न्यायाधीश बदरुद्दीन तैयबजी
बदरुद्दीन तैयबजी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेताओं में से एक थे, और वे पहले भारतीय मुस्लिम न्यायाधीशों में से एक थे. उनका जन्म 10 अक्टूबर 1844 को मुंबई में हुआ था. तैयबजी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई में प्राप्त की और बाद में कानून की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड गए. वे भारतीय समाज में शिक्षा और न्याय के समर्थक थे और ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ भारतीयों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले प्रमुख वकील थे.
बदरुद्दीन तैयबजी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तीसरे अध्यक्ष बने (1887 में मद्रास अधिवेशन) और कांग्रेस के पहले मुस्लिम अध्यक्ष भी थे. उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा दिया. उनके कार्यों ने भारतीय समाज में सामाजिक सुधार और राजनीतिक जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
तैयबजी समाज सुधारक भी थे और महिलाओं की शिक्षा, मुस्लिम समुदाय में सुधार, और सांप्रदायिक सौहार्द के समर्थक थे. उन्होंने न्यायपालिका में भी बड़ी प्रतिष्ठा अर्जित की और बॉम्बे हाई कोर्ट के पहले भारतीय न्यायाधीश बने. उनकी मृत्यु 19 अगस्त, 1909 को हुई, लेकिन उनकी विरासत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और न्यायपालिका में उनकी सेवाओं के कारण हमेशा जीवित रहेगी.
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अभिनेता राजकुमार
राजकुमार हिंदी सिनेमा के एक लोकप्रिय और प्रतिष्ठित अभिनेता थे. उनका अभिनय कैरियर वर्ष 1950 – 90 के दशक तक फैला, और उन्होंने बॉलीवुड में कई यादगार किरदार निभाए. राजकुमार अपने अनोखे संवाद बोलने के अंदाज, गहरी आवाज़, और करिश्माई व्यक्तित्व के लिए जाने जाते थे.
राजकुमार का जन्म 8 अक्टूबर 1926 को बलूचिस्तान (अब पाकिस्तान) के लोरालाई में एक कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ था. इनका वास्तविक नाम कुलभूषण पंडित था. वे पुलिस विभाग में अधिकारी थे, लेकिन उन्होंने बाद में फिल्मी दुनिया में कदम रखा.
राजकुमार ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत वर्ष 1952 में फिल्म “रंगीली” से की, लेकिन उन्हें पहचान मिली वर्ष 1957 में आई फिल्म “मदर इंडिया” से, जिसमें उन्होंने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इसके बाद उन्होंने कई हिट फिल्मों में काम किया और बॉलीवुड में अपनी जगह पक्की कर ली.
प्रमुख फिल्मों: – “पाकीज़ा” (1972), “वक़्त” (1965), “नील कमल” (1968), “मर्यादा” (1971), “तिरंगा” (1993).
राजकुमार की सबसे खास बात उनका अनोखा संवाद अदायगी का तरीका था. उनके संवादों का एक खास अंदाज होता था, जो दर्शकों के दिलों में बस जाता था. उनका सबसे मशहूर डायलॉग “जानी” भी बहुत लोकप्रिय हुआ. राजकुमार ने जेनिफर से विवाह किया था, जिनका नाम शादी के बाद गायत्री रखा गया. उनके तीन बच्चे थे: – पुरु राजकुमार, पाणिनी राजकुमार, और वस्तोत्रा राजकुमार.
राजकुमार का निधन 3 जुलाई 1996 को हुआ. उन्हें गले के कैंसर की बीमारी थी. उनकी मौत के बाद भी वे भारतीय सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित और यादगार अभिनेताओं में से एक माने जाते हैं. राजकुमार का योगदान भारतीय सिनेमा में अतुलनीय है, और वे अपने अनोखे अभिनय और व्यक्तित्व के कारण हमेशा याद किए जाएंगे.
