
दोहा :-
देखि बुद्धि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु।
रघुपति चरन हृदयँ धरि तात मधुर फल खाहु ।।
वाल्व्याससुमनजीमहाराज श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, माता जानकी ने हनुमानजी को बुद्धि और बल में निपुण देखा तो कहा- जाओ. हे तात ! श्रीरघुनाथजी के चरणों को हृदय में धारण कर करके मीठे फल खाओ.
चौपाई :-

चलेउ नाइ सिरु पैठेउ बागा। फल खाएसि तरु तोरैं लागा।।
रहे तहाँ बहु भट रखवारे। कछु मारेसि कछु जाइ पुकारे ।।
वाल्व्याससुमनजीमहाराज श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, हनुमानजी ने माता सीता को सिर नवाकर (झुकाकर) चले और बाग में घुस कर फल खाए और वृक्षो को तोड़ने लगे. अशोक वाटिका को बहुत से योद्धा रखवाली करते थे. उनमे से कुछ को मार डाला और कुछ ने जाकर रावण से पुकार की.
नाथ एक आवा कपि भारी। तेहिं असोक बाटिका उजारी।।
खाएसि फल अरु बिटप उपारे। रच्छक मर्दि मर्दि महि डारे ।।
वाल्व्याससुमनजीमहाराज श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, हे नाथ ! एक बड़ा भारी बंदर आया है और उसने सारी अशोक वाटिका उजाड डाली. फल खाए, वृक्षो को उखाड़ डाला और रखवालो को मसल-मसलकर जमीन पर डाल दिया.
चौपाई :-
सुनि रावन पठए भट नाना। तिन्हहि देखि गर्जेउ हनुमाना।।
सब रजनीचर कपि संघारे। गए पुकारत कछु अधमारे ।।
वाल्व्याससुमनजीमहाराज श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, यह सुनकर रावण ने बहुत से योद्धा भेजे जिसे देखकर हनुमानजी गर्जना की. उसके बाद हनुमानजी बहुत से राक्षसों को मार डाला वहीँ, कुछ अधमरे थे जो चिल्लाते हुये भाग गए.
पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा। चला संग लै सुभट अपारा।।
आवत देखि बिटप गहि तर्जा। ताहि निपाति महाधुनि गर्जा।।
वाल्व्याससुमनजीमहाराज श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, यह देखके रावण ने अक्षय कुमार को भेजा. अक्षय कुमार अपने असंख्य श्रेष्ठ योद्धाओं को साथ लेकर चला. उसे आते देखकर हनुमानजी ने एक वृक्ष हाथ में लेकर ललकारा और उसे मरकर महाध्वनि से गर्जना की.
दोहा :-
कछु मारेसि कछु मर्देसि कछु मिलएसि धरि धूरि।
कछु पुनि जाइ पुकारे प्रभु मर्कट बल भूरि।।
वाल्व्याससुमनजीमहाराज श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, हनुमान जी उसकी सेना में से कुछ को मार डाला और कुछ को मसल दिया और कुछ को पकड़ कर धुल में मिला दिया. कुछ ने फिर जाकर रावण से पुकार की कि हे प्रभु ! बंदर बहुत ही बलवान है.
चौपाई :-
सुनि सुत बध लंकेस रिसाना। पठएसि मेघनाद बलवाना।।
मारसि जनि सुत बांधेसु ताही। देखिअ कपिहि कहाँ कर आही।।
वाल्व्याससुमनजीमहाराज श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, पुत्र का वध सुनकर रावण क्रोधित हो उठा और उसने अपने बड़े व बलवान पुत्र मेघनाद को भेजा.साथ ही रावण ने कहा – हे पुत्र ! उसे मारना नहीं बाँध लाना. उस बंदर को देखा जाए कि कहाँ का है…
चला इंद्रजित अतुलित जोधा। बंधु निधन सुनि उपजा क्रोधा।।
कपि देखा दारुन भट आवा। कटकटाइ गर्जा अरु धावा ।।
वाल्व्याससुमनजीमहाराज श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, इंद्र को जीतने वाला अतुलनीय योद्धा मेघनाद चला. साथ ही भाई का मारा जाना सुन के उसे क्रोध हो आया. उधर हनुमानजी ने देखा कि अब एक भयानक योद्धा आ रहा है उसे देखकर हनुमानजी कटकटाकर गरजे और दौड़े.
