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व्यक्ति विशेष

भाग – 408.

डॉ० ज़ाकिर हुसैन

डॉ० ज़ाकिर हुसैन का जन्म 08 फरवरी 1897 ई० में हैदराबाद, आंध्र प्रदेश के धनाढ्य पठान परिवार में हुआ था. 23 वर्ष की अवस्था में वे ‘जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय’ की स्थापना दल के सदस्य बने. अर्थशास्त्र में पी.एच.डी की डिग्री के लिए जर्मनी के बर्लिन विश्वविद्यालय गए और लौट कर जामिया के उप कुलपति के पद पर भी आसीन हुए. वर्ष 1920 में उन्होंने ‘जामिया मिलिया इस्लामिया’ की स्थापना में योगदान दिया तथा इसके उपकुलपति बने. इनके नेतृत्व में जामिया मिलिया इस्लामिया का राष्ट्रवादी कार्यों तथा स्वाधीनता संग्राम की ओर झुकाव रहा. स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् वे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति बने तथा उनकी अध्यक्षता में ‘विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग’ भी गठित किया गया. इसके अलावा वे भारतीय प्रेस आयोग, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, यूनेस्को, अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा सेवा तथा केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड से भी जुड़े रहे.

डॉ० ज़ाकिर हुसैन भारत के राष्ट्रपति बनने वाले पहले मुसलमान थे. देश के युवाओं से सरकारी संस्थानों का वहिष्कार की, गाँधी की अपील का हुसैन ने पालन किया. महात्मा गाँधी के निमन्त्रण पर वह प्राथमिक शिक्षा के राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष भी बने, जिसकी स्थापना वर्ष 1937 में स्कूलों के लिए गाँधीवादी पाठ्यक्रम बनाने के लिए हुई थी. वर्ष 1956-58 में वह संयुक्त राष्ट्र शिक्षा, विज्ञान और संस्कृति संगठन (यूनेस्को) की कार्यकारी समिति में रहे. वर्ष 1957 में उन्हें बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया और वर्ष 1962 में वो भारत के उपराष्ट्रपति निर्वाचित हुए. वर्ष 1967 में कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार के रूप में वह भारत के राष्ट्रपति पद के लिए चुने गये और मृत्यु तक पदासीन रहे.

डॉ० ज़ाकिर हुसैन बेहद अनुशासनप्रिय व्यक्तित्त्व के धनी थे. वे चाहते थे कि जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र अत्यंत अनुशासित रहें, जिनमें साफ-सुथरे कपड़े और पॉलिश से चमकते जूते होना सर्वोपरि था. इसके लिए डॉ० जाकिर हुसैन ने एक लिखित आदेश भी निकाला, किंतु छात्रों ने उस पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया. छात्र अपनी मनमर्जी से ही चलते थे, जिसके कारण जामिया विश्वविद्यालय का अनुशासन बिगड़ने लगा. यह देखकर डॉ० हुसैन ने छात्रों को अलग तरीके से सुधारने पर विचार किया. एक दिन वे विश्वविद्यालय के दरवाज़े पर ब्रश और पॉलिश लेकर बैठ गए और हर आने-जाने वाले छात्र के जूते ब्रश करने लगे. यह देखकर सभी छात्र बहुत लज्जित हुए और अपनी भूल मानते हुए डॉ० हुसैन से क्षमा मांगी और अगले दिन से सभी छात्र साफ-सुथरे कपड़ों में और जूतों पर पॉलिश करके आने लगे.

डॉ० ज़ाकिर हुसैन को वर्ष 1954 में पद्म विभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया. उसके बाद उन्हें वर्ष 1963 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया. डॉ. ज़ाकिर हुसैन का निधन 3 मई 1969 को हुआ था.

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ठुमरी गायिका शोभा गुर्टू

ठुमरी गायिका शोभा गुर्टू  का जन्म 08 फ़रवरी, 1925 को कर्नाटक के बेलगाँव ज़िले में हुआ था. उनका मूल नाम ‘भानुमति शिरोडकर’ था. उनकी माताजी मेनेकाबाई शिरोडकर स्वयं भी एक नृत्यांगना थीं तथा जयपुर-अतरौली घराने के उस्ताद अल्लादिया ख़ाँ से गायकी सीखती थीं.शोभा गुर्टू को शास्त्रीय संगीत सीखने की प्रेरणा अपनी माँ से ही मिली थी.

