
बुधवार को इसरो द्वारा बनाए गए ‘सबसे अधिक वजनी’ उपग्रह जीसैट-11 का फ्रेंच गुआना के एरियानेस्पेस के एरियाने-05 रॉकेट से सफल प्रक्षेपण किया गया. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने बताया कि करीब 5,854 किलोग्राम वजन का जीसैट-11 देशभर में ब्रॉडबैंड सेवाएं उपलब्ध कराने में मदद करेगा.
बताते चलें कि, जीसैट-11 अगली पीढ़ी का संचार उपग्रह है जिसका कार्यकाल 15 साल से अधिक का है. ज्ञात है कि, जीसैट-11 का प्रक्षेपण 25 मई को ही करना था लेकिन इसरो ने अतिरिक्त तकनीकी जांच का हवाला देते हुए इसके प्रक्षेपण का कार्यक्रम बदल दिया गया. शुरुआत में उपग्रह भू-समतुल्यकालिक स्थानांतरण कक्षा में ले जाया जाएगा और उसके बाद उसे भू-स्थैतिक कक्षा में स्थापित किया जाएगा. जीसैट-11 के साथ कोरिया एयरोस्पेस अनुसंधान संस्थान के लिए जियो-कोम्पसैट-2ए उपग्रह को भी साथ लेकर गया है.
आखिर फ्रेंच गुयाना से ही उपग्रह की लौन्चिंग क्यों…
फ्रेंच गुयाना के इतिहास को हम देखते हैतो पता चलता है कि, फ्रांस ने फ्रेंच गुयाना को अपने कब्जे में लेने का पहला प्रयास किया था जो असफल रहा. उसके बाद फ्रांस इस जगह का प्रयोग बंदियों के लिए कालापानी के तौर पर करना शुरू किया. ज्ञात है कि, 19वीं सदी के मध्य तक फ्रांस ने यहां करीब 56,000 लोगों को भेजा जिनमें से मात्र 10 प्रतिशत लोग ही सजा वापस कर लौटे थे.
बताते चलें कि, फ्रेंच गुयाना (दक्षिण अमेरिका) एक भूमध्यरेखा के पास स्थित देश है और वहां लंबी समुद्री रेखा है, जो रॉकेट लॉन्चिंग के लिए उपयुक्त जगह है और यहां से रॉकेट को आसानी से पृथ्वी की कक्षा में ले जाने में और मदद मिलती है. जियोस्टेशनरी कक्षा की ऊंचाई भूमध्य रेखा से करीब 36,000 किलोमीटर होती है. ज्ञात है कि, जब भी ऐसे रॉकेट को छोड़ना होता है तो उसे की ओर से छोड़े जाते हैं ताकि उन्हें पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने के लिए पृथ्वी की गति से भी थोड़ी मदद मिल सके.