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व्यक्ति विशेष

भाग – 190.

फिल्म निर्माता बी. एन. सरकार

बी. एन. सरकार (बिरेंद्र नाथ सरकार) भारतीय फिल्म निर्माता थे जो नई भारतीय सिनेमा उद्योग के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.  उनका जन्म 5 जुलाई 1901 को अविभाजित बंगाल में हुआ था और उनकी मृत्यु 28 नवंबर, 1980 को हुआ. बीरेन्द्रनाथ के पिता सर एन. एन. सरकार बंगाल के एडवोकेट जनरल थे, और वायसराय की कौन्सिल के सदस्य भी थे.

सरकार ने 1932 में न्यू थियेटर्स लिमिटेड की स्थापना की, जो कोलकाता में स्थित एक प्रमुख फिल्म निर्माण कंपनी थी. न्यू थियेटर्स ने कई महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फिल्में बनाई, जिनमें “देवदास” (1935), “पहला आदमी” (1937), “मुक्ति” (1937) और “साधना” (1939) शामिल हैं.

बी. एन. सरकार ने भारतीय सिनेमा में कला, संगीत, और संस्कृति का अनूठा समावेश किया. उन्होंने फिल्म निर्माण की तकनीक में नवाचार और उच्च गुणवत्ता के मानकों को अपनाया, जिससे भारतीय सिनेमा का स्तर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ा. उनके कार्य ने न केवल मनोरंजन उद्योग को समृद्ध किया, बल्कि भारतीय समाज और संस्कृति को भी गहराई से प्रभावित किया.

बी. एन. सरकार को भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक महान विभूति माना जाता है, और उनकी फिल्मों का आज भी अध्ययन और सराहना की जाती है.

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राजनीतिज्ञ रामविलास पासवान

रामविलास पासवान एक भारतीय राजनीतिज्ञ और समाजसेवी थे, जिनका भारतीय राजनीति में दशकों तक प्रभाव रहा. उनका जन्म 5 जुलाई 1946 को बिहार के खगड़िया जिले के शहरबन्नी गांव में हुआ था. वे दलित समुदाय से आते थे और भारतीय राजनीति में दलितों की आवाज को बुलंद करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है.

पासवान ने 1969 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में बिहार विधानसभा का चुनाव जीता. वे पहली बार 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर हाजीपुर से लोकसभा सदस्य चुने गए, जिसमें उन्होंने सबसे ज्यादा वोटों से जीत का विश्व रिकॉर्ड बनाया.

वर्ष 2000 में उन्होंने अपनी खुद की पार्टी, लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा), की स्थापना की. लोजपा ने बिहार और राष्ट्रीय स्तर पर दलित और पिछड़े वर्गों के अधिकारों की आवाज उठाई.

पासवान ने विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों में मंत्री के रूप में कार्य किया, जिसमें रेल, संचार, इस्पात, रसायन और उर्वरक, और सबसे हाल में खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय शामिल थे. वे नौ बार लोकसभा के सदस्य रहे और राज्यसभा में भी प्रतिनिधित्व किया.

पासवान दलित समुदाय के प्रमुख नेता थे और उन्होंने दलितों के सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए अनेक नीतियाँ और कार्यक्रम शुरू किए थे. उन्होंने  सामाजिक न्याय और समानता के लिए उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें व्यापक रूप से सम्मानित किया. पासवान ने दो शादियाँ कीं और उनके परिवार में उनका बेटा चिराग पासवान है, जो लोजपा का वर्तमान नेता है.

रामविलास पासवान का निधन 8 अक्टूबर 2020 को हुआ, लेकिन उनकी राजनीतिक धरोहर और समाज के प्रति उनका योगदान हमेशा याद किया जाएगा. उनकी नीतियाँ और कार्यक्रम भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव डालते रहेंगे.

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जीव विज्ञानी लालजी सिंह

लालजी सिंह एक प्रख्यात भारतीय जीव विज्ञानी थे, जिन्हें भारत में डीएनए फिंगरप्रिंटिंग तकनीक को पेश करने के लिए जाना जाता है. उनका जन्म 5 जुलाई 1947 को उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले में हुआ था. वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में कुलपति भी रहे.

लालजी सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा उत्तर प्रदेश में प्राप्त की और बाद में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से बी.एस.सी और एम.एस.सी की डिग्री हासिल की. उन्होंने अपने डॉक्टरेट की डिग्री भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) से प्राप्त की और पोस्ट-डॉक्टरेट अनुसंधान के लिए इंग्लैंड चले गए.

