुरुओं की बाणियों के साथ-साथ संतों और भक्तों की रचनाओं को भी शामिल किया. यह ग्रंथ सिख धर्म का सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र ग्रंथ है.

गुरु अर्जन देव जी ने अमृतसर में हरिमंदिर साहिब का निर्माण करवाया, जिसे आज स्वर्ण मंदिर के नाम से जाना जाता है. यह सिखों के लिए सबसे पवित्र तीर्थस्थल है और दुनिया भर से श्रद्धालु यहां आते हैं. गुरु अर्जन देव जी ने सेवा और परोपकार को सिख धर्म के महत्वपूर्ण सिद्धांतों के रूप में प्रोत्साहित किया. उन्होंने लंगर (सामुदायिक भोजन) की परंपरा को और मजबूत किया और समाज में समानता और भाईचारे का संदेश फैलाया.

गुरु अर्जन देव जी को मुगल सम्राट जहांगीर के शासनकाल में धार्मिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा. उन्हें इस्लाम धर्म स्वीकार करने का आदेश दिया गया, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया. इसके परिणामस्वरूप, उन्हें अत्यधिक यातनाएँ दी गईं और अंततः 30 मई 1606 को शहीद हो गए. उनकी शहादत ने सिख समुदाय को और अधिक मजबूती और धैर्य के साथ अपने धर्म की रक्षा के लिए प्रेरित किया.

गुरु अर्जन देव जी की शिक्षाएँ और उनका बलिदान सिख धर्म के अनुयायियों के लिए आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं. उनका जीवन और उनके कार्य सिख धर्म के मूल सिद्धांतों को प्रतिपादित करते हैं और समाज में सेवा, समानता और धार्मिक स्वतंत्रता के महत्व को रेखांकित करते हैं.

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ट्रेड यूनियन आंदोलन के जन्मदाता एन. एम. जोशी

नारायण मल्हार जोशी, जिन्हें एन. एम. जोशी के नाम से भी जाना जाता है. वे भारतीय श्रम आंदोलन के अग्रणी नेताओं में से एक थे. उनका जन्म  5 जून 1879 को हुआ था और उनका निधन 30 मई, 1955 को हुआ.

उन्होंने अपने जीवन को श्रमिकों के अधिकारों और उनकी बेहतरी के लिए समर्पित कर दिया था. जोशी ने विभिन्न ट्रेड यूनियनों की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उनके नेतृत्व में कई महत्वपूर्ण श्रमिक आंदोलन संगठित हुए.

उन्होंने ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) की स्थापना में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया था, जो भारत में पहली राष्ट्रीय स्तर की ट्रेड यूनियन है. जोशी ने श्रमिकों के अधिकारों के लिए विधानसभा में भी आवाज उठाई और उनकी बेहतरी के लिए कई कानूनी प्रावधानों की वकालत की. उनका कार्य श्रमिक वर्ग के लिए समान अवसर प्रदान करने और उनकी कार्य स्थितियों में सुधार लाने के दिशा में था.

एन. एम. जोशी ने श्रमिक संगठनों के माध्यम से श्रमिकों की एकता और सशक्तिकरण पर बल दिया. उनका योगदान आज भी भारतीय श्रमिक आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण पड़ाव के रूप में याद किया जाता है.

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साहित्यकार डॉ. रामविलास शर्मा

डॉ. रामविलास शर्मा हिंदी साहित्य के प्रमुख साहित्यकार, आलोचक और विचारक थे. वे विशेष रूप से मार्क्सवादी दृष्टिकोण से साहित्य और संस्कृति के अध्ययन के लिए प्रसिद्ध हैं. उनका लेखन हिंदी साहित्य के साथ-साथ भारतीय समाज, संस्कृति और भाषा के गहन विश्लेषण को प्रस्तुत करता है.

रामविलास शर्मा का जन्म 10 अक्टूबर, 1912 ई. में उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले में उच्च गाँव सानी में हुआ था. उन्होंने ‘लखनऊ विश्वविद्यालय’ से अंग्रेज़ी में एम.ए. किया और फिर पी-एच.डी. की उपाधि वर्ष 1938 में प्राप्त की. वर्ष 1938 से ही आप अध्यापन क्षेत्र में आ गए.

डॉ. शर्मा ने हिंदी साहित्य को नई दिशा दी, विशेष रूप से आलोचना के क्षेत्र में. उनके साहित्यिक विचार और सिद्धांतों ने साहित्य को समाज और राजनीति से जोड़ने का काम किया. वे हिंदी भाषा और उसकी सांस्कृतिक विरासत के एक बड़े समर्थक थे और हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करने के लिए जोर देते थे.

