प्रथम तिलिस्मी लेखक देवकीनन्दन खत्री
प्रथम तिलिस्मी लेखक के रूप में प्रसिद्ध देवकीनन्दन खत्री (1861-1913) भारतीय हिंदी साहित्य के महत्वपूर्ण लेखक थे. उन्हें तिलिस्मी और रहस्यमयी उपन्यासों के लिए जाना जाता है, जिसमें उनके सबसे प्रसिद्ध उपन्यास “चंद्रकांता” और “चंद्रकांता संतति” शामिल हैं.
देवकीनन्दन खत्री का जन्म 29 जून 1861 को पूसा, बिहार में हुआ था. देवकीनन्दन खत्री जी की प्रारम्भिक शिक्षा उर्दू-फ़ारसी में हुई थी. बाद में उन्होंने हिन्दी, संस्कृत एवं अंग्रेज़ी का भी अध्ययन किया. देवकीनन्दन खत्री का विवाह मुजफ्फरपुर में हुआ था. उन्होंने वाराणसी में एक प्रिंटिंस प्रेस की स्थापना की और 1883 में हिन्दी मासिक पत्र ‘सुदर्शन’ को प्रारम्भ किया. घूमने फिरने के शौकीन खत्री ने चकिया एवं नौगढ़ के बीहड़ जंगलों, पहाड़ियों और प्राचीन ऐतिहासिक इमारतों के खंडहरों की खाक छानते रहते थे.
उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना “चंद्रकांता” है, जो 1888 में प्रकाशित हुई थी. इस उपन्यास ने पाठकों में अद्भुत रोमांच और रहस्य की लहर दौड़ाई. “चंद्रकांता संतति” चंद्रकांता की कहानी को आगे बढ़ाती है और इसमें भी तिलिस्मी और रोमांचक तत्वों की भरमार है. उन्होंने “भूतनाथ” और “काजल की कोठरी” जैसी अन्य रचनाएँ भी लिखीं।
खत्री की भाषा सरल, सजीव और प्रभावी थी, जिसने हिंदी भाषा को लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनके उपन्यासों ने हिंदी पढ़ने का प्रचलन बढ़ाया और अनेक पाठकों को भी आकर्षित किया. उनकी रचनाओं ने कई फिल्मों, टीवी धारावाहिकों और नाटकों को प्रेरित किया. चंद्रकांता पर आधारित कई टीवी धारावाहिक आज भी लोकप्रिय हैं. उनकी तिलिस्मी और रहस्यमयी शैली ने भारतीय साहित्य में एक नई धारा को जन्म दिया.
देवकीनन्दन खत्री का योगदान हिंदी साहित्य में अमूल्य है और उनकी रचनाएँ आज भी पाठकों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं.
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सर आशुतोष मुखर्जी
सर आशुतोष मुखर्जी (1864-1924) एक प्रमुख भारतीय शिक्षाविद, न्यायविद, और स्वतंत्रता सेनानी थे. वे अपने समय के सबसे विद्वान और प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक थे और भारतीय शिक्षा प्रणाली के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
सर आशुतोष मुखर्जी का जन्म 29 जून 1864 को कलकत्ता (अब कोलकाता) में हुआ था. उनके पिता गंगाप्रसाद मुखर्जी भी एक प्रतिष्ठित विद्वान थे. उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से गणित और भौतिक विज्ञान में स्नातक और स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की. उन्होंने कानून की पढ़ाई भी की और बैरिस्टर बने.
सर आशुतोष मुखर्जी कलकत्ता विश्वविद्यालय के उपकुलपति (Vice-Chancellor) बने और इस पद पर दो कार्यकालों (1906-1914 और 1921-1923) में कार्य किया. उनके कार्यकाल के दौरान, विश्वविद्यालय ने कई नए विभाग और विषयों को प्रारंभ किया और अनुसंधान कार्यों को बढ़ावा दिया. उन्होंने भारतीय भाषाओं और संस्कृति के अध्ययन को बढ़ावा दिया.
सर आशुतोष मुखर्जी कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी रहे और अपनी न्यायिक सूझबूझ और निष्पक्षता के लिए प्रसिद्ध थे. सर आशुतोष मुखर्जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे और स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया. उन्हें “बंगाल का बाघ” (Tiger of Bengal) कहा जाता था उनके साहस और दृढ़ संकल्प के लिए.
ब्रिटिश सरकार ने उन्हें “सर” की उपाधि से सम्मानित किया. उनकी स्मृति में कलकत्ता विश्वविद्यालय में आशुतोष कॉलेज की स्थापना की गई. उनकी शिक्षा और प्रशासनिक सुधारों का प्रभाव आज भी भारतीय शिक्षा प्रणाली में देखा जा सकता है.
