वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस
जगदीश चंद्र बोस एक महान भारतीय वैज्ञानिक, भौतिकशास्त्री, जीवविज्ञानी और लेखक थे. उन्हें रेडियो विज्ञान और बायोफिज़िक्स के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए जाना जाता है. वे पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने यह सिद्ध किया कि पौधों में भी संवेदनाएं होती हैं.
जगदीश चंद्र बोस का जन्म 30 नवम्बर 1858 को बंगाल (अब बांग्लादेश) में ढाका जिले के फरीदपुर के मेमनसिंह में एक प्रख्यात बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था. उनके पिता भगवान चन्द्र बसु ब्रह्म समाज के नेता थे और फरीदपुर, बर्धमान एवं अन्य जगहों पर उप-मैजिस्ट्रेट या सहायक कमिश्नर थे. बोस की शिक्षा एक बांग्ला विद्यालय में प्रारंभ हुई, जो उनके भारतीय मूल को मजबूत करने का एक उद्देश्य था. बोस ने कोलकाता के सेंट जेवियर्स कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली, उसके बाद वे लंदन विश्वविद्यालय और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में भौतिकी और प्राकृतिक विज्ञान का अध्ययन किया.
जगदीश चंद्र बोस ने वर्ष 1895 में पहली बार माइक्रोवेव और रेडियो तरंगों को प्रसारित किया. उन्होंने “मर्क्युरी कोहरे वाले रिसीवर” का निर्माण किया, जो रेडियो तरंगों को पकड़ने में सक्षम था. हालांकि, उन्हें पेटेंट कराने में रुचि नहीं थी, क्योंकि उनका मानना था कि ज्ञान मानवता के लिए होता है. उनके कार्यों को बाद में इतालवी वैज्ञानिक गुगलियेल्मो मार्कोनी द्वारा सराहा गया.
जगदीश चंद्र बोस ने यह सिद्ध किया कि पौधे भी संवेदनशील होते हैं और बाहरी उत्तेजनाओं का जवाब देते हैं. उन्होंने पौधों की गतिविधियों का अध्ययन करने के लिए “क्रेस्कोग्राफ” (Crescograph) नामक यंत्र का आविष्कार किया. उनके प्रयोगों ने यह साबित किया कि पौधे प्रकाश, तापमान, चोट और रसायनों पर प्रतिक्रिया करते हैं.
जगदीश चंद्र बोस की 23 नवंबर, 1937 को बंगाल के गिरिडीह नगर में मृत्यु हुई थी. जगदीश चंद्र बोस ने विज्ञान को भारतीय संस्कृति और दर्शन से जोड़ा. उन्होंने कई कहानियां और लेख लिखे, जिनमें भारतीय मिथकों और विज्ञान के बीच की समानता को दिखाया गया.
सम्मान और उपलब्धियां
रॉयल सोसाइटी, लंदन के फेलो (FRS): 1920 में सम्मानित.
उन्होंने वर्ष 1917 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस की स्थापना की, जो आज भी अनुसंधान के लिए प्रसिद्ध है. वे अपने वैज्ञानिक कार्यों के साथ-साथ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से भी जुड़े हुए थे. जगदीश चंद्र को आधुनिक भारतीय विज्ञान का जनक कहा जाता है. उनका वैज्ञानिक दृष्टिकोण और उपकरण आविष्कार आज भी कई शोधकर्ताओं के लिए प्रेरणा है. उनकी जयंती हर साल “राष्ट्रीय विज्ञान दिवस” के रूप में मनाई जाती है.
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क्रांतिकारी गेंदालाल दीक्षित
गेंदालाल दीक्षित भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रांतिकारी थे, जिनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में विशेष रूप से उल्लेखनीय है. उनका जन्म 30 नवंबर 1888 को उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के बसई गांव में हुआ था. वे एक शिक्षक थे और अपने राष्ट्रप्रेम के कारण ब्रिटिश शासन के विरुद्ध संघर्ष में शामिल हुए.
गेंदालाल दीक्षित ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ हथियारों और गोला-बारूद का संग्रह करने की योजना बनाई. उन्होंने स्थानीय युवाओं को संगठित कर उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया. उनकी इस योजना को “मैनपुरी षड्यंत्र” के नाम से जाना गया. उन्होंने ‘मातृवेदी’ नामक एक संगठन की स्थापना की, जिसका उद्देश्य भारतीय युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम के लिए तैयार करना था. इस संगठन में भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों ने प्रेरणा प्राप्त की.