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डिजाइनर गौरी खान
गौरी खान एक भारतीय इंटीरियर डिजाइनर, फिल्म निर्माता, और बॉलीवुड सुपरस्टार शाहरुख खान की पत्नी हैं. उनका जन्म 8 अक्टूबर 1970 को नई दिल्ली में हुआ था. वह भारतीय फिल्म उद्योग में एक महत्वपूर्ण शख्सियत हैं और अपनी डिजाइनिंग क्षमताओं और प्रोडक्शन हाउस “रेड चिलीज़ एंटरटेनमेंट” के सह-संस्थापक के रूप में जानी जाती हैं.
गौरी का जन्म एक पंजाबी हिंदू परिवार में हुआ था. उनका असली नाम गौरी छिब्बर है. उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा दिल्ली के लोरेटो कॉन्वेंट स्कूल से की और बाद में लेडी श्री राम कॉलेज से इतिहास में स्नातक की पढ़ाई की. इसके बाद उन्होंने NIFT (National Institute of Fashion Technology) से फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया. गौरी खान ने इंटीरियर डिजाइनिंग में अपना कैरियर वर्ष 2000 के दशक में शुरू किया और इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण पहचान बनाई. उन्होंने कई हाई-प्रोफाइल क्लाइंट्स के लिए काम किया है, जिसमें बॉलीवुड के सितारे और अन्य मशहूर हस्तियां शामिल हैं.
वर्ष 2010 में, उन्होंने सुज़ैन खान के साथ मिलकर “The Charcoal Project” नाम का एक डिज़ाइन स्टोर लॉन्च किया. वर्ष 2014 में, उन्होंने अपना खुद का इंटीरियर डिजाइन ब्रांड “Gauri Khan Designs” लॉन्च किया, जो लक्जरी डिज़ाइन और वास्तुकला के क्षेत्र में काम करता है. गौरी के डिज़ाइनिंग स्टूडियो को मुंबई के जुहू इलाके में खोला गया, जहाँ वे आवासीय और वाणिज्यिक परियोजनाओं पर काम करती हैं. उनके डिज़ाइन कार्यों के कुछ प्रमुख क्लाइंट्स में करण जौहर, रणबीर कपूर और मुकेश अंबानी शामिल हैं. उन्होंने मुंबई के लोकप्रिय रेस्टोरेंट्स और नाइटक्लब्स को भी डिज़ाइन किया है.
गौरी खान फिल्म निर्माण में भी एक सफल नाम हैं. उन्होंने और शाहरुख खान ने मिलकर वर्ष 2002 में “Red Chillies Entertainment” की स्थापना की, जो बॉलीवुड की सबसे सफल प्रोडक्शन कंपनियों में से एक है. इसके बैनर तले बनी कुछ प्रमुख फिल्में हैं: – “मैं हूँ ना” (2004), “ओम शांति ओम” (2007), “चेन्नई एक्सप्रेस” (2013), “दिलवाले” (2015).
गौरी की शादी शाहरुख खान से 25 अक्टूबर 1991 को हुई थी. उनके तीन बच्चे हैं: –आर्यन खान, सुहाना खान, और अबराम खान. गौरी और शाहरुख का परिवार बॉलीवुड के सबसे लोकप्रिय परिवारों में से एक है. गौरी खान अपनी फैशन स्टाइल और सोशल इवेंट्स में सक्रिय भागीदारी के लिए भी जानी जाती हैं. उन्होंने फैशन ब्रांडों के लिए मॉडलिंग भी की है और वे एक सोशल मीडिया आइकन भी हैं.
गौरी खान को उनके डिज़ाइन और प्रोडक्शन कार्यों के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं. उन्होंने भारत और विदेश में कई प्रतिष्ठित डिज़ाइन प्रोजेक्ट्स किए हैं, जिससे उन्हें एक अंतर्राष्ट्रीय पहचान भी मिली है. गौरी खान का नाम भारतीय डिज़ाइन और प्रोडक्शन जगत में शीर्ष पर आता है, और उनकी प्रतिभा और कड़ी मेहनत ने उन्हें एक सफल उद्यमी और कलाकार के रूप में स्थापित किया है.
