विजयादशमी…
वर्तमान समय में देवताओं के चिकित्सक का पावन और पवित्र महीना चल रहा है. इस महीने में माँ शक्ति की आराधना बड़े ही धूमधाम से की जाती है. नवरात्रि के नो दिनों तक माँ के भिन्न-भिन्न रूप की आराधना की जाती है लेकिन. आखरी दिन की पूजा माता विजया के नाम से मनाई जाती है. वास्तव में देखा जाय तो दशहरे का उत्सव शक्ति या यूँ कहें कि, शक्ति प्रदर्शन का उत्सव है. पौराणीक ग्रंथों के अनुसार, आश्विन शुक्ल दशमी को तारा उदय होने के समय ‘विजय’ नामक मुहूर्त होता है और यह मुहूर्त सर्वकार्य सिद्धिदायक होता है इसलिए भी इसे विजयादशमी कहा जाता हैं.
पौराणीक ग्रंथों रामायण के अनुसार, भगवान रामचन्द्रजी लंका प्रस्थान के दौरान माँ शक्ति की आराधना की थी. उनकी पूजा से प्रसन्न होकर 9वें दिन जब मां भगवती ने उन्हें विजय का आशीर्वाद दिया तब से दसवें दिन लंका पहुंचकर उन्होंने रावण का वध किया. मान्यता है कि तभी से ही नवरात्रि पूजन के बाद दसवें दिन असत्य पर सत्य की जीत का पर्व विजया दशमी मनाया जाने लगा. बताते चलें कि, आश्विन शुक्ल पक्ष दशमी को शस्त्र पूजन का विधान है. ज्ञात है कि, 09 दिनों की शक्ति उपासना के बाद दशवें दिन जीवन के हर क्षेत्र में विजय की कामना के शक्तिरूपा दुर्गा, काली की आराधना के साथ-साथ शस्त्र पूजा की परंपरा है.
वैसे तो देखा जाय तो सम्पूर्ण राष्ट्र में शक्ति पूजा की आराधना अपन-अपने रीति-रिवाजों के अनुसार की जाती है. धरती के स्वर्ग में भी माँ शक्ति की आराधना बड़े ही धूम-धाम से की जाती है. इस दौरान घर के बड़े सदस्य नोऊ दिनों तकपानी पीकर उपवास करते हैं साथ ही माँ खीरभवानी का दर्शन भी करते हैं. यह मंदिर एक झील के बीचोबीच बना हुआ है. मान्यता है कि देवी ने अपने भक्तों से कहा है कि यदि कोई अनहोनी होने वाली होगी तो सरोवर का पानी काला हो जाएगा. वहीँ, गुजरात में मिट्टी सुशोभित रंगीन घड़ा को देवी का प्रतीक माना जाता है और कुंवारी लड़कियां सिर पर रखकर एक लोकप्रिय नृत्य करती हैं जिसे गरबा कहा जाता है.
व्यापार की नगरी में भी देवी की आराधना बड़े ही धूमधाम से की जाती है लेकिन, दशमी के दिन बच्चे अपनी पढ़ाई में आशीर्वाद पाने के लिए मां सरस्वती के तांत्रिक चिह्नों की पूजा करते हैं. वहीँ, द्रविड़ प्रदेश का दशहरा पुरे भारत में प्रसिद्ध है. इस दौरान मैसूर प्रदेश की गलियों को सजाया जाता है साथ ही हाथियों का शृंगार कर पूरे शहर में एक भव्य जुलूस निकाला जाता है. इस समय प्रसिद्ध मैसूर महल को दीपमालिकाओं से दुलहन की तरह सजाया जाता है. इसके साथ शहर में लोग टार्च लाइट के संग नृत्य और संगीत की शोभायात्रा का आनंद लेते हैं.शाकम्भरी देवी शक्तिपीठ (उ०प्र०) पर भक्तों की इस दिन खूब चहल पहल होती है पूरी शिवालिक घाटी शाकम्भरी देवी के जयकारो से गूंज उठती है यहाँ पर नवरात्रि मे मेला लगता है.
छतीसगढ़ का बस्तर जिला में भी माँ शक्ति की आराधना बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस जिला में दशहरे के मुख्य कारण ‘राम की रावण पर विजय को ना मानकर’ इस जिले के लोग ‘मां दंतेश्वरी’ की आराधना को समर्पित होते हैं. बताते चलें कि, ‘दंतेश्वरी माता’ बस्तर अंचल के निवासियों की आराध्य देवी हैं और माँ दुर्गा का ही रूप हैं. बस्तर जिले में यह पर्व पुरे 75 दिनों तक मनाया जाता है. यहाँ दशहरा पर्व की शुरुआत श्रावन महीने की आमवस्या से शुरू होकर आश्विन मास की शुक्ल त्रयोदशी तक चलता है.वहीँ, बंगाल, ओडिशा और असम में यह पर्व दुर्गा पूजा के रूप में ही मनाया जाता है. यह बंगालियों, ओडिआ, और आसामीयों का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है.