दीक्षित ने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ हथियार उठाने की वकालत की. उनके नेतृत्व में कई गुप्त बैठकें आयोजित की गईं, जहां स्वतंत्रता संग्राम की रणनीतियां बनाई गईं. ब्रिटिश सरकार ने उनकी योजनाओं को विफल कर दिया, और वर्ष 1919 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. जेल में अमानवीय यातनाएं झेलने के बाद उन्होंने 21 दिसंबर 1920 को आत्महत्या कर ली ताकि वे ब्रिटिश सरकार की योजनाओं का हिस्सा न बनें.
गेंदालाल दीक्षित का बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों के लिए प्रेरणा स्रोत बना. उनका नाम भारतीय इतिहास में उन वीर सपूतों में लिया जाता है, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर देश को स्वतंत्रता दिलाने की राह को प्रशस्त किया.
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इतिहासकार रोमिला थापर
रोमिला थापर भारत की एक प्रसिद्ध इतिहासकार हैं, जिनका नाम भारतीय इतिहास के अध्ययन और शोध में प्रमुखता से लिया जाता है. वे प्राचीन भारतीय इतिहास की विशेषज्ञ मानी जाती हैं और अपने गहन विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण और आलोचनात्मक लेखन के लिए विख्यात हैं. उनका शोध कार्य मुख्य रूप से मौर्य साम्राज्य, अशोक के शासनकाल और भारतीय समाज के विकास पर केंद्रित रहा है.
रोमिला थापर का जन्म 30 नवंबर 1931 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा भारत में प्राप्त की और उच्च शिक्षा के लिए ब्रिटेन गईं. रोमिला थापर ने स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज (SOAS), लंदन विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की. उनका शोध मौर्य साम्राज्य के इतिहास पर केंद्रित था.
रोमिला थापर ने भारत और विदेशों के कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में पढ़ाया. वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU), नई दिल्ली में प्राचीन भारतीय इतिहास की प्रोफेसर रहीं. JNU में उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा, जहां उन्होंने भारतीय इतिहास के अध्ययन के लिए एक नई दृष्टि प्रस्तुत की. वे कोलंबिया यूनिवर्सिटी और कॉर्नेल यूनिवर्सिटी जैसे अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में भी विजिटिंग प्रोफेसर रहीं.
रोमिला थापर ने प्राचीन भारतीय इतिहास और समाज के विविध पहलुओं पर अनेक महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी हैं. उनकी कृतियां सरल भाषा में लिखी गई हैं, जो शोधकर्ताओं और आम पाठकों दोनों के लिए उपयोगी हैं.
प्रमुख पुस्तकें: –
अशोक एंड द डिक्लाइन ऑफ द मौर्याज (Ashoka and the Decline of the Mauryas). यह उनकी सबसे प्रसिद्ध पुस्तकों में से एक है, जिसमें मौर्य साम्राज्य और अशोक के शासनकाल का विश्लेषण किया गया है.
ए हिस्ट्री ऑफ इंडिया (A History of India) – यह दो खंडों में है और भारतीय इतिहास का व्यापक विवरण प्रदान करती है.
साकिंस ऑफ द स्टेट (Sakins of the State) – यह पुस्तक भारत में सांस्कृतिक और सामाजिक आंदोलनों पर केंद्रित है.
द अर्ली इंडिया – फ्रॉम द ओरिजिन्स टू एडी 1300 (Early India: From the Origins to AD 1300). यह पुस्तक प्राचीन भारत के इतिहास का एक व्यापक परिचय है.
रोमिला थापर ने भारतीय इतिहास के अध्ययन में तटस्थ और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को प्राथमिकता दी. उनके लेखन में धार्मिक ग्रंथों और पुरातात्विक साक्ष्यों का विश्लेषणात्मक उपयोग किया गया है. वे भारत के इतिहास को धार्मिक दृष्टिकोण से देखने की बजाय सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक दृष्टिकोण से देखने की वकालत करती हैं.
सम्मान और पुरस्कार: –
क्लूज प्राइज (Kluge Prize): – वर्ष 2008 में उन्हें यह प्रतिष्ठित पुरस्कार दिया गया, जो मानविकी और सामाजिक विज्ञान में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया जाता है.
पद्म भूषण (1976): – उन्होंने यह सम्मान स्वीकार नहीं किया, क्योंकि वे सरकारी हस्तक्षेप से स्वतंत्र रहना चाहती थीं.रोमिला थापर को दुनिया भर के कई विश्वविद्यालयों से मानद डिग्रियां प्रदान की गई हैं.
