गणेश चतुर्दशी…

‘सिहः प्रसेनम् अवधीत्, सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्वमन्तकः॥’
एक भक्त ने महाराजजी से पूछा कि, महारजजी भादों महीनें में कई पर्व होते हैं उनमे एक पर्व भगवान विनायक का भी होता है. अत: महाराजजी भादों महीने में होने वाले गणेश पूजा के बारे में विस्तृत जानकारी दें और इस पूजा के करने से क्या फल मिलता है यह भी बताएं.

वाल्व्याससुमनजी महाराज कहते हैं कि, भादों का महीना बड़ा ही पवित्र होता है. हिन्दू पंचांग के अनुसार छठा महीने को भादों या भाद्रपद का महिना कहते हैं. इसे आम भाषा में भाद्र या भदवा भी कहते हैं. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार भादों महीने की पूर्णिमा सदैव पूर्वा या उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में ही होती है. इस पावन और पवित्र महीने में कई पर्व होते हैं जैसे कजली या कजरी तीज, जन्माष्टमी, गणेश चतुर्दशी, देवझूलनी एकादशी और अनंत चतुर्दशी. महाराजजी कहते हैं कि, इस महीने में स्नान, दान और व्रत करने से जन्म-जन्मान्तर के पाप नाश हो जाते हैं. महाराजजी कहते हैं कि, इस महीने में जो भी व्यक्ति अपने जीवनशैली में संयम और अनुशासन को अपनाता है उसका जीवन सफल हो जाता है.
वाल्व्याससुमनजी महाराज कहते हैं कि, भादों महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को ही गणेश चतुर्दशी के नाम से जानते हैं. पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार भादों महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भगवान गजानन या यूँ कहें कि, गणेश का जन्म हुआ था. शिव पुराण में भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को मन्ग्ल्मुर्ती गणेश की अवतरण तिथि बताई गई है लेकिन, गणेश पुराण में भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को भगवान गणपति का जन्म हुआ था. महाराजजी कहते हैं कि, गणपति का संधि है गण + पति. संस्कृतकोशानुसार गण का अर्थ होता है पवित्रक और पति का अर्थ होता है स्वामी. महाराजजी कहते है कि, जो पवित्रकों के स्वामी है वो ही गणपति है. महाराजजी कहते हैं कि, दक्षिन भारत में गणेशोत्सव बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है. महारष्ट्र में इस महापर्व को 09 दिनों तक मनाया जाता है.
कथा:-
वाल्व्याससुमनजी महाराज कहते हैं कि, शिवपुराणके रुद्रसंहिता के चतुर्थ (कुमार) खण्ड में वर्णन है कि, माता पार्वती ने स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक को उत्पन्न करके उसे अपना द्वारपालबना दिया. शिवजी ने जब प्रवेश करना चाहा तब बालक ने उन्हें रोक दिया. इस पर शिवगणों ने बालक से भयंकर युद्ध किया परंतु संग्राम में उसे कोई पराजित नहीं कर सका. अन्ततोगत्वा भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सर काट दिया. इससे भगवती शिवा क्रुद्ध हो उठीं और उन्होंने प्रलय करने की ठान ली. भयभीत देवताओं ने देवर्षि नारद की सलाह पर जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया. शिवजी के निर्देश पर गणों ने उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आए और भगवान शिव ने गज के उस मस्तक को बालक के धड पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया. माता पार्वती ने हर्षातिरेक से उस गजमुखबालक को अपने हृदय से लगा लिया और देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया. ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्य होने का वरदान दिया. भगवान शंकर ने बालक से कहा- गिरिजानन्दन! विघ्न नाश करने में तेरा नाम सर्वोपरि होगा. तू सबका पूज्य बनकर मेरे समस्त गणों का अध्यक्ष हो जा. गणेश्वर! तू भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुआ है. इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी. कृष्णपक्ष की चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय के समय गणेश तुम्हारी पूजा करने के पश्चात् व्रती चंद्रमा को अर्घ्य देकर ब्राह्मण को मिष्ठान खिलाए. तदोपरांत स्वयं भी मीठा भोजन करे. वर्ष पर्यन्त श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है.
वाल्व्याससुमनजी महाराज कहते हैं कि, गणेश चतुर्दशी को अगर कोई व्यक्ति रात्री में चन्द्रमा को देखता है उसे झुठा- कलंक प्राप्त होता है. अत: इस रात्री को चन्द्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए. अगर गलती से दर्शन हो जाय तो उप्पर लिखे मन्त्र का पाठ अवश्य करना चाहिए.
वालव्याससुमनजीमहाराज,
महात्माभवन, श्री रामजानकी मंदिर,
राम कोट, अयोध्या. 8709142129.