story

समय की मार…

गायत्री का असंभव चयन

दिल्ली अस्पताल के कॉरिडोर में गायत्री के हाथ में दो चिट्ठियाँ थीं-

मुंबई का ऑफर लेटर – “सीनियर रेजिडेंट पद, न्यूरोसर्जरी विभाग”.

नलिन का पुराना पत्र – “तुम्हारे बिना मेरी साँसें अधूरी हैं…”

उसकी आँखों के सामने डॉ. शर्मा का वाक्य गूँजा-

“एक डॉक्टर का पहला कर्तव्य मरीज़ों के प्रय होता है… प्रेमी के प्रय नहीं. “

तभी फोन बजा- नलिन का मिस्ड कॉल.

नलिन का एकाकी संघर्ष

नलिन एए (Alcoholics Anonymous) की मीटिंग में बैठा था. उसने पहली बार अपना दर्द बाँटा-

“मैं… मैं उसे खोने के डर से पीता था. अब वह वापस आ गई है, पर मुझे डर है कि मेरा प्यार उसके सपनों की कीमत पर न हो…”

भूषण ने उसके कंधे पर हाथ रखा-

“तू सच्चे प्यार की परिभाषा समझ गया है… अब उसे चुनने दे.”

विदाई का क्षण

गायत्री ने सूटकेस पैक कर लिया था. नलिन ने अपने आँसू रोककर कहा-

“जाओ… तुम्हारा ऑपरेशन थियेटर तुम्हारा मंदिर है. मैं तुम्हारी पूजा में बाधक नहीं बनूँगा.”

गायत्री ने उसके हाथ पर आँसू गिराए:

“मैं तुमसे वादा करती हूँ… जब तुम पूरी तरह ठीक हो जाओगे, मैं लौट आऊँगी.”

ट्रेन चल दी. नलिन प्लेटफॉर्म पर अकेला खड़ा रह गया.

दो समानांतर यात्राएँ

मुंबई में गायत्री – ऑपरेशन थियेटर की रोशनी में वह नलिन के चेहरे को याद करती.

दिल्ली में नलिन – थेरेपी रूम में वह गायत्री की तस्वीर को देखकर हौसला बनाता.

एक साल बाद… डॉ. आर्यन ने गायत्री को प्रपोज़ किया-

“तुम्हारा ‘पागल’ प्रेमी तो भूल ही गया होगा! मेरे साथ शादी कर लो.”

गायत्री ने रिपोर्ट कार्ड दिखाया- नलिन का सॉबरिटी सर्टिफिकेट और बेस्ट सेलर बुक अवार्ड.

गायत्री (गर्व से)- “वह मेरा इंतज़ार कर रहा है… और अब मेरा समय आ गया है.”

“प्रेम की जीत”

नलिन ने अपनी आत्मकथा “बेवफा तेरे पार” लिखकर लाखों दिलों को छुआ.

गायत्री ने न्यूरोसर्जन बनकर इतिहास रचा, और फिर दिल्ली लौट आई.

 डॉ. आर्यन ने शर्मिंदगी में मुंबई छोड़ दिया.

दिल्ली एयरपोर्ट पर नलिन ने गायत्री को गुलाब की पंखुड़ियों से स्वागत किया. उसके हाथ में एक रिंग बॉक्स था-

“इस बार… मैं तुम्हारे सपनों का हिस्सा बनना चाहता हूँ. क्या तुम मेरी जीवनसंगिनी बनोगी?”

गायत्री की आँखों में चमक… और हाँ में सिर का हिलना…

शेष भाग अगले अंक में…,

:

Related Articles

Back to top button