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अभिनेता राजेश शर्मा
राजेश शर्मा एक भारतीय अभिनेता हैं, जो मुख्य रूप से हिंदी और बंगाली सिनेमा में अपने अभिनय के लिए जाने जाते हैं. वे अपने सहज और प्रभावशाली अभिनय के लिए मशहूर हैं, और उन्होंने बॉलीवुड में कई फिल्मों में सहायक भूमिकाएँ निभाई हैं. राजेश शर्मा का जन्म 8 अक्टूबर 1971 को पंजाब में हुआ था. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत थिएटर से की और बाद में फिल्मों में कदम रखा.
राजेश शर्मा ने वर्ष 1996 में बंगाली फिल्म “परमीतर एक दिन” से अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत की. इसके बाद उन्होंने हिंदी सिनेमा में भी अपने पैर जमाए और कई लोकप्रिय फिल्मों में काम किया. वे अक्सर फिल्मों में महत्वपूर्ण सहायक किरदार निभाते हैं, जो दर्शकों पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं.
प्रमुख हिंदी फ़िल्में: – “खोसला का घोसला” (2006), “लव सेक्स और धोखा” (2010), “नो वन किल्ड जेसिका” (2011), “स्पेशल 26” (2013), “बेबी” (2015), “एम.एस. धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी” (2016), “टॉयलेट: एक प्रेम कथा” (2017), “ड्रीम गर्ल” (2019).
राजेश शर्मा ने अपनी भूमिकाओं में एक मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है, चाहे वह कॉमेडी हो, ड्रामा हो या गंभीर किरदार. उन्होंने अपनी बहुमुखी प्रतिभा के जरिए इंडस्ट्री में अपनी एक खास जगह बनाई है. राजेश शर्मा ने बंगाली सिनेमा में भी कई उल्लेखनीय फिल्में की हैं और वहां के दर्शकों के बीच भी लोकप्रिय हैं. बंगाली फिल्मों में उनका अभिनय कैरियर समृद्ध रहा है, और उन्होंने इस इंडस्ट्री में भी अपनी खास पहचान बनाई है.
राजेश शर्मा ने बंगाली अभिनेत्री सुदिप्ता चक्रवर्ती से शादी की थी, लेकिन बाद में दोनों का तलाक हो गया. इसके बाद उन्होंने दूसरी शादी कर ली, और अब उनका निजी जीवन काफी संतुलित है.
राजेश शर्मा को उनकी सहज अभिनय शैली और प्राकृतिक संवाद अदायगी के लिए जाना जाता है. वे अक्सर फिल्मों में ‘कॉमन मैन’ या पुलिस अधिकारी जैसी भूमिकाएँ निभाते हैं और अपने किरदारों में असल जिंदगी की भावनाओं को बखूबी उतारते हैं. उनके अभिनय में एक गहराई और गंभीरता होती है, जो उन्हें खास बनाती है.
हालांकि राजेश शर्मा ने अभी तक प्रमुख पुरस्कार नहीं जीते हैं, लेकिन उनके योगदान और फिल्मों में उनकी शानदार अदाकारी के लिए उन्हें खूब सराहना मिली है. उनका नाम भारतीय सिनेमा में उन अभिनेताओं में गिना जाता है, जो अपने किरदारों में जान डाल देते हैं और फिल्म को यादगार बना देते हैं. राजेश शर्मा आज भी बॉलीवुड और बंगाली सिनेमा में सक्रिय हैं और अपने प्रशंसकों के बीच एक लोकप्रिय कलाकार के रूप में जाने जाते हैं.
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अभिनेत्री मोना सिंह
मोना सिंह एक भारतीय अभिनेत्री और टीवी होस्ट हैं, जो मुख्य रूप से हिंदी टेलीविजन और फिल्म उद्योग में अपने काम के लिए जानी जाती हैं. उनका जन्म 8 अक्टूबर 1981 को चंडीगढ़ में हुआ था. मोना को सबसे अधिक पहचान वर्ष 2003 में सोनी टीवी के मशहूर धारावाहिक “जस्सी जैसी कोई नहीं” में उनके मुख्य किरदार “जस्सी” से मिली. इस शो ने उन्हें घर-घर में मशहूर कर दिया और वे एक लोकप्रिय नाम बन गईं.
