फूल को देखकर किसका मन नहीं मचलता होगा यह कहना उपयुक्त नहीं होगा. रंग-बिरंगे फूलों को देखकर बच्चे, युवा और बुजुर्ग के मन में शांति या यूं कहें की शीतलता महसूस होती है. खिले हुये फूलों को देखके कबियों और गीतकारों का भी मन मचल जाता है और उनकी कलम खुद व खुद चलने लगती है.
साहित्यकार माखनलाल चतुर्वेदी ने लिखा था चाह नहीं, मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं, चाह नहीं, प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ, चाह नहीं, सम्राटों के शव पर हे हरि, डाला जाऊं चाह नहीं, देवों के सिर पर चढूं भाग्य पर इठलाऊं मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर देना तुम फेक मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पर जावें वीर अनेक…
हिन्दी फिल्मों में कई ऐसे गाने मशहूर हुये है जिनके बोल फूल से शुरू होते हैं. गीतकार इंदीवर ने लिखा था…
फूल तुम्हें भेजा है खत में फूल नहीं मेरा दिल है प्रियतमा मेरे तुम भी लिखना क्या ये तुम्हारे काबिल है…. वहीं, हसरत जयपुरी ने लिखा था “ऐ फूलों की रानी बहारों की मलिका तेरा मुसकुराना गज़ब हो गया, न दिल होश में है न हम होश में हैं नजर का मिलाना गज़ब हो गया…
संकलन :- दिलीप और भास्कर.
Video link :- https://youtu.be/xN4xRE2jySs