सर आशुतोष मुखर्जी एक महान शिक्षाविद और न्यायविद थे जिनका भारतीय शिक्षा और न्याय प्रणाली में अमूल्य योगदान है. उनकी दूरदर्शिता और प्रतिबद्धता ने भारतीय समाज को प्रगति और विकास की दिशा में प्रेरित किया.
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वैज्ञानिक एवं सांख्यिकीविद पी. सी. महालनोबिस
प्रशांत चंद्र महालनोबिस (पी. सी. महालनोबिस) (1893-1972) एक प्रमुख भारतीय वैज्ञानिक और सांख्यिकीविद थे, जिनका योगदान भारतीय सांख्यिकी में अतुलनीय है. उन्हें भारतीय सांख्यिकी संस्थान (ISI) की स्थापना का श्रेय दिया जाता है और वे महालनोबिस दूरी (Mahalnobis Distance) के लिए भी प्रसिद्ध हैं, जो एक महत्वपूर्ण सांख्यिकीय उपाय है.
प्रशांत चंद्र महालनोबिस का जन्म 29 जून 1893 को पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुआ था. उनके पिता, प्रबोध चंद्र महालनोबिस, एक प्रतिष्ठित शिक्षाविद थे. पी. सी. महालनोबिस ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बंगाल में प्राप्त की और बाद में उच्च शिक्षा के लिए कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, इंग्लैंड गए, जहां उन्होंने भौतिकी में डिग्री प्राप्त की.
महालनोबिस ने 1931 में भारतीय सांख्यिकी संस्थान (ISI) की स्थापना की. यह संस्थान भारत में सांख्यिकी के अध्ययन और अनुसंधान का प्रमुख केंद्र बन गया है. उनके नेतृत्व में, ISI ने सांख्यिकी के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण अनुसंधान किए और उच्च शिक्षा में नए मानक स्थापित किए.
महालनोबिस दूरी एक सांख्यिकीय उपाय है जिसका उपयोग विभिन्न आंकड़ों के बीच समानताओं और असमानताओं को मापने के लिए किया जाता है. यह विशेष रूप से बहुविकल्पीय सांख्यिकी और क्लस्टर विश्लेषण में महत्वपूर्ण है.
महालनोबिस ने भारतीय योजना आयोग के सदस्य के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने भारत की दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956-1961) के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनकी आर्थिक योजना ने भारत के औद्योगिक विकास पर विशेष जोर दिया और आर्थिक विकास के लिए सांख्यिकीय तरीकों का उपयोग किया.
पी. सी. महालनोबिस को उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए कई पुरस्कार और सम्मान से सम्मानित किया गया जिनमें प्रमुख हैं … पद्म विभूषण (1968) और कई अंतरराष्ट्रीय विज्ञान और सांख्यिकी संगठनों के फेलो थे।
पी. सी. महालनोबिस का विवाह निर्मल कुमारी महालनोबिस से हुआ था, जो खुद भी एक विद्वान थीं. महालनोबिस का जीवन सादगी और विद्वता का प्रतीक था.28 जून 1972 को पी. सी. महालनोबिस का निधन हो गया. उनका योगदान और विचारधारा आज भी सांख्यिकी और योजना के क्षेत्र में अनुसंधानकर्ताओं और शिक्षाविदों को प्रेरित करती है.
पी. सी. महालनोबिस का जीवन और कार्य भारतीय विज्ञान और सांख्यिकी के क्षेत्र में एक मील का पत्थर है. उनके योगदान ने न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सांख्यिकी को एक नई दिशा दी.
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क्रांतिकारी राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी
राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी (1901-1927) एक प्रमुख भारतीय क्रांतिकारी थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) के सदस्य थे और काकोरी कांड में अपनी भागीदारी के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं.
राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी का जन्म 23 जून 1901 को बंगाल के पबना जिले (अब बांग्लादेश में) में हुआ था. उनका परिवार बाद में वाराणसी (बनारस) आ गया. लाहिड़ी की प्रारंभिक शिक्षा वाराणसी में हुई, जहाँ उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रूप से हिस्सा लेना शुरू किया और जल्द ही हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) से जुड़ गए/
काकोरी कांड 9 अगस्त 1925 को हुआ था, जब HRA के क्रांतिकारियों ने एक ट्रेन को लूटने की योजना बनाई थी ताकि ब्रिटिश सरकार के खजाने को लूटकर स्वतंत्रता संग्राम के लिए धन जुटाया जा सके. राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी इस योजना में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे थे और उन्होंने इसमें सक्रिय भाग लिया.
काकोरी कांड के बाद लाहिड़ी को गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें और अन्य क्रांतिकारियों को ब्रिटिश सरकार ने कड़ी सजा दी. लाहिड़ी को 19 दिसंबर 1927 को फांसी की सजा सुनाई गई और उन्हें 17 दिसंबर 1927 को गोंडा जेल में फांसी दी गई, जो निर्धारित तिथि से दो दिन पहले दी गई थी.
राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान क्रांतिकारी के रूप में याद किया जाता है. उनका बलिदान और साहस भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बना रहा. राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी का योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण था. उनके साहस और बलिदान ने भारतीय जनता को ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया और उनकी विरासत आज भी भारतीय इतिहास में एक महान प्रेरणा स्रोत के रूप में जीवित है.
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अभिनेत्री उपासना सिंह
उपासना सिंह एक भारतीय अभिनेत्री और कॉमेडियन हैं, जो हिंदी पंजाबी, भोजपुरी और मराठी सिनेमा में अपने काम के लिए जानी जाती हैं. वह टेलीविजन धारावाहिकों और फिल्मों दोनों में अपनी बहुमुखी भूमिकाओं के लिए लोकप्रिय है.
उपासना सिंह का जन्म 29 जून 1975 को होशियारपुर पंजाब में हुआ था. उपासना सिंह ने अपनी शुरूआती पढ़ाई होशियारपुर से ही पूरी की है. उन्होंने ड्रामेटिक आर्ट में मास्टर डिग्री की मानक डिग्री पंजाब विश्वविद्यालय से प्राप्त की है. जब वे मात्र 7 वर्ष की थीं, तब स्कूल की ओर से दूरदर्शन पर प्रोग्राम देती थी
उपासना सिंह ने अपने कैरियर की शुरुआत 1986 में हिंदी फिल्म “बाबुल” से की थी. उन्होंने विभिन्न भाषाओं में फिल्मों में काम किया है, जिसमें हिंदी, पंजाबी, गुजराती, और मराठी शामिल हैं. उपासना सिंह को टेलीविजन पर मुख्यतः “कॉमेडी नाइट्स विद कपिल” में उनकी भूमिका पिंकी बुआ के रूप में जाना जाता है. इस शो में उनकी कॉमिक टाइमिंग और अद्वितीय शैली ने उन्हें घर-घर में पहचान दिलाई.
उपासना सिंह ने “जुदाई,” “लज्जा,” “हमको दीवाना कर गए,” और “डरना जरूरी है” जैसी हिंदी फिल्मों में उल्लेखनीय भूमिकाएँ निभाई हैं. उन्होंने पंजाबी सिनेमा में भी उन्होंने “बाबू मान” और “कैरी ऑन जट्टा” जैसी हिट फिल्मों में काम किया है.
उपासना सिंह को उनकी कॉमेडी और अभिनय के लिए कई पुरस्कार मिल चुके हैं. उनके टेलीविजन शो और फिल्मों ने उन्हें इंडस्ट्री में एक मजबूत स्थान दिलाया है. उपासना सिंह का विवाह नीरज भारद्वाज से हुआ, जो एक टेलीविजन अभिनेता हैं.
उपासना सिंह की अभिनय की यात्रा उनके प्रतिभा और कठिन परिश्रम का प्रमाण है. उनकी हास्य भूमिकाएँ और विविधतापूर्ण अभिनय ने उन्हें भारतीय मनोरंजन उद्योग में एक विशिष्ट स्थान दिलाया है.
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मांड गायिका गवरी देवी
गवरी देवी (1920-1988) राजस्थान की एक प्रतिष्ठित मांड गायिका थीं. उन्हें “मांड की रानी” के रूप में जाना जाता है और उन्होंने राजस्थान की पारंपरिक संगीत शैली मांड को पूरे भारत में लोकप्रिय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
गवरी देवी का जन्म 1920 में राजस्थान के बीकानेर जिले में हुआ था. गवरी देवी ने अपने परिवार से संगीत की शिक्षा प्राप्त की. उनके परिवार में संगीत की गहरी परंपरा थी, जिसने उन्हें इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया.
मांड राजस्थान की पारंपरिक लोक संगीत शैली है, जो शाही दरबारों और महलों में गाया जाता था. इस संगीत शैली में राजस्थान की संस्कृति, प्रेम और विरह की कहानियों का वर्णन होता है. गवरी देवी ने मांड संगीत को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया और इसे लोकप्रिय बनाया.
प्रसिद्ध गीत: – “केसरिया बालम आवो नी,” “निम्बूडा निम्बूडा,” और “पधारो म्हारे देश” शामिल हैं.
गवरी देवी को उनकी संगीत सेवा के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले. उन्हें राजस्थान सरकार द्वारा “राज्य कलाकार” की उपाधि से भी सम्मानित किया गया. उन्होंने मांड संगीत की समृद्ध परंपरा को संरक्षित किया और इसे युवा पीढ़ी तक पहुँचाया. उनकी गायकी और योगदान के कारण, मांड संगीत को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली.
गवरी देवी का योगदान राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर में अमूल्य है. उनकी संगीत यात्रा ने मांड संगीत को नई पहचान दिलाई और उन्हें सदैव याद किया जाएगा.