रोमिला थापर ने भारतीय इतिहास पर अपनी तटस्थ और आलोचनात्मक दृष्टि के कारण कई बार विवादों का सामना किया है. उनके इतिहासलेखन की आलोचना मुख्य रूप से हिंदुत्व विचारधारा के समर्थकों ने की है, जो उन्हें भारतीय इतिहास के “धार्मिक” पहलुओं की अनदेखी करने का आरोप लगाते हैं. हालांकि, उन्होंने हमेशा अपने लेखन को साक्ष्य-आधारित और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उचित ठहराया है.
रोमिला थापर का योगदान भारतीय इतिहास के क्षेत्र में अद्वितीय है. उन्होंने न केवल भारतीय इतिहास के अध्ययन के नए आयाम प्रस्तुत किए, बल्कि इस क्षेत्र में आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा भी बनीं. उनका काम इस बात का प्रमाण है कि इतिहास केवल अतीत की घटनाओं का वर्णन नहीं, बल्कि उनका वैज्ञानिक और सामाजिक विश्लेषण है.
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पार्श्व गायिका सुधा मल्होत्रा
सुधा मल्होत्रा भारतीय फिल्म जगत की एक पार्श्व गायिका और संगीतकार हैं. वे वर्ष 1950 – 60 के दशक में हिंदी सिनेमा के लिए अपने मधुर और भावपूर्ण गायन के लिए जानी जाती हैं. उनकी आवाज़ में एक खास मिठास और गहराई थी, जिसने उन्हें संगीत प्रेमियों के दिलों में विशेष स्थान दिलाया.
सुधा मल्होत्रा का जन्म 30 नवंबर 1936 को कानपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था. उन्होंने बचपन से ही संगीत में रुचि दिखाना शुरू कर दिया था. परिवार का प्रोत्साहन और उनकी खुद की लगन ने उन्हें एक गायिका बनने के लिए प्रेरित किया. सुधा मल्होत्रा का गायन कैरियर किशोरावस्था में ही शुरू हो गया था. वे वर्ष 1950 के दशक में हिंदी फिल्म संगीत में सक्रिय रहीं और कई प्रसिद्ध संगीतकारों के साथ काम किया. उनकी आवाज़ और गायन शैली ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
सुधा की गायकी में भावनाओं की गहराई और परिष्कृत अभिव्यक्ति थी. उन्होंने शास्त्रीय संगीत पर आधारित और भावपूर्ण गीत गाए. उनके गीतों में लयबद्धता और भावुकता का अद्भुत संतुलन देखने को मिलता है. सुधा मल्होत्रा ने कई यादगार गीत गाए, जिनमें से कुछ आज भी संगीत प्रेमियों के बीच लोकप्रिय हैं: – “तुम मुझे भूल भी जाओ”
फिल्म: दीदी (1959) – “सलामत रहो” – संगीतकार: हेमंत कुमार. यह गीत सुधा मल्होत्रा के करियर का एक मील का पत्थर साबित हुआ.
फिल्म: नकाब (1955) – संगीतकार: सी. रामचंद्र – “मिलो ना तुम तो हम घबराएं”.
फिल्म: हीर-रांझा (1970) – संगीतकार: मदन मोहन – “जीवन है मधुबन”.
फिल्म: झांझर (1953) – संगीतकार: वसंत देसाई –
सुधा मल्होत्रा न केवल गायिका थीं, बल्कि उन्होंने संगीत निर्देशन और गीत लेखन में भी योगदान दिया. उनकी गहरी संगीत समझ ने उन्हें इस क्षेत्र में भी अलग पहचान दिलाई. सुधा मल्होत्रा ने अपने कैरियर के शिखर पर होने के बावजूद फिल्मों से दूरी बना ली और पारिवारिक जीवन को प्राथमिकता दी. उन्होंने प्रतिष्ठित उद्योगपति रामकृष्ण डालमिया से विवाह किया और अपने बच्चों की परवरिश में व्यस्त हो गईं.
सुधा मल्होत्रा का योगदान भारतीय फिल्म संगीत में अमूल्य है. उनके गाए गीत आज भी संगीत प्रेमियों के बीच जीवंत हैं. उन्हें कई संगीत सम्मानों से नवाजा गया. उनकी गायकी ने कई युवा कलाकारों को प्रेरणा दी है.