मोना सिंह ने टीवी पर कई यादगार भूमिकाएं निभाई हैं, लेकिन उनका कैरियर उछाल पर तब आया जब उन्होंने “जस्सी” के किरदार से इंडस्ट्री में कदम रखा. इस किरदार में एक साधारण लड़की, जो बाद में अपने लुक्स और आत्मविश्वास में बदलाव लाकर सफलता हासिल करती है, ने दर्शकों पर गहरा प्रभाव डाला.
इसके बाद, उन्होंने कई रियलिटी शो होस्ट किए और डांस रियलिटी शो “झलक दिखला जा” (सीजन 1) की विजेता भी बनीं. उन्होंने “कॉमेडी नाइट्स बचाओ”, “एंटरटेनमेंट के लिए कुछ भी करेगा” जैसे शो भी होस्ट किए हैं.
टीवी शो: –“क्या हुआ तेरा वादा” (2012), “कवच… काली शक्तियों से” (2016), “केहने को हमसफ़र हैं” (वेब सीरीज).
मोना सिंह ने फिल्मों में भी काम किया है. उन्होंने आमिर खान की ब्लॉकबस्टर फिल्म “3 इडियट्स” (2009) में करीना कपूर के साथ सहायक भूमिका निभाई थी. इसके अलावा, उन्होंने फिल्म “उटपटांग” और “ज़ेड प्लस” में भी अभिनय किया है.
मोना ने डिजिटल प्लेटफार्म पर भी काम किया है और वेब सीरीज में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है. उनका वेब सीरीज “केहने को हमसफ़र हैं” काफी लोकप्रिय हुआ था, जिसमें उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई. मोना सिंह का परिवार सेना से जुड़ा हुआ है, और उनका एक भाई है. वर्ष 2019 में, उन्होंने श्याम राजगोपालन से शादी की. उनकी निजी ज़िंदगी को वे अक्सर मीडिया से दूर ही रखती हैं.
मोना सिंह को अपने टेलीविजन कैरियर के दौरान कई पुरस्कार मिले हैं. उन्हें “जस्सी जैसी कोई नहीं” के लिए कई पुरस्कार और नामांकन मिले, जिसमें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए इंडियन टेलीविजन अकादमी अवार्ड शामिल है. मोना सिंह अपनी सहज और स्वाभाविक अभिनय शैली के लिए जानी जाती हैं और भारतीय टेलीविजन की सबसे पसंदीदा अभिनेत्रियों में से एक मानी जाती हैं.
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अभिनेत्री समीक्षा जायसवाल
समीक्षा जायसवाल एक भारतीय टेलीविजन अभिनेत्री हैं, जो मुख्य रूप से हिंदी टेलीविजन धारावाहिकों में अपने काम के लिए जानी जाती हैं. उनका जन्म 2 नवंबर 1991 को इंदौर, मध्य प्रदेश में हुआ था. उन्होंने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत ज़ी टीवी के लोकप्रिय शो “जिंदगी की महक” (वर्ष 2016-18) से की, जिसमें उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई और “महक” के किरदार से काफी प्रसिद्धि पाई.
समीक्षा ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत मॉडलिंग से की थी और इसके बाद टेलीविजन में अपनी जगह बनाई. “जिंदगी की महक” में उनके किरदार को दर्शकों ने काफी पसंद किया और इस शो के साथ ही उन्होंने टेलीविजन इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाई.
उनका अगला बड़ा प्रोजेक्ट “बहू बेगम” ( वर्ष 2019) था, जिसमें उन्होंने “नूर” का किरदार निभाया. यह शो भी काफी सफल रहा और इसमें समीक्षा की भूमिका को सराहा गया. समीक्षा जायसवाल अपने स्वाभाविक और संवेदनशील अभिनय के लिए जानी जाती हैं. उन्होंने अपने किरदारों में गहराई और भावनात्मक तत्वों को बखूबी निभाया है, जो दर्शकों के दिलों में बस जाते हैं.
