सत्संग-03…

साधु सन्त के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे॥
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि, हे पवन सुत आप श्रीराम के दुलारे हैं..! साथ ही सज्जनों की रक्षा करते है और दुष्टों का नाश करते है.
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता॥
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि, हे केसरी नंदन आपके पास आठ सिद्धियां और नौ निधियां है लेकिन आपको माता श्रीजानकी ने ऐसा वरदान दिया है कि आप किसी को आठ सिद्धियां और नौ निधियां भी दे सकते हैं.
राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि, हे महावीर आप निरंतर श्रीरघुनाथ जी की शरण मे रहते है, जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि भी है.
तुम्हरे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै॥
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि, हे महावीर आपके भजन करने से श्रीराम प्राप्त होते है, और जन्म जन्मांतर के दुःख भी दूर होते है.
अन्त काल रघुबर पुर जाई, जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि, हे पवन सुत अंत समय श्रीरघुनाथ के धाम को जाते है और यदि फिर भी जन्म लेंगे और भी भक्ति करेंगे तो आप श्रीराम के ही भक्त कहलायेंगे.
और देवता चित न धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई॥
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि, हे महावीरआपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते है, फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नही रहती है.
संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि हे महावीर जो आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब संकट कट जाते है और सब पीड़ा मिट जाती है.
जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करहु गुरु देव की नाई॥
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि हे केसरी नंदन आपकी जय हो, जय हो, जय हो! आप मुझपर कृपालु श्री गुरु जी के समान कृपा कीजिए.
जो सत बार पाठ कर कोई, छुटहि बँदि महा सुख होई॥
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि हे पवन सुत जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बन्धनों से छुट जायेगा और उसे परमानन्द मिलेगा.
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि हे महावीर भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया, इसलिए वे साक्षी है कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी.
तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय मँह डेरा॥
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि, हे पवन सुत तुलसीदास सदा ही श्रीराम का दास है. इसलिए आप उसके हृदय मे निवास कीजिए.
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप। राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि हे महावीर आप आनन्द मंगलो के स्वरुप है. हे देवराज! आप श्रीराम, सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय मे निवास कीजिए.
वालव्याससुमनजीमहाराज, महात्मा भवन,
श्रीरामजानकी मंदिर, राम कोट, अयोध्या.
मो० :- 9006714547,8709142129.