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व्यक्ति विशेष

भाग – 314.

राजनीतिज्ञ यशवंत सिन्हा

यशवंत सिन्हा भारतीय राजनीतिज्ञ और पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं, जिन्होंने भारतीय राजनीति में एक लंबा और प्रभावशाली कैरियर बनाया है. वे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रमुख नेताओं में से एक रहे हैं, हालांकि बाद में उन्होंने पार्टी से अलग हो कर तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और फिर विपक्षी दलों के साथ जुड़ने का रास्ता अपनाया. यशवंत सिन्हा का जन्म 6 नवंबर 1937 को बिहार के पटना में हुआ था. उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से स्नातक और स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त की. राजनीति में प्रवेश करने से पहले, यशवंत सिन्हा भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) में कार्यरत थे. उन्होंने वर्ष 1960 – 84 तक इस सेवा में कार्य किया और बाद में सरकारी सेवा से इस्तीफा देकर राजनीति में आ गए.

वर्ष 1984 में यशवंत सिन्हा ने जनता पार्टी के साथ राजनीति में प्रवेश किया. वे वर्ष 1988 में पहली बार राज्यसभा के लिए चुने गए. भारतीय जनता पार्टी: उन्होंने बाद में भाजपा में प्रवेश किया और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वर्ष 1998 – 2002 तक वित्त मंत्री के रूप में और फिर 2002 -04 तक विदेश मंत्री के रूप में कार्य किया. वित्त मंत्री के रूप में यशवंत सिन्हा ने कई आर्थिक सुधारों की शुरुआत की. उन्होंने विदेशी निवेश, आर्थिक उदारीकरण और वित्तीय अनुशासन को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए. उनके कार्यकाल में कई बड़े सुधार हुए, जिनसे भारत की अर्थव्यवस्था को गति मिली.

वर्ष  2018 में, उन्होंने भाजपा से इस्तीफा दे दिया और भाजपा की नीतियों के आलोचक बने, खासकर नरेंद्र मोदी सरकार के फैसलों के प्रति. उन्होंने आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों पर अपनी स्वतंत्र राय व्यक्त की और लोकतांत्रिक संस्थाओं के संरक्षण की जरूरत पर जोर दिया. वर्ष 2022 में, यशवंत सिन्हा को विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में पेश किया. हालाँकि, वे चुनाव नहीं जीत सके, परंतु उनकी उम्मीदवारी ने विपक्ष के एकजुट होने का संदेश दिया. यशवंत सिन्हा के बेटे जयंत सिन्हा भी एक प्रमुख राजनीतिज्ञ हैं और भाजपा से जुड़े हुए हैं. जयंत सिन्हा ने भी केंद्रीय मंत्री के रूप में कार्य किया है.

यशवंत सिन्हा भारतीय राजनीति में एक निष्पक्ष और निडर नेता के रूप में जाने जाते हैं. उनके विचारों और लेखनी ने भारतीय राजनीति में एक विशेष स्थान बनाया है.

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राजनीतिज्ञ डॉ. जितेन्द्र सिंह

डॉ. जितेंद्र सिंह भारतीय राजनीतिज्ञ हैं और वर्तमान में केंद्रीय मंत्री के रूप में कार्यरत हैं. वे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक प्रमुख नेता हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों का कार्यभार संभाल रहे हैं. जितेंद्र सिंह जम्मू और कश्मीर क्षेत्र से आते हैं और भाजपा में कश्मीर घाटी के सबसे प्रमुख नेताओं में से एक माने जाते हैं.