समीक्षा जायसवाल का जन्म और परवरिश इंदौर में हुई, और बाद में उन्होंने अपने अभिनय कैरियर के लिए मुंबई का रुख किया. समीक्षा ने कम समय में टेलीविजन इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाई है और वे लगातार अपने प्रशंसकों के बीच लोकप्रिय हो रही हैं.
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उपन्यासकार प्रेमचंद
उपन्यासकार प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, और वे हिंदी और उर्दू साहित्य के प्रमुख लेखकों में से एक माने जाते हैं. प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के निकट एक छोटे से गांव लमही में हुआ था. वे अपने सामाजिक और यथार्थवादी दृष्टिकोण के लिए प्रसिद्ध थे.
प्रमुख उपन्यास: –
गोदान: – यह प्रेमचंद का सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है, जिसमें भारतीय किसान जीवन की कठिनाइयों और संघर्षों को दर्शाया गया है.
गबन: – यह उपन्यास नैतिकता और सामाजिक मुद्दों पर आधारित है.
कर्मभूमि: – इसमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और सामाजिक सुधारों का चित्रण है.
सेवासदन: – इसमें नारी जीवन और उनके संघर्षों का वर्णन है.
निर्मला: – इसमें एक विधवा स्त्री के जीवन की कहानी है, जिसमें सामाजिक प्रथाओं और कुरीतियों का वर्णन है.
प्रमुख कहानियाँ: – पूस की रात,, ईदगाह, कफन, बड़े घर की बेटी, ठाकुर का कुआँ.
प्रेमचंद का साहित्यिक योगदान न केवल उनकी कहानी कहने की अद्वितीय शैली में है, बल्कि उनके द्वारा उठाए गए सामाजिक मुद्दों और उनके प्रति जागरूकता में भी है. उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त अन्याय, शोषण, और कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई. 8 अक्टूबर 1936 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी रचनाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक और प्रेरणादायक हैं.
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स्वतंत्रता सेनानी जयप्रकाश नारायण
जयप्रकाश नारायण, जिन्हें “जेपी” के नाम से भी जाना जाता है, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता और समाजवादी विचारधारा के समर्थक थे. वे भारतीय राजनीति में अपनी सादगी, ईमानदारी, और सामाजिक सुधारों के लिए जाने जाते हैं. जयप्रकाश नारायण का योगदान केवल स्वतंत्रता संग्राम तक सीमित नहीं था; वे स्वतंत्रता के बाद भी भारतीय राजनीति और समाज के लिए एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व बने रहे.
जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को बिहार के सारण जिले के सिताबदियारा गाँव में हुआ था. उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा पटना में प्राप्त की, और आगे की पढ़ाई के लिए वर्ष 1922 में अमेरिका चले गए. अमेरिका में उन्होंने समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान की पढ़ाई की और वहीं समाजवादी विचारों से प्रभावित हुए.
जयप्रकाश नारायण ने वर्ष 1929 में भारत लौटने के बाद महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया. वर्ष 1932 में, उन्हें नमक सत्याग्रह के दौरान जेल भेजा गया. वर्ष 1934 में, उन्होंने कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की और समाजवादी विचारधारा के प्रचार-प्रसार में जुट गए.
वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जयप्रकाश नारायण ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व किया. उन्हें इस दौरान जेल में डाल दिया गया, लेकिन उनकी देशभक्ति और संघर्षशीलता ने उन्हें देश भर में लोकप्रिय बना दिया.
भारत की स्वतंत्रता के बाद जयप्रकाश नारायण ने राजनीति से कुछ समय के लिए दूरी बनाई और समाज सेवा में लगे रहे. उन्होंने ग्रामीण विकास और समाजवादी योजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया. हालांकि, वे वर्ष 1954 में सर्वोदय आंदोलन में शामिल हो गए और विनोबा भावे के नेतृत्व में भूदान आंदोलन का समर्थन किया.