उन्होंने संगीत की प्राथमिक शिक्षा उस्ताद अल्लादिया ख़ाँ के सुपुत्र उस्ताद भुर्जी ख़ाँ साहब से प्राप्त की. इसके बाद उस्ताद अल्लादिया ख़ाँ के भतीजे उस्ताद नत्थन ख़ाँ से मिली तालीम ने उनके सुरों में जयपुर-अतरौली घराने की नींव को सुदृढ़ किया. किंतु उनकी गायकी को एक नयी दिशा और पहचान मिली उस्ताद घाममन ख़ाँ की छत्रछाया में, जो उनकी माँ को ठुमरी और दादरा व अन्य शास्त्रीय शैलियाँ सिखाने मुंबई में उनके परिवार के साथ रहने आये थे.

शोभा गुर्टू एक ऐसी शास्त्रीय शिल्पी थीं, जिन्होंने गायन की ठुमरी शैली को विश्व भर में ख्याति दिलाई. इन्हें ‘ठुमरियों की रानी’ भी कहा जाता है.उन्होंने ठुमरी के अतिरिक्त कजरी, होरी और दादरा आदि उप-शास्त्रीय शैलियों के अस्तित्व को भी बचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.कहा जाता है कि,वे न केवल अपने गले की आवाज़ से बल्कि अपनी आँखों से भी गाती थीं.एक गीत से दूसरे में जैसे किसी कविता के चरित्रों की भांति वे भाव बदलती थीं, चाहे वह रयात्मक हो या प्रेमी द्वारा ठुकराया हुआ हो अथवा नख़रेबाज़ या इश्कज़ हो.

शोभा गुर्टू ने कई हिन्दी और मराठी फ़िल्मों में भी गीत गाए. वर्ष 1972 में आई कमल अमरोही की फ़िल्म ‘पाक़ीज़ा’ में उन्हें पहली बार पार्श्वगायन का मौका मिला था. इसमें उन्होंने एक भोपाली ‘बंधन बांधो’ गाया था. इसके बाद वर्ष 1973 में फ़िल्म ‘फागुन’ में ‘मोरे सैय्याँ बेदर्दी बन गए कोई जाओ मनाओ’ गाया. फिर वर्ष 1978 में असित सेन द्वारा निर्देशित फ़िल्म ‘मैं तुलसी तेरे आँगन की’ में शोभा जी ने एक ठुमरी ‘सैय्याँ रूठ गए मैं मनाऊँ कैसे’ गाया, जो कि बहुत प्रसिद्ध हुई.

शोभा गुर्टू को कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया.फ़िल्म ‘मैं तुलसी तेरे आँगन की’ की ठुमरी के लिए उन्हें “फ़िल्म फ़ेयर पुरस्कार” के लिए नामांकित किया गया. वर्ष 1978 में ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’ मिला. उसके बाद वर्ष 2002 में ‘पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया. शोभा गुर्टू का निधन 27 सितंबर 2004 को मुंबई में हुआ था.

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जगजीत सिंह

जगजीत सिंह एक भारतीय पार्श्वगायक और संगीतकार हैं. उनका नाम बेहद ही लोकप्रिय ग़ज़ल गायकों में शुमार हैं. उनकी  पत्नी का नाम चित्रा सिंह है. वो गजल गायिका हैं. पार्श्वगायक जगजीत जी सुनने वालों को उनकी सहराना आवाज़ दिल की गहराइयों में ऐसे उतरती रही मानो गाने और सुनने वाले दोनों के दिल एक हो गए हों.

जगजीत सिंह का जन्म 08 फरवरी 1941 को  राजस्थान के गंगानगर में हुआ था. जगजीत के बचपन का नाम जीत था. जगजीत सिंह को बचपन में अपने पिता से संगीत विरासत में मिला. कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान संगीत में उनकी दिलचस्पी देखकर कुलपति प्रोफ़ेसर सूरजभान ने जगजीत सिंह जी को काफ़ी उत्साहित किया. जगजीत सिंह का पहला एलबम ‘द अनफ़ॉरगेटेबल्स 1976 में आया था जो की हिट रही थी. जगजीत सिंह ने कई फिल्मों में भी गजल गायें है.

