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व्यक्ति विशेष

भाग – 320.

पक्षी विज्ञानी सलीम अली

सलीम अली जिन्हें “बर्डमैन ऑफ इंडिया” के नाम से भी जाना जाता है. वो भारत के सबसे प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी और प्रकृतिवादी थे. उनका पूरा नाम सलीम मोइजुद्दीन अब्दुल अली था. उन्होंने भारत में पक्षी विज्ञान को एक नई दिशा दी और अनेक पक्षियों की प्रजातियों का अध्ययन किया.

सलीम अली का जन्म 12 नवंबर 1896 को बॉम्बे (अब मुंबई), महाराष्ट्र में हुआ था. वह अपने माता-पिता के सबसे छोटे बच्चे थे. उनके माता-पिता का निधन बचपन में ही हो गया था, जिसके बाद उनका पालन-पोषण उनके चाचा-चाची ने किया.

सलीम अली ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के न्यू हाय स्कूल और बाद में सेंट जेवियर कॉलेज से प्राप्त की. पक्षियों के प्रति उनकी रुचि बचपन में ही जागी जब उन्होंने एक स्पैरो (गौरैया) को देखा और उसके बारे में जानने की कोशिश की. उन्होंने जर्मनी के बर्लिन विश्वविद्यालय में डॉ. एरविन स्ट्रेसमैन के तहत औपचारिक रूप से पक्षी विज्ञान का अध्ययन किया.

सलीम अली ने अपने कैरियर की शुरुआत बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) के साथ की और पूरे भारत में पक्षियों का अध्ययन किया. उन्होंने “द बुक ऑफ इंडियन बर्ड्स” (1941) नामक पुस्तक लिखी, जो भारतीय पक्षियों पर एक महत्वपूर्ण संदर्भ पुस्तक बन गई. सलीम अली ने भारतीय पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों का विस्तृत अध्ययन किया और उनकी संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने कई वन्यजीव अभ्यारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों की स्थापना में मदद की, जिनमें भरतपुर बर्ड सैंक्चुअरी (अब केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान) और साइलेंट वैली नेशनल पार्क शामिल हैं.

सलीम अली को उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले, जिनमें पद्म भूषण (1958) और पद्म विभूषण (1976) शामिल हैं. उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से भी नवाजा गया और वे विभिन्न वैज्ञानिक संगठनों के सदस्य रहे.

सलीम अली की पत्नी, तीला अली, भी उनके शोध कार्यों में सक्रिय भागीदार थीं. उनका विवाह 1918 में हुआ था. सलीम अली का निधन 20 जून 1987 को हुआ. उनकी मृत्यु के बाद भी उनकी विरासत भारतीय पक्षी विज्ञान में जीवित है.

सलीम अली का जीवन और कार्य भारतीय वन्यजीव और पक्षी विज्ञान के क्षेत्र में मील का पत्थर है. उन्होंने अपने समर्पण और अध्ययन से भारतीय वन्यजीव संरक्षण में अपार योगदान दिया है और वे आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने रहेंगे.

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बाल रोग विशेषज्ञ दिलीप महलानबीस

डॉ. दिलीप महलानबीस एक प्रतिष्ठित भारतीय बाल रोग विशेषज्ञ थे, जिन्हें ओरल रिहाइड्रेशन थेरेपी (ORT) के विकास में महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है. ORT एक सरल और प्रभावी इलाज है, जिसमें पानी, नमक और शक्कर का घोल देकर दस्त और डिहाइड्रेशन जैसी गंभीर स्थितियों का इलाज किया जाता है. इस थेरेपी ने लाखों बच्चों की जान बचाई और इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा भी अपनाया गया.

दिलीप महलानबीस का जन्म 12 नवंबर, 1934 को किशोरगंज, बंगाल (आज़ादी पूर्व) में हुआ था और उनका निधन 16 दिसम्बर, 2022 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ.

वर्ष 1971 में बंग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान, डॉ. महलानबीस ने ORT का उपयोग कर हजारों शरणार्थियों को डिहाइड्रेशन से बचाया. इस उल्लेखनीय उपलब्धि के कारण ORT को वैश्विक स्तर पर मान्यता मिली और यह निमोनिया और डायरिया जैसी बीमारियों के खिलाफ एक अत्यंत प्रभावी इलाज के रूप में प्रचलित हो गया.