लालजी सिंह को “भारत के डीएनए फिंगरप्रिंटिंग के पिता” के रूप में जाना जाता है. उन्होंने डीएनए फिंगरप्रिंटिंग तकनीक को भारत में पहली बार पेश किया और इसका उपयोग अपराध जांच, पितृत्व परीक्षण, और जैव विविधता संरक्षण में किया.

लालजी सिंह ने सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (CCMB) में कार्य किया, जहां उन्होंने महत्वपूर्ण अनुसंधान कार्य किए. उन्होंने राष्ट्रीय जैविक विज्ञान केंद्र (NBSB) की स्थापना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने भारत में जीनोम परियोजनाओं की नींव रखी, जिसका उद्देश्य भारतीय जनसंख्या के जीनोम अनुक्रमण और अध्ययन भी किया था.

लालजी सिंह को उनके योगदान के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें पद्म श्री भी शामिल है. उन्हें भारतीय विज्ञान अकादमी, बैंगलोर और नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज, इंडिया के सदस्य के रूप में चुना गया.

लालजी सिंह का वैज्ञानिक दृष्टिकोण और शिक्षा के प्रति समर्पण ने उन्हें एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व बनाया. उनका निधन 10 दिसंबर 2017 को हुआ, लेकिन उनका योगदान भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी में हमेशा याद किया जाएगा.

लालजी सिंह के कार्यों ने न केवल भारतीय विज्ञान में एक नई दिशा दी बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए अनुसंधान और नवाचार के मार्ग को भी प्रशस्त किया.

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निवेशक एवं शेयर व्यापारी  राकेश झुनझुनवाला

राकेश झुनझुनवाला भारतीय निवेशक और शेयर व्यापारी थे, जिन्हें “भारत का वॉरेन बफेट” और “बिग बुल” के नाम से भी जाना जाता है. उनका जन्म 5 जुलाई 1960 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था. वे भारतीय शेयर बाजार के सबसे प्रमुख और सफल निवेशकों में से एक थे.

झुनझुनवाला का जन्म एक मारवाड़ी परिवार में हुआ था. उनके पिता आयकर विभाग में काम करते थे. उन्होंने सिडेनहैम कॉलेज से कॉमर्स में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और बाद में इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया से चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) की डिग्री प्राप्त की.

झुनझुनवाला ने 1985 में शेयर बाजार में प्रवेश किया. उनका पहला बड़ा लाभ 1986 में हुआ जब उन्होंने टाटा टी के शेयर खरीदे, जो कुछ ही महीनों में तिगुने हो गए.

झुनझुनवाला ने विभिन्न सेक्टर्स में निवेश किया, जिनमें बैंकिंग, टेक्नोलॉजी, हेल्थ-केयर, और कंज्यूमर गुड्स शामिल हैं. उनके सबसे प्रसिद्ध निवेशों में टाइटन, टाटा मोटर्स, क्रिसिल, ल्यूपिन और एस्ट्राजेनेका फार्मा शामिल हैं. उन्होंने अपनी खुद की निवेश फर्म रारी एंटरप्राइजेज की स्थापना की, जिसके माध्यम से उन्होंने अपने अधिकांश निवेश किए.

झुनझुनवाला ने हमेशा लंबी अवधि के निवेश में विश्वास किया और उन्हें शेयर बाजार में धैर्य रखने की सलाह दी. वे बफेट के सिद्धांतों से प्रभावित थे और मूल्य निवेश (Value Investing) के प्रबल समर्थक थे.

झुनझुनवाला ने कई परोपकारी कार्यों में भी योगदान दिया. उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में कई पहल शुरू कीं. उनकी पत्नी रेखा झुनझुनवाला भी एक निवेशक हैं और वे दोनों मिलकर अपने निवेश का प्रबंधन करते थे. उनके तीन बच्चे हैं.

राकेश झुनझुनवाला का निधन 14 अगस्त 2022 को हुआ, लेकिन उनके निवेश दर्शन और सफलता की कहानियां भारतीय निवेशकों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी रहेंगी.

राकेश झुनझुनवाला का जीवन और कैरियर नए निवेशकों के लिए एक प्रेरणादायक कहानी है. उनके निवेश के सिद्धांत और रणनीतियाँ आज भी निवेशकों के बीच लोकप्रिय हैं और उनकी धरोहर भारतीय शेयर बाजार में हमेशा जीवित रहेगी.

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बैडमिंटन खिलाड़ी पी. वी. सिंधु

पी. वी. सिंधु एक प्रमुख भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी हैं, जिन्होंने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं. उनका पूरा नाम पुसरला वेंकट सिंधु है और उनका जन्म 5 जुलाई 1995 को हैदराबाद, तेलंगाना में हुआ था.