जयप्रकाश नारायण का सबसे महत्वपूर्ण योगदान वर्ष 1970 के दशक में हुआ, जब उन्होंने इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन चलाया. वर्ष 1974 में, बिहार में छात्रों द्वारा चलाए गए भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का नेतृत्व करते हुए, जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया. उन्होंने इसे एक व्यापक सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तन का आंदोलन बताया.
वर्ष 1975 में इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के दौरान जयप्रकाश नारायण को गिरफ्तार कर लिया गया. आपातकाल समाप्त होने के बाद, उन्होंने जनता पार्टी के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने वर्ष 1977 के आम चुनाव में कांग्रेस को हराया और भारत में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनाई.
जयप्रकाश नारायण का निधन 8 अक्टूबर 1979 को हुआ. उन्हें मरणोपरांत भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारतरत्न वर्ष 1999 में दिया गया. उन्हें भारतीय राजनीति में सच्चाई और नैतिकता के प्रतीक के रूप में याद किया जाता है. उनके विचारों और आंदोलनों ने भारतीय समाज और राजनीति पर गहरा प्रभाव डाला है.
जयप्रकाश नारायण की “संपूर्ण क्रांति” की अवधारणा और उनके द्वारा दिखाया गया मार्ग आज भी भारत के राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों में प्रेरणा का स्रोत है.
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स्वतंत्रता सेनानी कमलापति त्रिपाठी
कमलापति त्रिपाठी एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता, लेखक और पत्रकार थे. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे और स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे, जिनमें रेल मंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद भी शामिल है. कमलापति त्रिपाठी अपनी विद्वता, राजनैतिक दूरदर्शिता और देशभक्ति के लिए जाने जाते थे.
कमलापति त्रिपाठी का जन्म 3 सितंबर 1905 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के गाँव बनारस के नजदीक हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा बनारस के क्वींस कॉलेज में हुई, जहाँ उन्होंने साहित्य और भारतीय संस्कृति में गहरी रुचि ली. उन्होंने शिक्षा के साथ-साथ स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लेना शुरू किया.
कमलापति त्रिपाठी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी के नेतृत्व में सक्रिय रूप से शामिल हुए. उन्होंने वर्ष 1921 में असहयोग आंदोलन के दौरान अपनी शिक्षा छोड़ दी और स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े. वे कई बार जेल गए और अपनी स्वतंत्रता सेनानी भूमिका के दौरान कई महत्वपूर्ण आंदोलनों में भाग लिया, जैसे: – सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930), भारत छोड़ो आंदोलन (1942).
कमलापति त्रिपाठी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन के दौरान जेल की सजा भी काटी, लेकिन उनके इरादे कभी नहीं डगमगाए. उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हिंदी साहित्य और पत्रकारिता के माध्यम से भी जनता को जागरूक करने का काम किया.
स्वतंत्रता के बाद, कमलापति त्रिपाठी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक प्रमुख नेता बने और उन्हें विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया गया. उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में भी कार्य किया. उनके नेतृत्व में उत्तर प्रदेश ने सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में काफी प्रगति की.
उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान तब आया जब वे भारतीय रेल मंत्री बने. उनके कार्यकाल के दौरान, भारतीय रेलवे ने उल्लेखनीय सुधार किए और उनका योगदान इस क्षेत्र में अद्वितीय माना जाता है. कमलापति त्रिपाठी को उनकी सेवाओं के लिए “रेल मंत्री के रूप में अमिट छाप छोड़ने वाले” नेताओं में गिना जाता है.
कमलापति त्रिपाठी एक प्रसिद्ध लेखक और पत्रकार भी थे. उन्होंने हिंदी साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान दिया.
प्रमुख रचनाएँ: – “सत्याग्रह और स्वतंत्रता संग्राम”.
“महात्मा गांधी और स्वतंत्रता आंदोलन” वे लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी के मुखपत्र “आज” के संपादक भी रहे, जहाँ उन्होंने अपने लेखों और विचारों के माध्यम से समाज को प्रेरित किया और स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जागरूकता फैलाने का कार्य किया. कमलापति त्रिपाठी एक साधारण और सादगी पसंद व्यक्ति थे. उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी समाज और देश की सेवा में समर्पित की. उनकी सादगी और ईमानदारी उन्हें राजनीति में सबसे अलग पहचान देती थी.