सुधा मल्होत्रा का संगीत भारतीय फिल्म उद्योग के स्वर्ण युग का अभिन्न हिस्सा है. उनके गीत भावनाओं और शास्त्रीयता का अद्भुत मेल प्रस्तुत करते हैं, जो आज भी भारतीय संगीत के सुनहरे दौर को याद करने का माध्यम बनते हैं.
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पार्श्वगायिका वाणी जयराम
पार्श्वगायिका वाणी जयराम भारतीय वादकी और भारतीय शास्त्रीय संगीतकार थीं, जिन्होंने क्लासिकल हिंदी संगीत में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाया. वाणी जयराम का जन्म 30 नवंबर 1945 को हुआ था और उन्होंने अपने संगीत कैरियर की शुरुआत बचपन में ही की थी.
वाणी जयराम ने भारतीय संगीत के कई प्रमुख घरानों से शिक्षा प्राप्त की, और वे एक प्रमुख कला विद्वान और गुरु के रूप में मानी जाती थीं. उन्होंने अपने जीवन में विभिन्न संगीतिक प्रदर्शन किए और अपने उद्गामी गायन की कला में माहिर थीं. उनका आलाप और भावना से भरपूर गायन उन्हें एक अद्वितीय संगीतकार बनाता है.
वाणी जयराम का गायन और उनका संगीत भारतीय संगीत में विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है, और उन्होंने भारतीय संगीत के क्षेत्र में अपना विशेष योगदान दिया. उन्होंने कई अल्बम और संगीत रिकॉर्डिंग्स की रचना की, और उनकी आवाज और संगीत कई प्रशंसा प्राप्त करने में मदद करी. वाणी जयराम ने संगीत के क्षेत्र में अपना नाम बनाया और भारतीय संगीत में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया. वाणी जयराम का निधन 04 फरवरी 2023 को हुआ था.
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अभिनेत्री दीपा साही
दीपा साही भारतीय सिनेमा की एक अभिनेत्री, लेखिका, और निर्माता हैं. वे अपने अनूठे अभिनय और बोल्ड किरदारों के लिए जानी जाती हैं. दीपा ने वर्ष 1980 – 90 के दशक में कई यादगार फिल्मों में काम किया, खासतौर पर श्याम बेनेगल और गोविंद निहलानी जैसे निर्देशकों के साथ.
दीपा साही का जन्म 30 नवंबर 1962 को देहरादून, उत्तराखंड में हुआ था. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से पढ़ाई की और बाद में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) से अभिनय की शिक्षा प्राप्त की. दीपा ने गोविन्द नहलानी की फिल्म पार्टी से 1984 में अभिनय क्षेत्र में कदम रखा और समानांतर सिनेमा में अपनी पहचान बनाई, जहां उन्होंने समाज और मानव मनोविज्ञान से जुड़े किरदार निभाए. श्याम बेनेगल की फिल्मों में वे अक्सर महत्वपूर्ण भूमिकाओं में नज़र आईं.
प्रमुख फिल्में: –
तम्मस (1987): – गोविंद निहलानी की इस फिल्म में उन्होंने एक महत्वपूर्ण किरदार निभाया.
माया मेमसाहब (1993): – इस फिल्म में शाहरुख खान के साथ उनके अभिनय को सराहा गया. फिल्म में उनके बोल्ड किरदार ने काफी चर्चा बटोरी.
ओ डार्लिंग ये है इंडिया! (1995): – एक अलग तरह की कॉमेडी फिल्म.
दीपा साही ने फिल्म निर्देशक कतन मेहता से विवाह किया. वे न केवल अभिनय में बल्कि लेखन और निर्देशन में भी रुचि रखती हैं. दीपा साही को उनके बेहतरीन अभिनय के लिए कई बार सराहा गया. समानांतर सिनेमा में उनके योगदान को भारतीय सिनेमा में महत्वपूर्ण माना जाता है. दीपा साही ने अभिनय के अलावा फिल्म निर्माण और निर्देशन में भी हाथ आजमाया. उन्होंने अपने पति केतन मेहता के साथ मिलकर कई फिल्में प्रोड्यूस कीं. उन्होंने टी और टूस्त नामक फिल्म का निर्देशन किया.
दीपा साही को एक बहुमुखी प्रतिभा की धनी अभिनेत्री के रूप में याद किया जाता है. उनका कैरियर यह दिखाता है कि कला के प्रति समर्पण कैसे एक व्यक्ति को मुख्यधारा से अलग पहचान दिला सकता है.