प्रमुख फिल्मे और उनके गाने: –

प्रेमगीत – ‘होठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो,

खलनायक – ओ मां तुझे सलाम,

दुश्मन – चिट्ठी ना कोई संदेश,

जॉगर्स पार्क – बड़ी नाज़ुक है ये मंज़िल,

साथ-साथ – ये तेरा घर, ये मेरा घर,

सरफ़रोश – होशवालों को ख़बर क्या बेख़ुदी क्या चीज़ है.

जगजीत सिंह ने हिंदी के अलावा पंजाबी और भक्ति के एलबमों में गाने गाये हैं जो हिट रहें हैं. जगजीत सिंह को 2003 में भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था. जगजीत सिंह का निधन 10 अक्टूबर 2011 को मुंबई में  हुआ था.

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पूर्व क्रिकेटर अज़हरुद्दीन मोहम्मद

अज़हरुद्दीन मोहम्मद, भारतीय क्रिकेट के पूर्व कप्तान और एक प्रमुख क्रिकेटर थे. उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान के रूप में कई बड़े और महत्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय मैचों का नेतृत्व किया. अज़हरुद्दीन का जन्म 08 फरवरी 1963 को हैदराबाद में हुआ था. उनकी शिक्षा  हैदराबाद के आल सैन्त्स स्कूल से हुई थी. अजहरुद्दीन ने अपने अंतर्राष्ट्रीय टेस्ट कॅरियर की शुरुआत 1984-85 में इंग्लैंड के विरुद्ध की थी.

अजहरुद्दीन ने टेस्ट मैचों में 22  शतक एवं 21  अर्धशतक लगाए हैं. उन्होंने 99 टेस्ट मैचों में 45.03 की औसत से कुल 6215 रन बनाए हैं. उन्होंने 334 एकदिवसीय मैचों की 308 पारियों में 54 बार नाबाद रहते हुए 36.92 की औसत से कुल 9378 रन बनाए हैं. उन्होंने एकदिवसीय मैचों में 07 शतक एवं 58 अर्धशतक लगाए हैं.

अज़हरुद्दीन क्रिकेट की दुनिया में उनका नाम बहुत महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से उनके बल्लेबाज़ी के क्षेत्र में. उन्होंने अपने क्रिकेट कैरियर में कई महत्वपूर्ण क्रिकेटीय रिकॉर्ड बनाए और भारतीय क्रिकेट टीम के लिए अहम योगदान दिया.

हालांकि, उन्होंने अपने क्रिकेट कैरियर के दौरान कुछ विवादों में भी रहे, जिससे उनका कैरियर कुछ संवेदनशीलता के माध्यम से गुजरा. फिर भी, उनका योगदान भारतीय क्रिकेट के इतिहास में अहम है और उन्हें एक प्रमुख क्रिकेट व्यक्तित्व के रूप में याद किया जाता है.

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अभिनेत्री और गायिका सोफी चौधरी

सोफी चौधरी एक ब्रिटिश-भारतीय गायिका, अभिनेत्री, और टेलीविजन प्रस्तोता हैं, जो मुख्यतः हिंदी फिल्मों और संगीत में सक्रिय हैं. उनका जन्म 8 फरवरी 1982 को मैनचेस्टर, इंग्लैंड में हुआ था. सोफी ने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से यूरोपीय राजनीति और फ्रेंच में स्नातक किया है.  इसके अतिरिक्त, उन्होंने लंदन एकेडमी ऑफ म्यूजिक एंड ड्रामेटिक आर्ट से स्वर्ण पदक प्राप्त किया है और पेरिस के साइंसेज पो में भी अध्ययन किया है.

सोफी ने अपने कैरियर की शुरुआत एक वीजे (वीडियो जॉकी) के रूप में की और बाद में गायन, अभिनय, और मॉडलिंग में कदम रखा. वह एमटीवी इंडिया की पूर्व वीजे भी रह चुकी हैं.

सोफी चौधरी ने अपने बहुमुखी प्रतिभा के माध्यम से भारतीय मनोरंजन उद्योग में एक विशेष स्थान बनाया है.

