अजा एकादशी…

वाल्व्याससुमनजीमहाराज कहते है की, भाद्र (भादो) महीने के कृष्ण पक्ष में होने वाली एकादशी व्रत को करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है. महाराजजी कहते हैं कि, पद्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति इस एकादशी व्रत को विधिपूर्वक करता है, उसके लिए मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं, सांसारिक लाभ तो प्राप्त करता है साथ ही मृत्यु उपरांत परलोक में आनंद की प्राप्ति होती है. महाराजजी कहते हैं, एकबार युधिष्ठिर मधुसुदन से पूछते हैं कि भाद्रपद कृष्ण एकादशी का क्या नाम है? और इस व्रत करने की विधि तथा इसका माहात्म्य के बारे में कृपा करके बताइए. मधुसूदन कहते हैं कि, इस एकादशी का नाम “अजा” है और यह सब प्रकार के समस्त पापों का नाश करती है. जो भी मनुष्य इस दिन भगवान ऋषिकेश की पूजा करता है, अवश्य ही उसको वैकुंठ की प्राप्ति होती है. एकादशी के दिन भगवान श्री विष्णु जी की पूजा करनी चाहिए, रात्रि जागरण व व्रत करने से व्यक्ति के सभी पाप समाप्त हो जाते है. इस एकादशी के फल लोक और परलोक दोनों में उतम कहे गये है, साथ ही उस व्यक्ति को हजार गौदान करने के समान फल प्राप्त होते है, उसके जाने-अनजाने में किए गये सभी पाप समाप्त हो जाते है. और जीवन में सुख-समृ्द्धि की प्राप्ति होती है. इस एकादशी की कथा के श्रवण मात्र से ही अश्वमेघ यज्ञ के समान फल मिलता है.
पूजा-विधि :-
एकादशी के दिन स्नानादि से पवित्र होने के पश्चात संकल्प करके श्रीविष्णु के विग्रह की पूजन करना चाहिए. भगवान विष्णु को फूल, फल, तिल, दूध, पंचामृत आदि नाना पदार्थ निवेदित करके, आठों प्रहर निर्जल रहकर विष्णु जी के नाम का स्मरण एवं कीर्तन करना चाहिए. एकादशी व्रत में ब्राह्मण भोजन एवं दक्षिणा का बड़ा ही महत्व है अत: ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करने के पश्चात ही भोजना ग्रहण करें. इस प्रकार जो कामिका एकादशी का व्रत रखता है, उसकी सभी कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं.
कथा:-

प्राचीन काल में एक चक्रवती राजा राज्य करते थे, उनका नाम हरिशचन्द्र था. वह अत्यन्त ही वीर प्रतापी और सत्यवादी थे. उन्होंने अपने एक वचन को पूरा करने के लिये अपनी स्त्री और पुत्र को बेच डाला और स्वयं भी एक चाण्डाल के सेवक बन गये. उन्होंने उस चाण्डाल के यहां कफन लेने का काम करने लगे, और इस विषम परिस्थिति में भी सत्य का साथ न छोडा. इस प्रकार रहते हुए उनको बहुत वर्ष बीत गये, और अपने इस नीच कर्म पर बडा दु:ख हुआ, तो वे इससे मुक्त होने का उपाय खोजने लगे. हर समय एक ही चिंता में डूबे रहते कि मै ऐसा क्या करूँ, कि मुझे भी मुक्ति मिले. इसी तरह की चिंता में डूबे हुए थे, उसी समय गौतम ऋषि के दर्शन प्राप्त हुए, राजा ने इन्हें देखकर प्रणाम किया और अपनी दु:ख की कथा सुनाने लगे. महर्षि राजा के दु:ख से पूर्ण वाक्यों को सुनकर अत्यन्त दु:खी हो गये, और राजा से बोले की, हे राजन, भादो महीने के कृ्ष्णपक्ष में एक एकाद्शी होती है, उस एकाद्शी का नाम अजा है. तुम उसी अजा नामक एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो, तथा रात्रि को जागरन करो, इससे तुम्हारे समस्त पाप नष्ट हो जायेगें. इस प्रकार कहकर गौतम ऋषि चले गये़.
अजा एकाद्शी आने पर राजा ने मुनि के कहे अनुसार विधि-पूर्वक व्रत और रात्रि जागरण किया. उस व्रत के प्रभाव से राजा के समस्त पाप नष्ट हो गए और स्वर्ग में नगाडे बजने लगे तथा पुष्पों की वर्षो होने लगी. उन्होंने अपने सामने ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र और महादेवजी को खडा पाया, साथ ही अपने मृतक पुत्र को जीवित तथा स्त्री को वस्त्र व आभूषणों से युक्त देखा. व्रत के प्रभाव से राजा को पुन: राज्य मिल गया. अन्त समय में वह अपने परिवार सहित स्वर्ग लोक को गये. पुराणों के अनुसार, जो व्यक्ति श्रृद्धापूर्वक अजा एकादशी का व्रत करता है, उसके पूर्व जन्म के पाप कट जाते हैं, और इस जन्म में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. अजा एकादशी के व्रत से अश्वमेघ यज्ञ करने के समान पुण्य की प्राप्ति होती है, और मृत्यु के पश्चात व्यक्ति उत्तम लोक को प्राप्त करता है.
फल:-
महाराजजी कहते हैं कि जो व्यक्ति श्रृद्धा पूर्वक अजा एकादशी का व्रत रखता है उसके पूर्व जन्म के पाप कट जाते हैं और इस जन्म में सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. अजा एकादशी के व्रत से अश्वमेघ यज्ञ करने के समान पुण्य की प्राप्ति होती है और मृत्यु के पश्चात व्यक्ति उत्तम लोक में स्थान प्राप्त करता है.
वालव्याससुमनजीमहाराज, महात्मा भवन,
श्रीरामजानकी मंदिर, राम कोट,
अयोध्या. 8709142129.