डॉ. जितेंद्र सिंह का जन्म 6 नवंबर 1956 को जम्मू, जम्मू और कश्मीर में हुआ था. वे पेशे से डॉक्टर हैं और उनकी विशेषता डायबिटीज और एंडोक्राइनोलॉजी (अंत:स्राविका विज्ञान) में है. डॉ. जितेंद्र सिंह ने अपनी शिक्षा जम्मू और कश्मीर और देश के अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों से पूरी की.  चिकित्सा के क्षेत्र में उनकी ख्याति है और वे चिकित्सा के पेशे में एक स्थापित डॉक्टर और रिसर्चर के रूप में भी जाने जाते हैं. उन्होंने चिकित्सा लेखन में भी योगदान दिया है और डायबिटीज संबंधी विषयों पर कई पुस्तकों का लेखन किया है.

वर्ष  2014 में डॉ. जितेंद्र सिंह ने भाजपा के टिकट पर जम्मू और कश्मीर के उधमपुर संसदीय क्षेत्र से लोकसभा चुनाव लड़ा और विजयी हुए. वे उसी समय पहली बार संसद सदस्य बने और उन्हें मोदी सरकार में राज्य मंत्री का पद दिया गया. वर्तमान में, वे प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री, परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष, कार्मिक, लोक शिकायतें और पेंशन विभाग के मंत्री हैं.  इसके अलावा, वे पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास के राज्य मंत्री भी हैं.  इन विभागों में उनका कार्यभार और योगदान उल्लेखनीय है.  विशेष रूप से पूर्वोत्तर भारत के विकास में उनकी योजनाओं और नीतियों ने इस क्षेत्र के विकास को गति दी है.

कार्मिक मंत्रालय में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने सरकारी सेवाओं में सुधार, डिजिटलाइजेशन, और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए कई नई पहल की हैं. जम्मू और कश्मीर से होने के कारण वे इस क्षेत्र की राजनीति और लोगों के मुद्दों को समझते हैं. धारा 370 के हटाए जाने और जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन में भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण मानी जाती है. जितेंद्र सिंह अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में भी काम कर रहे हैं और इन क्षेत्रों में भारत की स्वदेशी क्षमताओं को बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं. उनके नेतृत्व में, भारत ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं.

डॉ. जितेंद्र सिंह एक प्रतिष्ठित लेखक भी हैं और उन्होंने कई शोध लेख, चिकित्सा लेख और राजनीतिक विचार प्रकाशित किए हैं. वे समाज सेवा और देश के कल्याण के लिए समर्पित हैं और उनके पास चिकित्सा, प्रशासन, और राजनीति का व्यापक अनुभव है. डॉ. जितेंद्र सिंह भारतीय राजनीति में एक विद्वान और समर्पित नेता के रूप में माने जाते हैं, जो अपने कार्यक्षेत्र में प्रभावशाली योगदान दे रहे हैं और जनता के बीच लोकप्रिय हैं.

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अभिनेता पुनीत इस्सार

पुनीत इस्सार एक अनुभवी भारतीय अभिनेता, निर्देशक और पटकथा लेखक हैं, जिन्हें हिंदी फिल्म और टेलीविजन उद्योग में उनके योगदान के लिए जाना जाता है. वे विशेष रूप से महाभारत (वर्ष 1988) धारावाहिक में दुर्योधन की भूमिका के लिए प्रसिद्ध हैं, जो बी.आर. चोपड़ा द्वारा निर्देशित महाभारत के टीवी संस्करण में उनकी ताकत और प्रभावशाली अभिनय की वजह से एक लोकप्रिय चरित्र बना.

पुनीत इस्सार का जन्म 6 नवंबर 1959 को पंजाब, भारत में हुआ था.  वे एक पंजाबी परिवार से आते हैं और उन्होंने अभिनय में अपना कैरियर बनाने के लिए संघर्ष किया. महाभारत में दुर्योधन का किरदार निभाकर वे घर-घर में पहचाने गए. उनकी शारीरिक बनावट और ताकतवर आवाज ने इस किरदार को बेहद प्रभावशाली बना दिया. इस भूमिका ने उनके कैरियर को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाया. उन्होंने कई हिंदी फिल्मों में भी काम किया है, जिनमें कुली (वर्ष 1983) खास है. हालांकि, इस फिल्म के दौरान एक फाइट सीन में उनका अमिताभ बच्चन के साथ हादसा हो गया था, जिसके कारण अमिताभ घायल हुए थे और यह घटना काफी चर्चित रही थी.