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मॉडल मेहर जेसिया
मेहर जेसिया भारत की सुपरमॉडल और ब्यूटी क्वीन हैं. वर्ष 1980 – 90 के दशक में फैशन इंडस्ट्री में उन्होंने अपनी पहचान बनाई और भारतीय मॉडलिंग जगत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नई ऊंचाई दी. मेहर जेसिया अपने आकर्षक व्यक्तित्व, आत्मविश्वास, और पेशेवर दृष्टिकोण के लिए जानी जाती हैं.
मेहर जेसिया का जन्म 30 नवंबर 1968 को मुंबई, महाराष्ट्र के एक पारसी परिवार में हुआ था. उनका पालन-पोषण मुंबई में हुआ. मेहर जेसिया वर्ष 1986 में फेमिना मिस इंडिया का खिताब जीतकर सुर्खियों में आईं. उन्होंने भारत और विदेश में कई प्रतिष्ठित फैशन शो में रैंप वॉक किया. मेहर भारत की पहली सुपरमॉडलों में से एक मानी जाती हैं, जिन्होंने भारतीय फैशन को वैश्विक मानचित्र पर स्थापित करने में मदद की.
मेहर जेसिया ने कई बड़े भारतीय और अंतरराष्ट्रीय ब्रांड्स के लिए विज्ञापन किए. उनकी छवि ने उन्हें फैशन और लाइफस्टाइल का प्रतीक बना दिया. मेहर जेसिया ने वर्ष 1998 में प्रसिद्ध अभिनेता और मॉडल अर्जुन रामपाल से विवाह किया. उनकी दो बेटियां हैं, माहिका और मायरा. वर्ष 2019 में मेहर और अर्जुन ने आपसी सहमति से तलाक ले लिया.
मेहर जेसिया भारतीय फैशन इंडस्ट्री की पायनियर मानी जाती हैं. उन्होंने कई उभरते मॉडलों को प्रेरित किया और एक आदर्श के रूप में पहचान बनाई. मेहर जेसिया का नाम आज भी भारतीय मॉडलिंग और फैशन जगत में आदर के साथ लिया जाता है. उनकी सफलता ने इस क्षेत्र में आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्ग प्रशस्त किया.
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अभिनेत्री राशि खन्ना
राशि खन्ना भारतीय सिनेमा की एक लोकप्रिय अभिनेत्री और गायिका हैं, जो मुख्य रूप से तेलुगु और तमिल फिल्मों में काम करती हैं. अपनी सुंदरता, अभिनय कौशल, और बहुमुखी प्रतिभा के लिए जानी जाने वाली राशि ने बहुत कम समय में एक खास पहचान बनाई है.
राशि खन्ना का जन्म 30 नवंबर 1990 को नई दिल्ली में हुआ था. राशि ने दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में स्नातक की डिग्री हासिल की. राशि शुरू में IAS अधिकारी बनने की इच्छा रखती थीं, लेकिन बाद में उन्होंने मॉडलिंग और अभिनय में कैरियर बनाने का फैसला किया.
राशि ने बॉलीवुड में अपना डेब्यू “मद्रास कैफे” (2013) से किया, जिसमें उन्होंने एक जर्नलिस्ट का किरदार निभाया. तेलुगु फिल्म “ऊहलु गुसगुसलाडे” (2014) से राशि ने दक्षिण भारतीय सिनेमा में कदम रखा.
फिल्में: – “जिल” (2015), “सुप्रीम” (2016), “थोली प्रेमा” (2018), “प्रतिरोजू पंडगे” (2019).
राशि खन्ना ने कई फिल्मों में गाने भी गाए हैं. उनकी आवाज़ और गायन प्रतिभा ने उन्हें और भी खास बना दिया.
प्रमुख फिल्में: –
“बंगाल टाइगर” (2015): – रवि तेजा के साथ.
“थोली प्रेमा” (2018): – यह फिल्म उनके कैरियर की एक महत्वपूर्ण फिल्म मानी जाती है.
“इमाइका नोडिगल” (2018): – तमिल सिनेमा में उनकी महत्वपूर्ण फिल्म.
“सरदार” (2022): – एक और उल्लेखनीय तमिल फिल्म.
राशि खन्ना को पढ़ना, गाना, और योगा करना पसंद है. वह अपने अभिनय के साथ-साथ अपनी फिटनेस को लेकर भी जानी जाती हैं. राशि को उनके बेहतरीन अभिनय के लिए कई नामांकन और पुरस्कार मिले हैं. तेलुगु और तमिल सिनेमा में उनका योगदान उल्लेखनीय है.
