
वरुथिनी एकादशी…
सत्संग के समय एक भक्त ने महाराज जी से पूछा कि, महाराज जी सूना है कि, वैशाख महीने के कृष्ण पक्ष में जो एकादशी होता है उस एकादशी का व्रत पालन करने से कन्या दान के बराबर फल मिलता है. महाराज जी भक्त की बात सुनकर मुसकुराए और मुसकुराते हुए कहा… वैशाख का यह पावन और पवित्र महीना चल रहा है. इस पावन और पवित्र महीने का वर्णन पुराणों में मिलता है साथ ही कुछ मान्यताओं के अनुसार त्रेतायुग की शुरुआत भी इसी वैशाख महीने से हुई थी. इस महीने की आमवस्या को देववृक्ष वट की पूजा भी की जाती है.
महाराज जी कहते है कि, वरूथिनी शब्द संस्कृत के “वरूथिन” से बना है जिसका अर्थ होता है कवच या यूँ कहें कि रक्षा करने वाला. वरूथिनी एकादशी के बारे में विस्तृत वर्णन पद्म पुराण में दिया गया है. पुराणों के अनुसार, यह एकादशी पुण्यदायनी और सौभाग्य का सूचक माना जाता है. इस एकादशी को व्रत सुख–सौभाग्य का प्रतीक भी कहा जाता है. वैशाख महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरूथिनी एकादशी कहा जाता है और इस दिन भगवान मधुसुदन के वराह रूप की पूजा की जाती है.
पूजन सामाग्री: –
वेदी, कलश, सप्तधान, पंच पल्लव, रोली, गोपी चन्दन, गंगा जल, दूध, दही, गाय के घी का दीपक, सुपाड़ी, शहद, पंचामृत, मोगरे की अगरबत्ती, ऋतू फल, फुल, आंवला, अनार, लौंग, नारियल, नीबूं, नवैध, केला और तुलसी पत्र व मंजरी.
व्रत विधि: –
सबसे पहले आपको एकादशी के दिन सुबह उठ कर स्नान करना चाहिए और व्रत का संकल्प लेना चाहिए. उसके बाद भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र की स्थापना की जाती है. उसके बाद भगवान विष्णु की पूजा के लिए धूप, दीप, नारियल और पुष्प का प्रयोग करना चाहिए. अंत में भगवान विष्णु के स्वरूप का स्मरण करते हुए ध्यान लगायें, उसके बाद विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करके, कथा पढ़ते हुए विधिपूर्वक पूजन करें. ध्यान दें…. एकादशी की रात्री को जागरण अवश्य ही करना चाहिए, दुसरे दिन द्वादशी के दिन सुबह ब्राह्मणों को अन्न दान व दक्षिणा देकर इस व्रत को संपन्न करना चाहिए.
कथा: –
प्राचीन समय की बात है नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नामक राजा राज्य करता था. जो बड़े ही तपस्वी थे और उनके दानशीलता के चर्चे दूर दूर तक होते थे. एक दिन राजा जंगल में तपस्या कर रहे थे कहीं से घूमता हुआ एक भालू उधर आ पहुंचा और राजा के पैर चबाने लगा. परन्तु, राजा पूर्ववत अपनी तपस्या में लीन रहा. कुछ देर बाद पैर चबाते-चबाते भालू राजा को घसीटकर पास के जंगल में ले गया. यह देखकर राजा बहुत ही घबराया लेकिन, तापस धर्म अनुकूल उसने क्रोध और हिंसा न करके भगवान विष्णु से प्रार्थना की… और बड़े ही करुण भाव से भगवान विष्णु को पुकारा. उसकी पुकार सुनकर भक्तवत्सल भगवान श्रीविष्णु प्रकट हुए और उन्होंने चक्र से भालू को मार डाला. राजा का पैर भालू पहले ही खा चुका था. यह देखकर राजा बहुत ही शोकाकुल हुआ.राजा को दुखी देखकर भगवान विष्णु बोले- ‘हे वत्स! शोक मत करो. तुम मथुरा जाओ और वरुथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार की पूजा करो. उसके प्रभाव से पुन: सुदृढ़ अंगों वाले हो जाओगे. हे वत्स! इस भालू ने तुम्हें जो काटा है, यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध था.’ भगवान की आज्ञा मान राजा ने मथुरा जाकर श्रद्धापूर्वक इस व्रत को किया और इस व्रत के प्रभाव से वह शीघ्र ही पुन: सुंदर और संपूर्ण अंगों वाला बन गया.
एकादशी का फल: –
एकादशी प्राणियों के परम लक्ष्य, भगवद भक्ति, को प्राप्त करने में सहायक होती है. यह दिन प्रभु की पूर्ण श्रद्धा से सेवा करने के लिए अति शुभकारी एवं फलदायक माना गया है. इस दिन व्यक्ति इच्छाओं से मुक्त हो कर यदि शुद्ध मन से भगवान की भक्तिमयी सेवा करता है तो वह अवश्य ही प्रभु की कृपापात्र बनता है.
वाल व्यास सुमन जी महाराज,
महात्मा भवन, श्रीरामजानकी मंदिर,
राम कोट, अयोध्या. 8709142129.