उनका निधन 8 अक्टूबर 1990 को हुआ. कमलापति त्रिपाठी को आज भी उनकी निष्ठा, सेवा और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के लिए याद किया जाता है. उत्तर प्रदेश और भारतीय राजनीति में उनका नाम हमेशा सम्मान से लिया जाता है, और वे भारतीय लोकतंत्र के एक स्तंभ के रूप में माने जाते हैं.
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लोक जनशक्तिँ पार्टी के अध्य्क्ष रामविलास पासवान
रामविलास पासवान भारत के एक प्रमुख दलित नेता, राजनीतिज्ञ और लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के संस्थापक अध्यक्ष थे. वे भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण हस्ती रहे, जो विभिन्न सरकारों में मंत्री के रूप में लंबे समय तक कार्यरत रहे. रामविलास पासवान को समाज के वंचित और पिछड़े वर्गों के अधिकारों के लिए काम करने और उनकी आवाज उठाने के लिए जाना जाता है. उन्होंने दलित राजनीति को एक नई दिशा दी और राष्ट्रीय राजनीति में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
रामविलास पासवान का जन्म 5 जुलाई 1946 को बिहार के खगड़िया जिले के एक छोटे से गाँव शहरबन्नी में हुआ था. वे एक दलित परिवार से थे और बचपन से ही सामाजिक अन्याय के खिलाफ लड़ने की भावना रखते थे. उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातक और कानूनी अध्ययन किया.
रामविलास पासवान का राजनीतिक कैरियर वर्ष 1969 में शुरू हुआ जब वे पहली बार संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर बिहार विधानसभा के सदस्य चुने गए. वे वर्ष 1975 के आपातकाल के दौरान जनता पार्टी में शामिल हो गए और वर्ष 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव में भारी बहुमत से जीत हासिल की. उन्होंने लोकसभा में दलित समुदाय के अधिकारों की आवाज बुलंद की और राष्ट्रीय राजनीति में अपना स्थान मजबूत किया.
रामविलास पासवान ने वर्ष 2000 में अपनी खुद की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) की स्थापना की. LJP का मुख्य उद्देश्य वंचित वर्गों, विशेष रूप से दलितों, पिछड़ों और गरीबों के अधिकारों की रक्षा करना और उन्हें राजनीतिक रूप से सशक्त बनाना था. रामविलास पासवान ने विभिन्न केंद्र सरकारों में कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों का नेतृत्व किया. वे एकमात्र ऐसे नेता थे, जो कई बार अलग-अलग दलों की सरकारों में मंत्री बने. उनके मंत्रालयों में: – रेल मंत्री, रसायन और उर्वरक मंत्री, संचार मंत्री, इस्पात मंत्री.
उपभोक्ता मामलों के मंत्री के रूप में, उन्होंने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम को लागू करने में प्रमुख भूमिका निभाई, जिससे करोड़ों गरीब लोगों को सस्ती दरों पर खाद्यान्न उपलब्ध हो सका. रामविलास पासवान के जीवन में परिवार का महत्वपूर्ण स्थान रहा. उनके बेटे, चिराग पासवान, राजनीति में उनकी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. चिराग पासवान LJP के प्रमुख नेता बने और पार्टी का नेतृत्व करने लगे.
रामविलास पासवान का निधन 8 अक्टूबर 2020 को हुआ. उनका निधन भारतीय राजनीति में एक युग का अंत माना जाता है. वे एक ऐसे नेता थे जिन्होंने हमेशा समाज के कमजोर और वंचित वर्गों के लिए संघर्ष किया. रामविलास पासवान की राजनीति में पहचान उनके दलित उत्थान के कार्यों और उनके समाजवादी सिद्धांतों के कारण हमेशा याद की जाएगी. उनके द्वारा स्थापित लोक जनशक्ति पार्टी ने बिहार और राष्ट्रीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.