प्रमुख रचनाएँ: –

भारत के प्राचीन भाषा परिवार और हिंदी: – जिसमें उन्होंने भाषा, संस्कृति और समाज के विकास का गहन विश्लेषण किया.

महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिंदी नवजागरण: – इस पुस्तक में हिंदी साहित्य के नवजागरण काल और महावीर प्रसाद द्विवेदी के योगदान पर चर्चा की गई है.

भारतीय संस्कृति और हिंदी प्रदेश: – इसमें भारतीय संस्कृति और हिंदी भाषी क्षेत्रों के सांस्कृतिक आयामों पर प्रकाश डाला गया है.

रामविलास शर्मा का निधन 30 मई, 2000 को हुआ था. डॉ. रामविलास शर्मा को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें साहित्य अकादमी पुरस्कार और शलाका सम्मान प्रमुख हैं. उनका साहित्यिक दृष्टिकोण और उनकी योगदान शीलता हिंदी साहित्य को एक नई ऊँचाई तक ले गए.

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अभिनेता ऋतुपर्णो घोष

ऋतुपर्णो घोष एक भारतीय फिल्म निर्माता, पटकथा लेखक, अभिनेता, और लेखक थे. उनका जन्म 31 अगस्त 1963 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ था. वे भारतीय सिनेमा, विशेष रूप से बंगाली सिनेमा, में अपने अद्वितीय और संवेदनशील फिल्म निर्माण के लिए जाने जाते हैं.

ऋतुपर्णो घोष ने अपने कैरियर की शुरुआत विज्ञापन फिल्मों से की थी, लेकिन जल्द ही उन्होंने फीचर फिल्मों की ओर रुख किया. उनकी पहली फिल्म ‘हीरर अंगती’ (1994) थी, लेकिन उन्हें व्यापक पहचान मिली फिल्म ‘उन्हिषे अप्रैल’ (1994) से, जिसने उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार दिलाया.

 प्रमुख फिल्में: –

दहन (1997) – इस फिल्म ने सामाजिक मुद्दों को बारीकी से चित्रित किया और इसे भी राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा गया.

चोखेर बाली (2003) – रवींद्रनाथ टैगोर के उपन्यास पर आधारित इस फिल्म में ऐश्वर्या राय ने मुख्य भूमिका निभाई और इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया.

रेनकोट (2004) – इस फिल्म में अजय देवगन और ऐश्वर्या राय मुख्य भूमिकाओं में थे और इसे भी आलोचकों द्वारा खूब सराहा गया.

दोसार (2006) – यह फिल्म भी रिश्तों और मानवीय भावनाओं की गहराइयों को बखूबी प्रस्तुत करती है.

नौकाडूबी (2011) – यह फिल्म भी टैगोर की रचना पर आधारित थी और इसे दर्शकों ने बहुत पसंद किया।

ऋतुपर्णो घोष ने न केवल निर्देशन और लेखन में बल्कि अभिनय में भी अपनी छाप छोड़ी। उन्होंने ‘मेमोरीज इन मार्च’ (2010) और ‘चित्रांगदा’ (2012) जैसी फिल्मों में अभिनय किया, जिसमें उनके प्रदर्शन को सराहा गया.

ऋतुपर्णो घोष को उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिले. उन्होंने कुल 12 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीते, जो उनके कैरियर की उत्कृष्टता और सिनेमा में उनके अद्वितीय दृष्टिकोण को प्रमाणित करते हैं. ऋतुपर्णो घोष खुले आम समलैंगिक थे और उन्होंने LGBTQ+ समुदाय के मुद्दों को अपनी फिल्मों में प्रमुखता से उठाया. उन्होंने अपने जीवन और कार्यों के माध्यम से समाज में समावेशिता और स्वीकार्यता का संदेश फैलाया.

ऋतुपर्णो घोष का निधन 30 मई 2013 को कोलकाता में हृदयगति रुकने के कारण हुआ. उनके निधन से भारतीय सिनेमा को एक बड़ी क्षति हुई, लेकिन उनकी फिल्में और उनका योगदान हमेशा याद किया जाएगा. वे अपने संवेदनशील और सोच-समझकर बनाई गई फिल्मों के लिए हमेशा प्रशंसित रहेंगे.

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