सत्संग-01…

कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुण्डल कुंचित केसा॥
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि, हे महावीर आप सुनहले रंगों के सुंदर वस्त्र के साथ कानों में कुण्डल पहने हुये हैं. हे अंजनी नंदन आपके सर के बाल घुघराले बालों से सुशोभित हैं.
हाथ ब्रज और ध्वजा विराजे, काँधे मूँज जनेऊ साजै॥
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि, हे पवनसुत आपके हाथों में बज्र और ध्वजा है साथ ही आपके कंधे पर मूंज के जनेऊ की शोभा है.
शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन॥
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि, हे महावीर आप शंकर के अवतार हैं साथ ही आप केसरी नंदन हैं. हे महावीर आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर मे वन्दना होती है.
विद्यावान गुणी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर॥
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि, हे केसरी नंदन आप प्रकांड विद्वान, गुणवान और अत्यंत ही कार्यकुशल है. साथ ही श्रीराम काज करने के लिए आतुर रहते है.
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया॥
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि, हे पवन कुमार आप श्रीराम चरित्र सुनने में भावभिवोर और आन्द्दित होते रहते हैं साथ ही आप श्रीराम, सीता और लखन आपके हृदय मे बसे रहते है.
सूक्ष्म रुप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रुप धरि लंक जरावा॥
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि, हे महावीर आप सूक्ष्म (छोटा) रूप धारण करके माता सीता से मिले वहीँ, हे पवन सुत आप अपने भयंकर रूप को धारण करके लंका को जलाया.
भीम रुप धरि असुर संहारे, रामचन्द्र के काज संवारे॥
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि, हे पवन सुत आप आपने विकराल रुप धारण करके राक्षसों का संहार (विध्वंस, विनाश) कर, आप श्रीरामचन्द्र जी के उदेश्यों को सफल किया.
लाय सजीवन लखन जियाये, श्री रघुवीर हरषि उर लाये॥
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि, हे पवन कुमार आप हिमालय से संजीवनी बुटी लाकर लक्ष्मणजी को जिलाया जिससे श्रीरघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया.
रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि, हे महावीर आपकी बहुत प्रशंसा करते हुये श्रीरामचन्द्र ने कहा कि तुम मेरे भरत जैसे प्यारे भाई हो.
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं, अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि, हे अंजनी नंदन आपको श्रीराम ने कहकर हृदय से.लगा लिया की तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है.
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद,सारद सहित अहीसा॥
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि, हे महावीर आपके यश का गुणगान श्री सनक, सनातन, सनन्दन, सनत्कुमार, मुनि, ब्रह्मा आदि देवताओं सहित नारद, माँ सरस्वती और शेषनाग भी आपका गुण गान करते है.
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते,कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि, हे पवन सुत आपके यश का वर्णन करने में यमराज,कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक और ज्ञानी विद्वान भी असमर्थ हैं.
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा, राम मिलाय राजपद दीन्हा॥
महाराजजी श्लोक का अर्थ बताते है कि, हे पवन सुत आप गुरु के वचन को पूर्ण करने के लिए सुग्रीव को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया जिसके कारण सुग्रीव वानरराज बने.
शेष अगले अंक में…
वालव्याससुमनजीमहाराज, महात्मा भवन,
श्री रामजानकी मंदिर, राम कोट, अयोध्या. 8544241710.