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अभिनेत्री इशिता शर्मा

इशिता शर्मा एक भारतीय अभिनेत्री, कथक नृत्यांगना, उद्यमी और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उन्होंने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत थिएटर और टेलीविजन से की, जब वे स्कूल में थीं, और बच्चों के शो जैसे ‘शाका लाका बूम बूम’ में काम किया. बाद में, उन्होंने वर्ष 2007 की अंग्रेजी फिल्म ‘लोइंस ऑफ पंजाब प्रेजेंट्स’ से बड़े पर्दे पर पदार्पण किया.

इशिता शर्मा इशिता शर्मा का जन्म 8 फ़रवरी 1988 को मुंबई में हुआ था. उन्होंने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत थिएटर और टेलीविजन से की, जब वे स्कूल में थीं, और बच्चों के शो जैसे ‘शाका लाका बूम बूम’ में काम किया. बाद में, उन्होंने अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरआत शाहरुख़ खान की फिल्म दूल्हा मिला गया से की थी..

फिल्में: – दिल दोस्ती ईटीसी (2007), दूल्हा मिल गया (2010), प्यार का पंचनामा (2011), साइकिल किक (2011), मेरठिया गैंगस्टर्स (2015).

टेलीविजन: –  कुछ तो लोग कहेंगे (2011–2013)

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अभिनेत्री इशिता राज शर्मा

इशिता राज शर्मा एक भारतीय अभिनेत्री और मॉडल हैं, जो मुख्यतः हिंदी फिल्मों में अपने कार्य के लिए जानी जाती हैं. उनका जन्म 8 फरवरी 1990 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था.

फिल्में: –

प्यार का पंचनामा (2011): इस फिल्म में इशिता ने चारू की भूमिका निभाई, जो तीन प्रमुख महिला पात्रों में से एक थी. यह फिल्म युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय हुई.

प्यार का पंचनामा 2 (2015): इस सीक्वल में उन्होंने कुसुम का किरदार निभाया, जिसमें उनकी जोड़ी ओमकार कपूर के साथ थी.

सोनू के टीटू की स्वीटी (2018): इस सफल फिल्म में इशिता ने पिहू खन्ना की भूमिका अदा की.

मेरठिया गैंगस्टर्स (2015): – इस फिल्म में उन्होंने पूजा का किरदार निभाया.

अपने अभिनय और मॉडलिंग के माध्यम से, इशिता राज शर्मा ने भारतीय फिल्म उद्योग में एक विशेष स्थान बनाया है.

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अभिनेत्री निकोल फारिया

निकोल एस्टेल फारिया एक भारतीय अभिनेत्री, सुपरमॉडल, उद्यमी और कंटेंट क्रिएटर हैं. वह वर्ष 2010 में ‘मिस अर्थ’ का खिताब जीतने वाली भारत की पहली और एकमात्र महिला हैं.

निकोल का जन्म 19 फरवरी 1990 को बेंगलुरु, कर्नाटक में हुआ था. निकोल ने 15 वर्ष की आयु में मॉडलिंग कैरियर की शुरुआत की. उन्होंने दिल्ली, मुंबई और कोलंबो (श्रीलंका) में काम किया. वह एले, कॉस्मोपॉलिटन, वोग जैसी फैशन पत्रिकाओं के लिए भी मॉडलिंग कर चुकी हैं. इसके अलावा, उन्होंने लक्मे फैशन वीक, विल्स लाइफस्टाइल इंडिया फैशन वीक और कोलंबो फैशन वीक में रैंप वॉक किया है.

वर्ष 2010 में, निकोल ने ‘फेमिना मिस इंडिया’ प्रतियोगिता में ‘मिस इंडिया अर्थ’ का खिताब जीता. इसके बाद, उन्होंने वियतनाम में आयोजित ‘मिस अर्थ 2010’ प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व किया और ‘मिस अर्थ’ का ताज पहनने वाली पहली भारतीय बनीं.

निकोल ने वर्ष 2014 में दिव्या खोसला कुमार द्वारा निर्देशित बॉलीवुड फिल्म ‘यारियां’ से अभिनय की दुनिया में कदम रखा.

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