डॉ. दिलीप महलानबीस के इस महत्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें चिकित्सा के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी व्यक्ति के रूप में याद किया जाता है. उनका कार्य आज भी बाल चिकित्सा में एक मील का पत्थर माना जाता है, और ORT को “20वीं सदी का सबसे महत्वपूर्ण चिकित्सा अविष्कार” में से एक माना गया है.

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अभिनेता अमजद ख़ान

अमजद ख़ान (1940-1992) एक प्रसिद्ध भारतीय फिल्म अभिनेता और निर्देशक थे, जिन्हें हिंदी सिनेमा में उनके अद्वितीय अभिनय कौशल और खासकर खलनायक की भूमिकाओं के लिए जाना जाता है. उनका जन्म 12 नवंबर 1940 को पेशावर (अब पाकिस्तान में) में हुआ था. अमजद ख़ान ने अपने कैरियर में कई महत्वपूर्ण और यादगार भूमिकाएँ निभाईं, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध उनकी “शोले” फिल्म में निभाई गई ‘गब्बर सिंह’ की भूमिका है.

अमजद ख़ान का जन्म एक फिल्मी परिवार में हुआ था. उनके पिता जयंत भी एक जाने-माने अभिनेता थे. उन्होंने अपनी शिक्षा सेंट एंड्रयूज हाई स्कूल, बांद्रा और आर. डी. नेशनल कॉलेज, बांद्रा, मुंबई से प्राप्त की. अमजद ख़ान का फिल्मी कैरियर 1957 में “अब दिल्ली दूर नहीं” फिल्म से बाल कलाकार के रूप में शुरू हुआ. उन्होंने 1970 के दशक में अपने कैरियर की शुरुआत की, लेकिन उन्हें असली पहचान 1975 में आई फिल्म “शोले” से मिली.

फिल्म: –

शोले (1975): – में अमजद ख़ान ने ‘गब्बर सिंह’ नामक एक खलनायक की भूमिका निभाई, जिसने उन्हें रातों-रात स्टार बना दिया. गब्बर सिंह का किरदार और उसके संवाद भारतीय सिनेमा में आज भी अमर हैं.

मुकद्दर का सिकंदर (1978): – इस फिल्म में भी अमजद ख़ान ने एक महत्वपूर्ण खलनायक की भूमिका निभाई थी.

लावारिस (1981): – इस फिल्म में भी उन्होंने अपनी अभिनय प्रतिभा का परिचय दिया और दर्शकों का दिल जीता.

सत्ते पे सत्ता (1982): – इस फिल्म में भी उन्होंने यादगार अभिनय किया.

अमजद ख़ान ने अपने कैरियर में कुछ फिल्मों का निर्देशन भी किया. इनमें “चोर पुलिस” (1983) और “अमीर आदमी गरीब आदमी” (1985) शामिल हैं.

अमजद ख़ान का विवाह शेहला ख़ान से हुआ था और उनके तीन बच्चे हैं – शादाब ख़ान, सीमा सोबती, और अहलम ख़ान. शादाब ख़ान ने भी फिल्मों में काम किया है. अमजद ख़ान का स्वास्थ्य वर्ष 1986 में एक कार दुर्घटना के बाद बिगड़ गया, जिससे उनके शरीर पर गहरी चोटें आईं. उनका स्वास्थ्य धीरे-धीरे बिगड़ता गया और 27 जुलाई 1992 को मुंबई में हृदयाघात के कारण उनका निधन हो गया.

अमजद ख़ान का योगदान भारतीय सिनेमा में अविस्मरणीय है. उनकी भूमिकाएं, खासकर ‘गब्बर सिंह’, हिंदी फिल्मों के इतिहास में हमेशा याद रखी जाएंगी. उन्होंने अपने अभिनय से न केवल खलनायकों को नया आयाम दिया, बल्कि अपनी बहुआयामी प्रतिभा से भी सिनेमा प्रेमियों का दिल जीता. उनके संवाद और अभिनय शैली आज भी सिनेप्रेमियों के बीच लोकप्रिय हैं और उनकी फिल्में हिंदी सिनेमा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं.