पुनीत इस्सार ने अपने कैरियर में मुख्य रूप से नेगेटिव किरदार और सहायक भूमिकाएं निभाई हैं. वे कई फिल्मों और टीवी शोज में विलेन की भूमिकाओं में नजर आए, जिनमें उनकी अदाकारी की प्रशंसा की गई. पुनीत इस्सार ने निर्देशन में भी हाथ आजमाया है. उन्होंने कुछ फिल्मों और टीवी धारावाहिकों का निर्देशन किया और पटकथा लेखन में भी योगदान दिया. वे रियलिटी शो बिग बॉस सीजन 8 में भी प्रतिभागी रहे, जहाँ उन्होंने अपनी मजबूत छवि के साथ दर्शकों का ध्यान खींचा.

पुनीत इस्सार ने विभिन्न टीवी शोज और फिल्मों में विविध किरदार निभाए हैं और उनकी विशेषता मजबूत और दबंग व्यक्तित्व वाले पात्रों में रही है. उनकी गहरी आवाज और बेहतरीन संवाद अदायगी से वे अपने किरदारों में जान डालते हैं. पुनीत इस्सार भारतीय फिल्म और टीवी इंडस्ट्री में एक सशक्त और अनुभवी अभिनेता के रूप में जाने जाते हैं.

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मुख्य न्यायाधीश सर हरिलाल जे कनिया

सर हरिलाल जेकिसुनदास कनिया स्वतंत्र भारत के पहले मुख्य न्यायाधीश थे. उनका कार्यकाल भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में एक महत्वपूर्ण समय था, क्योंकि उस समय भारत में नई संवैधानिक व्यवस्था और न्यायिक प्रणाली की शुरुआत हुई थी. उनका जन्म 3 नवंबर 1890 को हुआ था और उनका देहांत 6 नवंबर 1951 को हुआ.

सर हरिलाल कनिया का जन्म एक प्रतिष्ठित गुजराती परिवार में हुआ था/ उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई में पूरी की और फिर इंग्लैंड के प्रतिष्ठित लिंकन्स इन से कानून की पढ़ाई की/ उनकी शिक्षा और अद्भुत ज्ञान के कारण वे भारत में कानूनी मामलों में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर सके/

बॉम्बे हाई कोर्ट में न्यायाधीश: सर हरिलाल कनिया ने अपना न्यायिक कैरियर बॉम्बे हाई कोर्ट में न्यायाधीश के रूप में शुरू किया और वहाँ उनके फैसलों को गंभीरता से लिया गया. उनका कानूनी ज्ञान और निष्पक्षता उनके कार्यों में स्पष्ट झलकता था. जब भारत स्वतंत्र हुआ, तो वर्ष 1950 में उन्होंने स्वतंत्र भारत के पहले मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली. भारतीय संविधान के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय का पहला गठन उनके कार्यकाल में ही हुआ.

सर हरिलाल कनिया ने संविधान की व्याख्या करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके नेतृत्व में भारतीय न्यायालयों ने संवैधानिक मामलों पर कई ऐतिहासिक फैसले दिए. उन्होंने भारतीय न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनाए रखने में विशेष योगदान दिया. वे न्यायिक स्वायत्तता और निष्पक्षता के सशक्त समर्थक थे. उनके कार्यकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसले दिए गए, जिन्होंने भारतीय न्यायपालिका को एक नई दिशा दी. उन्होंने स्वतंत्रता के बाद न्यायपालिका के स्वरूप और सिद्धांतों को परिभाषित करने का कार्य किया.

