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अमृत फल है…

आयुर्वेद में “अमृत” शब्द का उपयोग ऐसे फलों या जड़ी-बूटियों के लिए किया जाता है जो शरीर को पुनर्जीवित और शुद्ध करने की क्षमता रखते हैं. आयुर्वेद के गर्भ में कई ऐसे रहष्य हैं जिन्हें हम सभी जानते हैं या नहीं भी जानते हैं. कुछ ऐसे ही पेड़-पौधे हैं जिनका धार्मिक ग्रन्थों में भी वर्णन मिलता है और वो, पेड़ या पौधे की पूजा भी की जाती है. एक ऐसा ही पौधा जो झाड़ियों में होता है और वो एशिया के अलावा यूरोप और अफ्रीका में भी पाया जाता है साथ ही, हिमालयी क्षेत्र व प्राद्वीपीय भारत में भी आंवला के पौधे बहुतायत मिलते हैं. इसके फल हरे, चिकने और गुद्देदार होते हैं और, उसका स्वाद कसैला होता है और, इसके फुल घंटे की तरह के होते हैं. संस्कृत में इसे अमृता, अमृतफल, आमलकी, पंचरसा अंग्रेजी में ‘एँब्लिक माइरीबालन’ या इण्डियन गूजबेरी (Indian gooseberry) तथा लैटिन में ‘फ़िलैंथस एँबेलिका’ (Phyllanthus emblica)  के नाम से जानते हैं.

आंवला ही ऐसा पेड़ है जो पुरे भारतवर्ष के जंगलों व बगीचों में होता है और इसकी उंचाई करीब 2000 से 25000 फुट तक, छाल राख के रंग की, पत्ते इमली के पत्तों जैसे, किंतु कुछ बड़े तथा फूल पीले रंग के छोटे-छोटे होते हैं. फूलों के स्थान पर गोल, चमकते हुए, पकने पर लाल रंग के, फल लगते हैं, जो आँवला नाम से ही जाने जाते हैं. हिन्दू धर्म के अनुसार आँवले का फल भगवान विष्णु को बहुत पसंद है इसीलिए अगर आँवले के पेड़ के नीचे भोजन पका कर खाया जाये तो सारे रोग दूर हो जाते हैं. चरक के मत से शारीरिक अवनति को रोकनेवाले अवस्थास्थापक द्रव्यों में आँवला सबसे प्रधान होता है. प्राचीन ग्रंथकारों ने इसको शिवा (कल्याणकारी), वयस्था (अवस्था को बनाए रखनेवाला) तथा धात्री (माता के समान रक्षा करनेवाला) कहा जाता है. आयुर्वेद के अनुसार हरीतकी (हड़) और आँवला दो सर्वोत्कृष्ट औषधियाँ हैं लेकिन, इन दोनों में आँवले का महत्व अधिक होता है.

आँवला विटामिन ‘सी’ का सर्वोत्तम और प्राकृतिक स्रोत के रूप में जाना जाता है साथ ही, यह भारी, रुखा, शीत, अम्ल रस प्रधान, लवण रस छोड़कर शेष पाँचों रस वाला, विपाक में मधुर, रक्तपित्त व प्रमेह को हरने वाला, अत्यधिक धातुवर्द्धक और रसायन है. आँवला दाह, पाण्डु, रक्तपित्त, अरुचि, त्रिदोष, दमा, खाँसी, श्वास रोग, कब्ज, क्षय, छाती के रोग, हृदय रोग, मूत्र विकार आदि अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति रखता है. बताते चलें कि, “विटामिन सी” ऐसा नाजुक तत्व होता है जो गर्मी के प्रभाव से प्राय: नष्ट हो जाता है, लेकिन आँवले में विद्यमान “विटामिन सी” कभी नष्ट नहीं होता है. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि, आंवले के 100 ग्राम रस में 720 मि.ग्रा विटामिन सी पाया जाता है इसके अलावा आर्द्रता 81.2, प्रोटीन 0.5, वसा 0.1, खनिज द्रव्य 0.7, कार्बोहाइड्रेट्स 14.1, कैल्शियम 0.05, फॉस्फोरस 0.02 प्रतिशत, लौह 1.2 मि.ग्रा., निकोटिनिक एसिड 0.2 मि.ग्रा. साथ ही गैलिक एसिड, टैनिक एसिड, शर्करा (ग्लूकोज), अलब्यूमिन, काष्ठौज आदि तत्व भी पाए जाते हैं.

आँवला दाह, खाँसी, श्वास रोग, कब्ज, पाण्डु, रक्तपित्त, अरुचि, त्रिदोष, दमा, क्षय, छाती के रोग, हृदय रोग, मूत्र विकार आदि अनेक रोगों को नष्ट करने की शक्ति रखता है. वीर्य को पुष्ट करके पौरुष बढ़ाता है, चर्बी घटाकर मोटापा दूर करता है साथ ही, सिर के केशों को काले, लम्बे व घने रखता है. दाँत-मसूड़ों की खराबी दूर होना, कब्ज, रक्त विकार, चर्म रोग, पाचन शक्ति में खराबी, नेत्र ज्योति बढ़ना, बाल मजबूत होना, सिर दर्द दूर होना, चक्कर, नकसीर, रक्ताल्पता, बल-वीर्य में कमी, बेवक्त बुढ़ापे के लक्षण प्रकट होना, यकृत की कमजोरी व खराबी, स्वप्नदोष, धातु विकार, हृदय विकार, फेफड़ों की खराबी, श्वास रोग, क्षय, दौर्बल्य, पेट कृमि, उदर विकार, मूत्र विकार आदि अनेक व्याधियों के घटाटोप को दूर करने के लिए आँवला काफी उपयोगी है.

बताते चलें कि, आंवला का प्रयोग करते समय साथ ही शहद का प्रयोग करें तो, यह आपके शरीर पर नवजीवन प्रभाव देता है साथ ही आपका मन शांत और शरीर फिट व ऊर्जा से ओतप्रोत हो जाएगा. आयुर्वेदिक चिकित्सक के अनुसार, हरे आंवले का रस निकाल लें और समान मात्र में शहद मिलाकर प्रात: खाली पेट में पी लें, तत्पश्चात दो घंटे के बाद ही नाश्ता करें. ऐसा दो महीने करने पर आपको आंवले के प्रयोग से नवजीवन होने का राज मिल जाएगा और आपका काय कल्प भी हो जाएगा. आंवले का प्रयोग करते समय विशेस ध्यान रखें कि, इस दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करें साथ ही तेल, मिर्च, खटाई, तले हुए भोजन और गरिष्ठ भोजन से परहेज करें. महर्षि चरक के अनुसार, इस जगत में जितने भी औषधियां हैं उनमे आंवला सबसे उत्तम है चुकिं, क्योंकि इसमें जितने रोग निवारक, रक्तशोधक और आरोग्यवर्धक गुण है, और किसी भी औषधियां या रसायन में नहीं हैं. और क्या कहें चुकिं, आंवला तो गुणों का खजाना है…  

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