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स्वतंत्रता सेनानी मदनमोहन मालवीय

मदनमोहन मालवीय एक प्रतिष्ठित स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद्, समाज सुधारक और महान नेता थे. उन्हें विशेष रूप से बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) की स्थापना के लिए जाना जाता है. उन्हें “महामना” की उपाधि दी गई थी, जो उनकी विद्वता और समाज सेवा को सम्मानित करती है.

मदनमोहन मालवीय का जन्म 25 दिसंबर 1861 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हुआ था. उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाई और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के चार बार अध्यक्ष बने. उनके विचारों में राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का महत्वपूर्ण स्थान था. वे महात्मा गांधी के सहयोगी थे और स्वदेशी, शिक्षा और हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए निरंतर प्रयासरत रहे.

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना का उनका उद्देश्य भारतीय संस्कृति और ज्ञान का प्रचार-प्रसार करना था. वे भारतीय समाज में सुधार के पक्षधर थे और छुआछूत और जातिवाद जैसी कुरीतियों के खिलाफ भी आवाज उठाई. इसके साथ ही वे एक सफल वकील भी थे और उन्होंने कई स्वतंत्रता सेनानियों के लिए कानूनी सहायता प्रदान की.

मदनमोहन मालवीय का निधन 12 नवम्बर 1946 को बनारस, ब्रिटिश भारत में हुआ था. भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया. मदनमोहन मालवीय आज भी भारतीय समाज में शिक्षा और राष्ट्र सेवा के प्रतीक माने जाते हैं.

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अभिनेता और टीवी कलाकार आसिफ़ बसरा

आसिफ़ बसरा एक भारतीय अभिनेता और टीवी कलाकार थे, जिन्हें उनके विभिन्न किरदारों और अभिनय की गहराई के लिए जाना जाता है. उनका जन्म 27 जुलाई 1967 को अमरावती, महाराष्ट्र, भारत में हुआ था. उन्होंने बॉलीवुड फिल्मों के अलावा थिएटर और टीवी शो में भी अपने अभिनय का लोहा मनवाया.

आसिफ़ बसरा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अमरावती में प्राप्त की और बाद में मुंबई चले गए. उन्होंने मुंबई के रिजवी कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की. बसरा ने अपने कैरियर की शुरुआत थिएटर से की थी और उन्होंने कई महत्वपूर्ण नाटकों में अभिनय किया. उनका बॉलीवुड कैरियर 1998 में फिल्म “वो” से शुरू हुआ.

फिल्में: –

ब्लैक फ्राइडे (2004): – अनुराग कश्यप द्वारा निर्देशित इस फिल्म में बसरा ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

परज़ानिया (2007): – इस फिल्म में उन्होंने एक पारसी व्यक्ति की भूमिका निभाई थी, जिसकी फिल्म को काफी प्रशंसा मिली.

आउटसोर्स्ड (2006): – इस अमेरिकी फिल्म में उन्होंने एक महत्वपूर्ण किरदार निभाया था.

जब वी मेट (2007): – इस लोकप्रिय फिल्म में उन्होंने करीना कपूर के साथ एक छोटी लेकिन महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

काई पो छे! (2013): – इस फिल्म में उन्होंने अमित साध के पिता का किरदार निभाया था.

आसिफ़ बसरा ने कई टीवी शो में भी काम किया, जिनमें ‘वो हुआ ना हमारा’ और ‘हम ने ली है शपथ’ शामिल हैं. आसिफ़ बसरा का निजी जीवन काफी निजी रहा और उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन को मीडिया से दूर रखा. आसिफ़ बसरा का निधन 12 नवंबर 2020 को धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश में हुआ. उनकी मौत को आत्महत्या माना गया. उनके निधन से बॉलीवुड और उनके प्रशंसकों को गहरा सदमा लगा.

आसिफ़ बसरा का अभिनय कैरियर और उनके द्वारा निभाए गए विभिन्न किरदार उन्हें एक बहुमुखी कलाकार के रूप में स्थापित करते हैं. उनकी अभिनय प्रतिभा और समर्पण ने उन्हें भारतीय सिनेमा और टीवी जगत में एक विशेष स्थान दिलाया. उनके निधन से भारतीय सिनेमा ने एक प्रतिभाशाली अभिनेता को खो दिया, लेकिन उनके अभिनय की धरोहर आज भी जीवित है.

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