राशि खन्ना ने अपनी मेहनत और प्रतिभा से भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में एक खास जगह बनाई है. उनकी बहुमुखी प्रतिभा और सरल व्यक्तित्व उन्हें दर्शकों के बीच लोकप्रिय बनाते हैं.
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बारहवें प्रधानमंत्री इन्द्र कुमार गुजराल
इन्द्र कुमार गुजराल भारत के बारहवें प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने वर्ष 1997 – 98 तक देश का नेतृत्व किया. वे एक अनुभवी राजनेता, विद्वान, और कुशल कूटनीतिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं. उनकी नेतृत्व शैली और विदेश नीति, जिसे “गुजराल डॉक्ट्रिन” के नाम से जाना जाता है, भारत के पड़ोसी देशों के साथ शांतिपूर्ण और सहयोगपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देने में अहम साबित हुई.
इन्द्र कुमार का जन्म 4 दिसम्बर, 1919 को झेलम में हुआ था, जो उस समय पंजाब प्रान्त का अविभाजित हिस्सा था. इनके पिता का नाम अवतार नारायण गुजराल तथा माता का नाम पुष्पा गुजराल था. इन्द्र कुमार गुजराल का विवाह 26 मई 1946 को शीला देवी के साथ सम्पन्न हुआ. इनके पिता अवतार नारायण गुजराल ने भारत के स्वाधीनता संग्राम में हिस्सा लिया था. गुजराल ने लाहौर के फॉरमैन क्रिश्चियन कॉलेज और गवर्नमेंट कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की. वे लाहौर के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सत्याग्रह में हिस्सा लिया, जिसके कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा. इन्द्र कुमार गुजराल का राजनीतिक कैरियर छह दशकों तक फैला रहा, जिसमें उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया.
प्रमुख पद: –
सूचना और प्रसारण मंत्री (1975): – इंदिरा गांधी की सरकार में वे सूचना और प्रसारण मंत्री बने. आपातकाल के दौरान वे पद पर थे, लेकिन मीडिया पर सरकारी नियंत्रण से असहमत होकर इस्तीफा दे दिया.
विदेश मंत्री (1989-1990, 1996-1997): – गुजराल ने विदेश मंत्रालय संभालते हुए पड़ोसी देशों के साथ संबंध सुधारने की दिशा में काम किया.
प्रधानमंत्री (1997-1998): – 21 अप्रैल 1997 को उन्होंने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. वे भारत के पहले प्रधानमंत्री थे जो राज्यसभा सदस्य रहते हुए प्रधानमंत्री बने.
इन्द्र कुमार गुजराल की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि उनकी विदेश नीति थी, जिसे “गुजराल डॉक्ट्रिन” कहा जाता है. इसका मुख्य उद्देश्य भारत के पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण और सहयोगपूर्ण संबंध बनाना था.
पांच सिद्धांत: –
पड़ोसी देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों में कोई शर्त नहीं रखी जाएगी.
छोटे पड़ोसी देशों को बिना किसी पारस्परिकता की अपेक्षा के लाभ प्रदान किए जाएंगे.
पड़ोसी देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा.
विवादों को बातचीत के माध्यम से हल किया जाएगा.
पड़ोसी देशों के साथ शांति और सहयोग को प्राथमिकता दी जाएगी.
इस नीति का उद्देश्य भारत को दक्षिण एशियाई क्षेत्र में एक भरोसेमंद नेतृत्व प्रदान करना था.
गुजराल ने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को कम करने के लिए प्रयास किए. उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान ग्रामीण विकास और शिक्षा पर जोर दिया. गुजराल की पत्नी शीला गुजराल एक कवयित्री थीं. उनके दो बेटे हैं, जिनमें से नरेश गुजराल एक राजनेता हैं. गुजराल को साहित्य और कला में गहरी रुचि थी. वे एक बेहतरीन वक्ता और लेखक भी थे.
इन्द्र कुमार गुजराल का निधन 30 नवंबर 2012 को 92 वर्ष की आयु में हुआ. उन्होंने अपनी सादगी, विद्वता, और राजनीतिक निपुणता के कारण भारतीय राजनीति में एक अमिट छाप छोड़ी.
इन्द्र कुमार गुजराल को उनकी विदेश नीति, कूटनीति और शांतिपूर्ण नेतृत्व के लिए याद किया जाता है. उनकी “गुजराल डॉक्ट्रिन” भारतीय विदेश नीति में आज भी प्रासंगिक है और उनकी सादगी तथा शालीनता आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनी हुई है.