अति बिसाल तरु एक उपारा। बिरथ कीन्ह लंकेस कुमारा।।
रहे महाभट ताके संगा। गहि गहि कपि मर्दइ निज अंगा ।।
वाल्व्याससुमनजीमहाराज श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, उन्होने एक बहुत बड़ा वृक्ष उखाड़ लिया और लंकेश्वर रावण के पुत्र मेघनाद के रथ को तोड़कर उसे नीचे पटक दिया. उसके साथ जो बड़े-बड़े योद्धाओं को पकड़-पकड़कर हनुमान् जी अपने शरीर से मसलने लगे.
तिन्हहि निपाति ताहि सन बाजा। भिरे जुगल मानहुँ गजराजा।
मुठिका मारि चढ़ा तरु जाई। ताहि एक छन मुरुछा आई ।।
वाल्व्याससुमनजीमहाराज श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, उन सबको मारकर फिर मेघनाद से लड़ने लगे. लड़ते हुये दोनों ऐसे भिडे जैसे दो गजराज(हाथी) हों. हनुमान् जी उसे एक घूँसा मारकर वृक्ष पर जा चढ़े और मेघनाद को क्षण भर के लिए मूर्छा आ गई.
उठि बहोरि कीन्हिसि बहु माया। जीति न जाइ प्रभंजन जाया ।।
वाल्व्याससुमनजीमहाराज श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, फिर उठकर उसने बहुत माया रची, परन्तु पवन के पुत्र उससे जीते नही जाते.
दोहा :-
ब्रह्म अस्त्र तेहिं साँधा कपि मन कीन्ह बिचार ।
जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार।।
वाल्व्याससुमनजीमहाराज श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, अंत मे उसने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया, तब हनुमान् जी ने मन मे विचार किया कि यदि ब्रह्मास्त्र को नही मानता हूँ तो उसकी अपार महिमा मिट जाएगी.
चौपाई :-
ब्रह्मबान कपि कहुँ तेहि मारा। परतिहुँ बार कटकु संघारा।।
तेहि देखा कपि मुरुछित भयऊ। नागपास बाँधेसि लै गयऊ ।।
वाल्व्याससुमनजीमहाराज श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, उसने हनुमान् जी को ब्रह्मबाण मारा, जिसके लगते ही वे वृक्ष से नीचे गिर पड़े , परंतु गिरते समय भी उन्होने बहुत सी सेना मार डाली. जब उसने देखा कि हनुमान् जी मूर्छित हो गए है, तब वह उनको नागपाश से बाँधकर ले गय़ा.
जासु नाम जपि सुनहु भवानी। भव बंधन काटहिं नर ग्यानी।।
तासु दूत कि बंध तरु आवा। प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा ।।
वाल्व्याससुमनजीमहाराज श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, शिवजी कहते हैं कि –हे भवानी सुनों, जिनका नाम जपकर ज्ञानी ( विवेकी ) मनुष्य संसार ( जन्म-मरण ) के बंधन को काट डालते है, उनका दूत कहीं बंधन मे आ सकता है ? किन्तु प्रभु के कार्य के लिए हनुमान् जी ने स्वयं अपने को बँधा लिया.
कपि बंधन सुनि निसिचर धाए। कौतुक लागि सभाँ सब आए।।
दसमुख सभा दीखि कपि जाई। कहि न जाइ कछु अति प्रभुताई ।।
वाल्व्याससुमनजीमहाराज श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, बंदर का बाँधा जाना सुनकर राक्षस दौड़े और कौतुक (उत्सुक्त्वाश) सभी रावण की सभा में आए. हनुमान् जी ने जाकर रावण की सभी देखी. उसकी अत्यंत प्रभुता (ऐश्र्वर्य) कुछ कही नही जाती.
कर जोरें सुर दिसिप बिनीता। भृकुटि बिलोकत सकल सभीता।।
देखि प्रताप न कपि मन संका। जिमि अहिगन महुँ गरुड़ असंका ।।
वाल्व्याससुमनजीमहाराज श्लोक का अर्थ बताते हुए कहते है कि, उन्होंने देखा कि-देवता और दिक्पाल हाथ जोड़े बड़ी नम्रता के साथ भयभीत हुए सब रावण की भौं को देख रहे है. उसका ऐसा प्रताप देखकर भी हनुमान् जी ने मन मे जरा भी डर नही हुआ. वे ऐसे निःशंख खड़े रहे , जैसे सर्पो के समूह मे गरूड़ निःशंख (निर्भय ) रहते है.
वालव्याससुमनजीमहाराज, महात्मा भवन,
श्री रामजानकी मंदिर, राम कोट,
अयोध्या. 8544241710.