सिंधु के माता-पिता, पी. वी. रमना और पी. विजया, दोनों ही पेशेवर वॉलीबॉल खिलाड़ी थे. उनके पिता को अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. सिंधु ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा हैदराबाद के ऑक्सिलियम हाई स्कूल से प्राप्त की और बाद में सेंट एनस कॉलेज फॉर वुमेन से बी.कॉम की डिग्री हासिल की.

सिंधु ने 8 साल की उम्र में बैडमिंटन खेलना शुरू किया और गोपीचंद बैडमिंटन अकादमी में प्रशिक्षण प्राप्त किया. उन्होंने अपने शुरुआती दिनों में ही कई जूनियर टूर्नामेंट्स में सफलता हासिल की. सिंधु ने  2012 में वर्ल्ड जूनियर बैडमिंटन चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता.

वर्ष 2013 में, उन्होंने वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता और ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला बनीं. वर्ष 2016 रियो ओलंपिक में, सिंधु ने रजत पदक जीता और ओलंपिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बैडमिंटन खिलाड़ी बनीं. वर्ष 2017 और 2018 में, उन्होंने वर्ल्ड बैडमिंटन चैंपियनशिप में सिल्वर और 2019 में गोल्ड मेडल जीता.

सिंधु ने कई सुपर सीरीज टूर्नामेंट्स जीते हैं, जिसमें इंडिया ओपन, कोरिया ओपन और थाईलैंड ओपन शामिल हैं. उन्होंने 2018 कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल और 2018 एशियाई खेलों में सिल्वर मेडल जीता. सिंधु को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, जिसमें अर्जुन पुरस्कार (2013), पद्म श्री (2015), और राजीव गांधी खेल रत्न (2016) शामिल हैं. वर्ष 2020 में, उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया.

सिंधु अपनी आक्रामक खेल शैली और कोर्ट पर शानदार मूवमेंट के लिए जानी जाती हैं. उनकी लंबाई और फिटनेस उन्हें नेट पर मजबूत और रैलीज़ में नियंत्रण प्रदान करती है. सिंधु अपने विनम्र स्वभाव और अनुशासन के लिए जानी जाती हैं. वे युवाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं और बैडमिंटन के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और मेहनत ने उन्हें एक रोल मॉडल बना दिया है.

पी. वी. सिंधु की यात्रा ने भारतीय बैडमिंटन को एक नई पहचान दी है और उन्होंने देश का नाम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रोशन किया है. उनकी उपलब्धियां और समर्पण युवा खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं.

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स्वतंत्रता सेनानी अनुग्रह नारायण सिन्हा

अनुग्रह नारायण सिन्हा (1887-1957) एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, वकील, राजनीतिज्ञ, और आधुनिक बिहार के निर्माता थे. उनका जन्म 18 जून 1887 को बिहार के गया जिले में हुआ था. वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय एक प्रमुख नेता थे और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़कर कई आंदोलनों में सक्रिय भाग लिया.

अनुग्रह नारायण सिन्हा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गया में प्राप्त की और बाद में पटना कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की. इसके बाद, वे वकालत की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए और बैरिस्टर बने. शिक्षा के प्रति उनका गहरा लगाव था और उन्होंने अपने जीवन के विभिन्न चरणों में शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

महात्मा गांधी के साथ उनकी निकटता ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेताओं में शामिल किया. उन्होंने असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भाग लिया. वे महात्मा गांधी के सिद्धांतों और आदर्शों से प्रभावित थे और उन्होंने अहिंसा और सत्याग्रह को अपने जीवन में अपनाया.

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, अनुग्रह नारायण सिन्हा बिहार के पहले उप-मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री बने. उनके कार्यकाल में बिहार के आर्थिक और सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण प्रगति हुई. वे ग्रामीण विकास, शिक्षा, और स्वास्थ्य सेवाओं के सुधार के लिए प्रतिबद्ध थे.

अनुग्रह नारायण सिन्हा को आधुनिक बिहार का निर्माता माना जाता है. उन्होंने बिहार के विभिन्न हिस्सों में कई विकासात्मक परियोजनाओं का आरंभ किया और राज्य के समग्र विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनके योगदान को सम्मानित करते हुए, बिहार में कई संस्थानों और सड़कों का नाम उनके नाम पर रखा गया है.

उनका निधन 5 जुलाई 1957 को हुआ, लेकिन उनके योगदान और विरासत को आज भी बिहार और भारत में याद किया जाता है. उनका जीवन और कार्य हमें सेवा, समर्पण, और नेतृत्व के मूल्य सिखाते हैं.

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