सर हरिलाल कनिया को उनकी सेवाओं के लिए “सर” की उपाधि से सम्मानित किया गया था. उनके बाद आने वाले मुख्य न्यायाधीशों के लिए वे प्रेरणा का स्रोत बने. भारतीय न्यायपालिका के विकास में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाता है. उनके नेतृत्व में भारत में एक सशक्त और स्वतंत्र न्यायपालिका की नींव रखी गई, जो आज भी भारत के लोकतंत्र और संविधान की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है.

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अभिनेता संजीव कुमार

संजीव कुमार जिनका वास्तविक नाम हरिहर जरीवाला था. वो भारतीय सिनेमा के एक प्रसिद्ध अभिनेता थे. उनका जन्म 9 जुलाई 1938 को सूरत, गुजरात में हुआ था. संजीव कुमार ने अपनी बहुमुखी अभिनय क्षमता और विविध किरदारों के साथ भारतीय सिनेमा में एक अमिट छाप छोड़ी. संजीव कुमार अपने समय के सबसे प्रतिभाशाली अभिनेताओं में से एक थे. उनकी अभिनय शैली में गहराई और वास्तविकता का पुट था, जिससे वे हर प्रकार के किरदार को सहजता से निभा पाते थे.

प्रमुख फिल्में: –

शोले (1975):  – इस फिल्म में संजीव कुमार ने ठाकुर बलदेव सिंह का यादगार किरदार निभाया. यह फिल्म भारतीय सिनेमा की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में से एक मानी जाती है.

खिलौना (1970):  – इस फिल्म में उन्होंने एक मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति का किरदार निभाया, जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला.

कोशिश (1972):  – इस फिल्म में उन्होंने एक गूंगे और बहरे व्यक्ति की भूमिका निभाई. यह फिल्म उनकी अभिनय क्षमता का एक उत्कृष्ट उदाहरण है.

आंधी (1975):  – इस फिल्म में उन्होंने एक राजनेता की पत्नी से जुड़े एक जटिल रिश्ते की कहानी को बहुत ही संवेदनशील तरीके से प्रस्तुत किया.

त्रिशूल (1978):  – इस फिल्म में उन्होंने एक उद्योगपति की भूमिका निभाई और फिल्म में उनकी अभिनय क्षमता की खूब सराहना हुई.

संजीव कुमार को उनकी उत्कृष्ट अभिनय क्षमता के लिए कई पुरस्कार मिले. उन्हें दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार: –  “दस्तक” (1971) और “कोशिश” (1972) के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला.

फिल्मफेयर पुरस्कार:  – उन्होंने फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार कई बार जीता, जिसमें “आंधी” और “शोले” जैसी फिल्में शामिल हैं.

संजीव कुमार ने अपने कैरियर में हर प्रकार की भूमिका निभाई, चाहे वह गंभीर नायक हो, हास्य कलाकार हो, या फिर नकारात्मक भूमिका हो. उनकी फिल्मों में उनकी बहुमुखी प्रतिभा स्पष्ट रूप से दिखाई देती है.

संजीव कुमार का व्यक्तिगत जीवन बहुत ही सरल और विनम्र था. उन्होंने शादी नहीं की और अपने जीवन का अधिकांश समय अपने काम को समर्पित किया. 6 नवंबर 1985 को, मात्र 47 वर्ष की उम्र में, उनका निधन हो गया. संजीव कुमार की फिल्मों और उनके अभिनय को आज भी भारतीय सिनेमा में बहुत उच्च स्थान प्राप्त है. उनकी विरासत आज भी जीवित है और उन्हें एक महान अभिनेता के रूप में याद किया जाता है.

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अन्य: –

  1. 6 नवंबर 1913 को दक्षिण अफ्रीका में भारतीय खनन मजदूरों की रैली का नेतृत्व करने के लिए महात्मा गांधी को गिरफ्तार किया गया.
  2. 6 नवंबर 1943 को दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को अंडमान और निकोबार द्वीप समूह सौंप् था.
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